किन्नर व्यथा भाग-13 -डॉ. अशोक आकाश


गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-13
किन्नर व्यथा भाग-13

किन्नर व्यथा भाग-13

किन्नर व्यथा भाग-13

विरंचि काहे कन्या आत्मा निधि, अध नर तन जनम दिया |
अबोध शिशु निर्बाध प्रताड़ित, परिजन दुख अगम दिया ||
लड़का था लड़कों जैसा ही, पल छिन परवरिश हुआ |
अन्तरतन लड़की दिल धड़के, लड़का अवतरित हुआ || 1 ||

धीरे धीरे बड़ा हुआ तब, लड़कियों संग रहता |
लड़की जैसी बातें करता,लड़की के ढंग रहता ||
पायल चूड़ी टिकली नथली, माहुर सजना भाता |
कंगन बिंदिया बिछिया करधन, सिन्दूर मॉग सजाता || 2 ||

परिजन डॉटे लड़के हो तुम, लड़की रूप दबाता |
लेकिन निर्जन स्थली धधकत, असली रूप दिखाता ||
लड़की जैसे केश लम्बवत् ,रखने निशदिन लड़ते |
नर्त अप्सरा जैसी करता, तकधिन ताल बगरते || 3 ||

स्कूल नाटक खुल गया फाटक, लड़की रोल निभाता |
नृत्य नाटिका सौंहत कन्या, जमकर कहर मचाता ||
साड़ी ब्लाउज सलवार चुन्नी, पहननी अच्छा लगता |
पर कोई कुछ कह दे डरता, चौकस तकता रहता || 4 ||

तलफत जीता देह कुठरिया, अस्थिपिंजरा रहते |
लड़की कहता गर्वित होते, पर सब किन्नर कहते ||
सबको दिखता इनमें विकृति, स्वयं नजर सही है |
असल में जो खुद को समझता, सबकी नजर नहीं है || 5 ||

जब नारी परिधान सजाते, हर्षित फूला जाता |
तन पुर्लिंग पर मन स्त्रीलिंग, जीवन झूला जाता ||
मनचले छक्का मामू हिजड़ा, कह पथ छेड़ चिढ़ाते |
घरवाले दण्डित अपमानित, कर दिल दुखा रुलाते || 6 ||

कुछ सहपाठी लड़के लड़की, डेट पे जाया करते |
चौबारे आवारा लड़के, कली फँसाया करते ||
पर इनका लड़का होकर भी, व्यवहार लड़की सी |
देख हताशा होती इनको, सहज प्यार लड़की की || 7 ||

हावभाव पर फजर रात तक, ऐतराज है खुदपे |
कौन यहॉ अपना जग कहदे, मुझे नाज है तुझपे
नाम विकास पर इनको तो, वीणा नाम सुहाता |
इस पर भी दुनिया के बंदे, बोली जहर चुभाता || 8 ||

अंदर से तो लड़की है पर, तन लड़के का पाया |
इस विडम्बना पर वह पूछे, क्यों दुनिया में आया ||
लड़की से खुलकर बतियाता, लड़कों सा सकुचाता |
न लड़की खुलके पास आती, ना लड़का जुड़ पाता || 9 ||

लड़का जब अपने आपको , लड़की महसूस करे |
जनाना चालढाल देखकर, परिजन मनहूस कहे ||
तब इनका लिंगभेद मिटाकर, आत्मशक्ति पुष्ट करो |
खुलकर परिजन से बातें कर, शंका संतुष्ट करो || 10 ||

हर मानव मन पीड़ा हरने, मन संज्ञान जरूरी |
सबकी इच्छा उदित प्रतिष्ठा, सरस सम्मान जरूरी ||
जूझ रही जो अपने अध तन, मन झंकृत विकृतियॉ |
अंतस्तल उठती उथल पुथल, संकीर्ण संस्कृतियॉ || 11 ||

लड़की-लड़की, लड़का लड़के, चाहे जीवन साथी |
तब मॉ बाप पर बीतेगा क्या, कॉटे कैसे दिन राती ||
मात पिता मन कुचला जाता, घर से न निकला जाता |
दृढ़ समाजिक मान प्रतिष्ठा, रेत सदिश छला जाता || 12 ||

जीवन सागर पार उतरते, पति पत्नी दुआ पाटे |
तुंग लहर धक पड़े थपेड़े, झट हिचकोले खाते ||
पति पत्नी सुचि रखे संतुलन, तूफॉ से लड़ जाओ |
दृढ़ निष्ठा विश्वास धैर्य, संग्राम फतह कर आओ || 13 ||

सोचो जीवन दीपक कैसे, तूफॉ से टकराये |
दृढ़ झोंका चिराग बुझाते, हँस ऑधी इतराये ||
मानव हैं मानव की पीड़ा, समझें और समझायें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता, किन्नर व्यथा बतायें || 14 ||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले भाग में

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