किन्नर व्यथा भाग-14 -डॉ. अशोक आकाश


गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-14
किन्नर व्यथा भाग-14

किन्नर व्यथा भाग-14

किन्नर व्यथा भाग-14

जीवन गहन अमावस जूझे, जैसे हत अपराधी |
आठ लाख भारत संभावित, अधसंगठित आबादी ||
हठ करते अधिकार झगड़ते, नहिं हथियार उठाया |
नठ घुट-घुट जिद जीता जीवन, नहिं परिवार सताया || 1 ||

जहां दो गज भूमि हथियाने,भाई भाई मारे |
भाभी चाची दीदी दादी, मां के मॉग उजाड़े ||
वहीं यह घर परिवार खेती, धंधा धन तज जाये |
याद आये परिजन फिर भी न कभी लौट घर आये || 2 ||

जो इनका हक छीने उनको,त्वरित कड़क सजा हो |
रोटी कपड़ा मकान आदर, पर अधिकार अदा हो ||
जब गुनाह करने वालों को, त्वरित दंड मिलेगा |
तब गुनाह करने वाला भी, क्या उद्दंड मिलेगा || 3 ||

हर अपराध की कड़ी सजा हो, गुनहगार डर जाये |
जन-जन होकर निर्भय अपने, अधिकार को लड़ पाये ||
इनका हौसला नित बुलंद हो, अब ऐसा कुछ कर दें |
थमी झील सी इनकी जिंदगी, पुनः कुलांचें भर दे || 4 ||

डगमग नैया निरख बटोही, बचने साधन ढूंढे |
ढलता सूरज झटपट रोशन, घर आंगन कर देंगे ||
उड़ती चिड़िया निर्मम पाँखी, कतरे गिरती धरती |
चंचल लौ घृत भीगी बाती, दीपों संग नित जलती || 5 ||

सपनीली गुड़िया सी हर पल, प्रतिउत्साह बदन में |
चंचल चिड़िया बाजों के संग, उड़ती नील गगन में ||
जैसे छुआ पतंग ऊँचाई, कॉटी डोर किसी ने |
जिस ने थामा हाथ विधाता, दिखे हर ओर उसी में || 6 ||

मौत से बुरा नपुंसक जीवन, जिल्लत में होने की |
अंतस पीर हृदयतल चीरे , परिजन धन खोने की |
मुद्दों पर लड़ने के बदले, काहे परदा डाला |
होते देखा जब यूं अन्याय, क्यों मुख जड़ भी ताला ||7||

दृढ़ सामाजिक जिम्मेदारी, कोशिश तो कर देते |
मुद्दा गहन है सामना करते, बदनामी हर लेते ||
सपने तोड़े सब हक छीना, डरा ना अब इतरायें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता, किन्नर कथा बताएं ||8||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले भाग में

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