किन्नर व्यथा भाग-15
किन्नर व्यथा भाग-15
कुंभ मेला हिंदू सनातनी, किन्नर संत अखाड़ा |
हिंदू धर्म कुल दीपक दर्जा, साध्वी सिंघ उच्चारा |
मगन झूमती गगन चूमती, सिंह भेद जयकारे |
धर्म पताका थाम गेरुवा, वसन हरे भय सारे || 1 ||
संघ शक्ति निज धर्म भक्ति-रत, बढ़ा गर्वोन्नत माथा |
पा ठोकर परिपुष्ट हुआ अब, किन्नर गौरव गाथा ||
शोलों से तप निखरा पल पल, खर सामाजिक सोना |
युग योद्धा बलिदानी गाथा, कभी निरर्थक होना || 2 ||
उत्कट साहस शौर्य धैर्य, छू नव शिखर ऊंचाई |
धीरज सम्यक धर्मशील जग, उज्जवल कीर्ति दिलाई ||
धर्मगुरु न्यायधीश विधायक, मेयर प्रखर प्रवक्ता |
बागडोर थामी सुदृढ़वत, तोड़ दी अराजकता || 3 ||
किंतु सनातन धर्म स्वार्थवश, पल-पल क्यों हक छीना |
तिल तिल झुलसावत अंगारा मुश्किल कर दी जीना ||
हिंदू धर्म किन्नर निषेधित, संत सन्यास अधिकारी |
युग युग मानव अस्तित्व पर , चली कटार दुधारी || 4 ||
इस्लाम धर्म सम्मान बढ़ाया, हज यात्रा हक पाया |
तभी तो लाखों हिंदू किन्नर, मुसलमान बन पाया ||
लेकिन मुस्लिम समाज इनको, सदा हिकारत देखा |
युग युग गुजरी किन्नर दल की, मिटी न किस्मत लेखा || 5 ||
तन मन दग दग दहक रहा नित, व्याकुल मन चिंगारी |
त्याग समर्पण दया धर्म का, पुतला बना भिखारी ||
कभी देव दर्जा मिलता था, आज मिला क्या इनको |
मंगलमयी जिसे कहते थे, क्या सुख मिला पल छिन को || 6 ||
शादी ब्याह बच्चों के जन्म पर, नाच गान करता है |
मन मगन अभ्यागत स्वागत, मुक्त मान करता है ||
जिनके दर से किन्नर पुलकित, मुक्त मगन हो जाता |
उनके घर साक्षात विधाता, स्वर्ग खींच कर लाता || 7 ||
यह कैसी जिंदगी दिया रे, भगवन ऐसे होते |
मरके मिलूंगी खूब लडूंगी, जग तनहा सब रोते ||
सब स्वारथ रत सुख चाहत जग, बोले मधुरिम वाणी |
जीवन दास दासी बन गुजरे, बनी न किन्नर रानी || 8 ||
मस्त बटोही पहाड़ घाटी, जंगल मंगल गुजरे |
दुख की निर्मम बदली छंटकर, सुखसागर नित उमड़े |
सबका जीवन मधुमय सुखमय, संवृत सुचि चिन्मय हो |
कर्मशक्ति नित फहर पताका, सुख धनमय तन्मय है || 9 ||
सबके मन दृढ़ सम्मान बढ़े, समाज का हिस्सा होगा |
तभी उलाहना प्रताड़ना, बीते दिन कैसा होगा ||
भेदभाव सब भूले इनको, सब मिल गले लगायें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता किन्नर व्यथा बतायें || 10 ||
-डॉ. अशोक आकाश
बालोद