किन्नर व्यथा भाग-16 -डॉ. अशोक आकाश


गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-16
किन्नर व्यथा भाग-16

किन्नर व्यथा भाग-16

किन्नर व्यथा भाग-16

उदर खोह भरने की चिंता, तीन घड़ी पुनि खाली |
तरुमृग जनम भला था इससे, मिलता भोजन डाली ||
दो बखत भोजन संग गाली, दिन भर काम कराते |
नित्य फजर से गहन निशा तक, खोट निकाल डराते || 1 ||

कुछ भी बोला काम से बाहर, होने का डर रहता |
पेट रोटी सर पर छत खातिर, चुप्प जुलुम सब सहता ||
बचपन मां के साथ ही बीता, मां संग काम करे ये |
मां जैसी ही गाली देता, मां गुणगान करे ये || 2 ||

छलके जग मधुरस यह प्यासा, सम्यक प्यासा रीता |
पग पग ठोकर गाली ताली, दुर्गति जीवन बीता ||
मां के मन में भी ममता क्या, जगह नहीं आंचल में |
लोगों ने बाहर दम घोटा, अपनों ने निज घर में || 3 ||

घघु-घुट धिक जीवन श्रेयस्कर, मातृगर्भ मृत आते |
किन्नर काया अंधकूप जग,जनम वृथा बच जाते ||
परिपुष्ट मन चाबी खुलेगा, जंग लगा तन ताला |
अंदर तड़पत देह अघोरी, तन छोरा मन बाला || 4 ||

खून के नातों से बढ़चढ़कर, यह गुरु मॉ को माने |
दिन भर जो अन्न धन कमाता, सौंपता दाने दाने ||
जिस घर किन्नर बच्चे जनमे, गुरु मॉ उन्हे ले जाते |
शिक्षा दीक्षा संस्कार उन्नत, उज्ज्वल जहॉ बनाते || 5 ||

यह निर्भय हो जाते जग में, पड़कर गुरु चरण में |
पनाह सुरक्षा सर पर हस्ती, मिलती इनके शरण में ||
गुरूमॉ इनके जीवन संबल, जिनकी चाहत जीते |
भिन्न नियम सभी गुरु मॉ के, जुदा कायदे होते || 6 ||

जो जिस पथ चलता नित जग में, सबको वही दिखाता |
नेक कर्म पथ चलने वाला, बदी नहीं अपनाता ||
और सत्य के मारग में जो, निशदिन चलता रहता |
उनकी उज्जवल गौरव गाथा, सदियों जन-जन कहता || 7 ||

देह बेचते भीख मांगते, जर्जर तन बीमारी |
निज अधिकार मिलेगा लड़कर, तज जीना लाचारी ||
किन्नर जन्म अभिशाप नहीं जी, क्यों शापित जग माने |
विकृत देह दोष किसका है, मिले मृत्यु ताने || 8 ||

नेह किवड़िया खुली रख लो, है खुशियां आने को |
देह पिंजरा तोड़ के पंछी, तैयार उड़ जाने को ||
है इनमें भी अतुलित क्षमता, भूले से ना ठुकराये |
धिकमय जीवन पल छिन चुभता, किन्नर व्यथा बतायें || 9 ||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले भाग में

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