किन्नर व्यथा भाग-18 -डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-18
किन्नर व्यथा भाग-18

किन्नर व्यथा भाग-18

किन्नर व्यथा भाग-18

रखता दाढ़ी मूंछ सफाचट,कोई बांधे जूड़ा |
कोई पहने कंगन चूड़ी,चुन्नी सलूखा चूड़ा ||
क्रीम पाउडर टिकली काजल,लगाते मेकअप भारी |
मोगरा गजरा अत्तर भीगी,महके गलियां सारी || 1 ||

कोई चांद सी लाली बिंदी,मांग सिंदूर लगाये |
ताली पीटक कटि मटकत पथ,लख गृहणी लजाये ||
नित्य नवेली दुल्हन जैसी,सज सिंगार करे वो |
स्त्री पुरुष सम लिंग नपुंसक,मन अंगार भरे वो || 2 ||

कोई मनभावन मोहनी छवि,कोई बेढब दीखें |
मधुरिम कोयल तान सुरीली,कोई कर्कश चीखे ||
अतिशिष्ट कोई अशिष्ट क्रोधी,धैर्यवान बलशाली |
कृषतन तुनकमिजाज नास्तिक,संयम धर्मधुरि धारी || 3 ||

छरहरी गोरी सुंदर छोरी,निकले गलियां बन ठन |
नख शिख सौंदर्य प्रतिमूर्ति,पायल झनके झनझन ||
साढ़े छै फिट लड़का साड़ी,पहन सड़क जब घूमे |
लोग पलट कर देखें पर यह,स्वयं मगन मन झूमे || 4 ||

जंग जुबानी छिड़े तो जंगी,सूरमा मांगे पानी |
राजा की पत्नी को भी कहदे,आहा मेरी रानी ||
इर्द-गिर्द जीवन भर घूमे,नर्तन गायन बाजा |
खुशियों से भर जाए भिखारी,को कह देती राजा || 5 ||

कृत्रिम किन्नर कुकर्म ठीकरा,इनके सर पर फूटे |
जब-जब कुत्सित घटना होती,इन्हें पकड़कर कुटे |
कभी इन पर बच्चा चोरी का,आरोप गहन लगाते |
चोरी ठगी लूट घटना पर,थाने बुला बिठाते || 6 ||

तन मानव मन दानव जैसा,मानवता मत भूलो |
किन्नर भी कुदरती देन है,इन्हें सहर्ष कुबूलो ||
सुनहरे सपने जज्बातों को,हो निर्मम मत कुचलो |
इनकी काबिलियत स्वीकारो,कुंएं से बाहर निकलो || 7 ||

ऐसा जन्म उन्हें मिलता है,जिनकी किस्मत फूटे |
असीम गरीबी बदनसीबी,सांस टुटे तब छूटे ||
दृढ़ ईमान धरम पर अब ना,शक की सुई चुभाएं |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता किन्नर व्यथा बतायें || 8 ||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले भाग में

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