Kinnar-vyatha गतांक से आगे
Kinnar-vyatha किन्नर व्यथा भाग-2
Kinnar-vyatha किन्नर व्यथा (सार छंद), भाग-2
घर परिवार समाज भूल कर, किन्नर दुनिया पलती |
जाति धर्म अरु गोत्रज त्यागे, फौलादों में ढलती ||
निज परिजन मक्खीवत् फेंके, दूजों से क्या आशा |
किन्नर संस्कारों में बदली, झट जीवन परिभाषा || 1 ||
लड़की लड़कों जैसी चलती, लड़का लड़की जैसा |
लड़की लड़की जैसी दिखती, ना लड़का लड़कों सा ||
मर्दों में मर्दों के लक्षण ना, औरत में औरत है |
मर्द नहीं ना औरत यह तो, बात बड़ी हैरत है || 2 ||
जीवन सुचि संगीत समर्पित, नित्य नाचना गाना |
बात बात रुठना जिद करना, प्रात निशि सुने ताना ||
चलते पग पग मटक-मटक कर, बात बात पर ताली |
बात मनाने कसमें खाते, छेड़े छूट दे गाली || 3 ||
वृहनल्ला किन्नर शिखंडी , कह दो आंख तरेरे |
हिजड़ा कह देते तो सातों, पुष्तों पानी फेरे ||
पीड़ा जिसकी जीवन गीता, मनभेेदों में जीता |
दर्द समाये जग नित अंतस, हँस जीवन-विष पीता || 4 ||
किसी को भी चिकना कह देते , जग माने या रूठे |
फकत प्रेम अभिवादन सबको, कह देते चल झूठे ||
जिसका तन मन दुखमय जीवन, मान रौंद दी जाए |
धिक-धिक जीवन पल-पल चुभता, किन्नर व्यथा बताएं ||5||
-डॉ. अशोक आकाश
धन्यवाद चौहान जी आपकी साहित्य के प्रति लगन को नमन है…
अति संवेदन रचना , मैने बहुत कम रचनाएँ इस संदर्भ में पढ़ी है प्रयास उच्च स्तर का है