किन्नर व्यथा भाग-20
किन्नर व्यथा भाग-20
जिनका जग में अपना न कोई, कौन उनसे निर्धन है |
दूसरों का दिल दुखाके खुश हो, कौन उनसे दुर्जन है ||
जो उठ गया किसी की नजर में, उसको कौन गिराये |
जिसने पाया ज्ञान विपुल धन, कौन चुरा ले जाये || 1 ||
जिनके शब्द हों तीखे तीर,रहकर मौन वो देखे |
मौन से बढ़कर शब्द नहीं है,मौन की भाखा लेखें ||
मौनव्रती से बड़ा तपस्वी,ढूंढो जुलुम जो सहता |
देखा जग आकाश चूमते,गौंण पतित जो रहता || 2 ||
हम कह देते इनको किन्नर, किन्नर कौन सरेखो |
ये मन निर्मल तन से किन्नर, किन्नर कौन सोचो तो ||
अब हम सबको इनके दिल में,लगे घाव सब भरना |
वैचारिक विद्रुपता सारी, त्याग इनके दुख हरना || 3 ||
गहरा जलाशय गिरजाने से, मौत नहीं हो जाती |
जो जीवन संघर्ष न जाने, खौप बड़ी हो जाती ||
जीवन सागर डूबे अनाड़ी, जो नहि तैरना जाने |
परिस्थितियॉ अवसर बनती, त्वरित निपटना जानें || 5 ||
डर जाने पर चंचल लहरें, नैया धार डुबोती |
गैर सहारे कभी उफनती, नदिया पार न होती ||
स्वयं साहस धीरज संयम, धरे अग्र आ जाओ |
चढ़ो बुलंदी दृढ़ चंचल पग, दुनिया में छा जाओ || 6 ||
जीवन धन माटी का बुलबुला, सॉसें आती जाती |
जग जीते रहने जुनून में, सबका मंजिल माटी ||
प्रकृति चतुर चंचल कुम्हार, जैसा घड़ा बनादे |
किसी का सामर्थ्य क्या उस पर, सठ आरोप लगादे || 7 ||
माटी तन धुक धड़के छाती, गीत सॉस नित गाता |
जन नादान समर्थ विधाता, कटु आक्षेप लगाता ||
वंदनीय प्रकृति सिरजन कर, चोखा रंग उकेरा |
ब्रह्मपुत्र मंगलमुखी जग, रचा क्यों चपल चितेरा || 8 ||
नवल प्रात दोपहर सॉध्य ढल, दिनकर आभा खोता |
गहन निशा पश्चात नित्य प्रति, नवल सवेरा होता ||
अद्य काल इनके प्रति जन मन, हीन भावना बदले |
विचलित जीवन छा खुशहाली, आसमॉ छूने मचले || 9 ||
पतझर पात पात झर जाते, पेड़ नहीं मर जाता |
नव कोंपल फूटे इतराकर, ऋतु वसंतमय आता ||
धीरज टूटा साहस खोया, जीती बाजी हारा |
हारी बाजी जीत दिखाता, जिसने तन मन वारा || 10 ||
समय ठहरता नहीं किसी का, बुरा वक्त है टालो |
सुख का पलड़ा भारी होगा, दुख में खुद को सम्हालो ||
हिम्मत नैया पार लगाती, मन उजास भर आयें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता, किन्नर व्यथा मिटायें || 11 ||
-डॉ. अशोक आकाश
बालोद
सुंदर सृजन गुरुदेव