किन्नर व्यथा भाग-3
किन्नर व्यथा (सार छंद), भाग-3 दिव्यॉग दलित शोषित नारी, जन पीड़ा घन चर्चा | किन्नर टोली निरखत करे क्यों, व्यंग्य बाण कटु बरसा || अर्धनारी पुरुष तन तब क्या, यह इंसान नहीं है | सामाजिक समरस सुधि सिरजन, क्यों फिर स्थान नहीं है ||1|| कब उठेगी शिष्ट समाज में, रमक वेदना आंधी | असभ्यता की जिसने अपनी, अनहद सरहद लांघी || जिसको चाहा धन यौवन क्या, प्राण निछावर कर दे | संकट विघन स्वयं सर वारे, दामन खुशियां भर दे ||2|| सबका सुखमय परिजन देखे, अंतस तम मन रोता | कुदरत कमी नहीं की होती, परिजन वर्धन होता || धरा प्रेम पथ अतुलित सागर, सुचि मृदुवाणी तरसे | यह भी मानव इन पर पग पग, घृणा उपेक्षा बरसे ||3|| विधि का सिरजन नही निरर्थक, विसद नेह बरसाओ | ईश्वरी प्रदत्त देह का, जग में मान बढ़ाओ || सभी मानवीय गरिमाओं का, इसे हकदार बनादो | परिवार में इज्जत का दर्जा, जन आधार घना दो || 4 || थोथा जीवन घिना उपेक्षा, सतत खोखली ताली | उच्च कर्म पर भी अपमानित, ऐसा जीवन गाली || शापित अर्थहीन जीवन से, भले दुखद मर जायें | धिकमय जीवन पल छिन चुभता, किन्नर व्यथा बताएं ||5 ||| -डॉ. अशोक आकाश
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय चौहान जी
🙏🙏🙏
धन्यवाद चौहान जी
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