किन्नर व्यथा भाग-4 -डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-4

किन्नर व्यथा भाग-4

किन्नर व्यथा भाग-4
किन्नर व्यथा भाग-4

किन्‍नर व्‍यथा भाग-4 (सार छंद)

मानव जन मन गुन गन अंतर, हीरा पत्थर कंकड़ |
वृहनल्ला शिखंडी निवसत, अधनारीश्वर शंकर ||
हिंदू धर्म ग्रंथ नीत वर्णित, पावन गौरव गाथा |
चर्चित वेद पुराण प्रदर्शित, प्रदीप्‍त सौर पताका ||

अर्जुन उलुपी पुत्र अरावण, वंदित किन्नर ईसर |
जिनकी बलि जीता महभारत, बह सोनित सर सीकर ||
पशु पंछी निर्बल परिजन बली, लानत विभु रण जीते |
तुच्छ विश्व रण जीत सुहावत, हार सुरम्य पुनीते ||

यद्यपि श्रीक़ष्‍ण को लगा था, मानव बलि उचित है |
तद्यपि कलयुग घोर द्वंद में, भी यह सब अनुचित है ||
था महाभारत युद्ध जीतने, मानव बलि जरूरी |
तब अरावन को अर्जुन ने, बतला दी मजबूरी ||

पहले शादी कर लेने की, उसने शर्त लगा दी |
फिर अपनी बलि खुद दे दूंगा, सबका दर्द बढ़ा दी ||
उसकी चाहत थी मरने से पहले शादी कर लूं |
मानुष तन का मधुरिम जीवन, अभिलाषा मन भर लूं ||

भारत में तो पतिव्रता की, पावन पुण्य कथा है |
हर नारी का अपना गौरव, अपनी अलग व्यथा है ||
अखिल विश्व परिवेश सुहागन, अहिवात अमर चाहे |
रौनकता के पीछे भागे, फूल भरी हो राहें ||

रक्तिम महाभारत तिमिर रन, एक रात रही बाकी |
किंतु अरावन को कोई भी , मिली न जीवनसाथी ||
अल्प समय सुहागन बनने, जीवन दाव लगा दे |
है कोई संकल्पवती जो, निज तन घाव लगा दे ||

तब श्री कृष्ण मोहिनी बनकर, उनका वरन किया था |
पति रूप मन मगन अरावन, जिनका चरण छुआ था ||
द्वितीय दिवस समर महाभारत, निज आहुति दे डाली |
सुहाग विहीन कृष्ण मोहिनी, काया किन्नर वाली ||

पुल्लीपुरम में अष्‍टदश का, तब से लगता मेला |
प्रति प्रसंग की याद दिलाकर, करते किन्नर खेला ||
खुद को कृष्ण मान्य करते ये, अरावन से शादी |
नाचती गाती धूम मचाती, वधु सिंगार सजाती ||

अंतर्मन में शेष रहे ना, विवाह की निज इच्छा |
किन्नर जन्म दिये विधि ने तो, ले ली कठिन परीक्षा ||
दूजे दिन सिंगार हीन हो, बनती विधवा नारी |
देखे अरावन मौत मातम , रो दे दुनिया सारी ||

किन्नर जीवन देखा तन मन , सूल चुभा रहता है |
बाहर चहके पर अंतर्मन, बुझा बुझा रहता है ||
हिंदू धर्म ग्रंथ सुचि वर्णित, पावन पुण्य कथाएं |
धिकमय जीवन पल पल चुभता किन्नर कथा बतायें ||


शेष अगले अंक में

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3 thoughts on “किन्नर व्यथा भाग-4 -डॉ. अशोक आकाश

  1. अद्भूत रचना… वाह डॉ साहब कितनी कसक है आपके रचना में।
    यति गति छंद कमाल का संयोजन.…. चित्रण ऐसे जैसे सब कुछ आँख के सामने चल रहा हो… अकल्पनीय।
    धन्यवाद।

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