किन्नर व्यथा भाग-5 -डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-5

किन्नर व्यथा भाग-5

किन्नर व्यथा भाग-5
किन्नर व्यथा भाग-5

किन्नर व्यथा – भाग 5

सुखमय दिव्य संसार सिरजने, गढ़ता विधि नार नारी |
किंतु किन्नर तन सिरजन हुई, भूल विकटमय भारी ||
जीवन भर भय हीन भावना, बसत मन गृह अंदर |
सोचनीय दयनीय दशा लख, इत उत ढुल मन इंदर || 1 ||

शिव शक्ति साक्षात सरूपा सदचिताानंद कारी |
देव यक्ष गंधर्व नाग सम, किन्नर मंगलकारी ||
इनके मन पावन सरिता सूची लहरें कल कल होती |
दबी हुई चिंगारी अंतस, दिग्चल हलचल होती || 2 ||

पुरुष सम कठ सख्त बलिष्ठ तन, मन नारी सा होता |
नवल किशोरों जैसे सोनल, मधुरिम सपने बोता ||
वंचित जग मातृ पितृ रिश्ता, सहारा गुरु मौसी |
नारी वेश भद पौरुष वाणी,झट मर्यादा खोती || 3 ||

मानव पशु पक्षी अरु तरुवर, धर किन्नर गुन होते |
जित लख नर मादा तन धारी, उत निरखत पुन्न होते ||
कदाचित् इन्हे देख लोग क्यों, भाव घीरना पाले |
चहक मचलते लोगन देखे, मुख में पड़ते ताले || 4 ||

जो देखे बस भरकर घिरना, गंदी गाली सहता |
नंगे पैरों जो पगडंडी, फुटपाथों पर रहता ||
काम कराते कम भोजन जो, हाथ लगा दे मारे |
भूखे पेट मरोड़े अतड़ी, तड़पे चीख पुकारे || 5 ||

खटता तपता सहता रहता, जग पाने खुशहाली |
कब आएगी इनके तन मन, मृत जीवन हरियाली ||
अब किस किस से कौन लड़ेगा, इनके हक की लड़ाई |
कौन करे संबित हित रक्षा, कर अभिमान बढ़ाई || 6 ||

चंचल मन नित आंधी चलती, बिखरे तिनका तिनका |
बिन अधार लड़ता रहता रन, तन जीवन निस दिन का ||
जीवन जूझे हल बैलों सा, क्या इनका कल होगा |
इनको समस्या कहती दुनिया, क्या इसका हल होगा || 7 ||

इनके जीवन में मधु पावन, सावन कब आएंगे |
टूटी माला बिखरी जिंदगी, खुशहाली छायेंगे ||
यह भी है संस्सृति गति संतति, जग अभिमान करो तो |
अतुलित क्षमता सह्य विषमता,अब गुनगान करो तो || 8 ||

सरेआम बाजार जिलालत, इज्जत उछली जाती |
घायल मन सैनिक सम जूझे, इनकी उथली थाती ||
धूल भरे अखबारों जैसी ,इनका जीवन माटी |
कीच भरे नालों मैं जीवन फिर भी हँस इतराती || 9 ||

अपनों ने जिनको ठुकराया, गैरों से क्या आशा |
जिसने देखा मुंह फेर ली, मिला दुत्कार निराश ||
हे भगवन ये वर दे ऐसा , फिर से जन्म न पाये |
धिकमय जीवन पल छिन चुभता किन्नर व्यथा बताएं || 10 ||

डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले अंक में

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