किन्नर व्यथा भाग-6
किन्नर व्यथा भाग-6
किन्नर व्यथा-भाग 6
नर आत्मा नारी तन धर जब, मातु गर्भ में आती |
नित सपने तारों की धरती, खुश माता इतराती ||
चंदन बूंदे गूंजे मंगल, गान करन श्रोतों से |
सजती बंदनवार द्वार, सूची रात आम पोतों से || 1 ||
दिख जाता सपने ढिग तारे, कभी चमकते टूटे |
खाई रत्न भंडार गिरा झट , कभी हाथ लय छूटे ||
उसे उठाकर देव पुरुष तत, मॉ उर मस्तक धारा |
संकर सम वरदानी संतति, सरसिज नयन सितारा || 2 ||
पापा कहते सोना बेटा, प्यारा नाम करेगा |
फैले जग उज्जवल सद्कीर्ति, ऐसा काम करेगा ||
सब अपने वंशज से उज्जवल, कीर्ति कामना करते |
निज सुत हित भूषण वर्धनकर, कष्ट सामना करते || 3 ||
जब अर्धनारीश्वर आत्मा, रत्न जहॉ में आती |
गर्भनाल नाजुक तन जकड़े , गर्दन तक कस जाती ||
इनके कांधे पर दुनिया का, भार पगाढ़ मुखर है |
किंतु सर्व प्राणी आवश्यक, क्षुधा पूर्ति उदर है || 4 ||
एक किन्नर जब अपने तन से, निकले बाहर घूमे |
भीतर गड्ढा ठहरा पानी,चंचल माथा चूमे ||
किसने बाहर कुंडी मारी, दरवाजा खटकाते |
दुखमय जीवन नित भटकाते, सुखमय पथ अटकाते || 5 ||
दुख भीतर गहरे में ठहरा, मैला पानी जैसा |
जितना उलीचो उतना भरता, दुखमय दलदल ऐसा ||
किन्नर मन अनुरूप नहीं यह, देह तो कारागर है |
ऊपर मोटी मांस दीवारें, कष्ट न पारावर है || 6 ||
बाहर झॉको खुशियां भरती, सागर के हिचकोले |
मन दहके शोले अपमानी, बहके दुख हत गोले ||
अंधियारा सीलन भरा तन, आंखें खिड़की खोले |
झांक झांक पट बाहर देखे, छटपट जियरा डोले || 7 ||
किन्नर है तो क्या ? इन पर भी, नेह जरा बरसाओ !
संतति लालसा में नहि इनका, जीवनदीप बुझाओ ||
आगे बढ़ने तत्पर होती, तुरत दबोचा नोचा |
मंजिल की सीढ़ी से पहले, तूफानों ने रोका || 8 ||
पीछे कदम रखे अब कैसे, कुछ चाहत बनने की |
उठा उग्र तूफान कदम से ,कदम मिला चलने की ||
हे भारत माता प्रिय तनया ! तन मन मगन करेगी |
बढ़ गांधी सुभाष सुधि सपनों, का निज सिजन करेगी || 9 ||
कदम बढ़ाया चौखट से जब, जिसने पाया देखा |
मन की पावनता के कारण, अक्सर खाती धोखा ||
इनकी किन्नर देह घूरकर, जिसने पाया देखा |
कैसा विकृत देह बदल गई, जीवन क्रंदन रेखा || 10 ||
उनके मन की पीड़ा सुनने,वाला कौन यहां है |
इनके मन की दुविधा गुनने, वाला कौन यहां है ||
किसे कहें अपना जब मां पवि, ममता मर जाती है |
वक्त से पहले इनकी दुनिया, बिखर उजड़ जाती है ||11 ||
यह भी अहिल्या दुर्गा या लक्ष्मी, इंदिरा बन सकती है |
दुश्मन फौज पर दीवार बन, आगे तन सकती है ||
उसकी पीड़ा गैर क्या समझे, अपना समझ ना पाए |
धिकमय जीवन पल छिन चुभता, किन्नर व्यथा बतायें || 12 ||
डॉ. अशोक आकाश
बालोद
अद्भुत काव्य कला, विश्वास नहीं होता यह मैंने नहीं भगवान ने स्वयं लिखा है, मैं यही महसूस कर रहा हूं