किन्नर व्यथा भाग-8 -डॉ. अशोक आकाश


गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-8
किन्नर व्यथा भाग-8

किन्नर व्यथा भाग-8

किन्नर व्यथा भाग-8

दग्ध किशोरावस्था तिक्त तन, लखता नारी लक्षण |
किन्नर वर्ग परख ले जाता, विनय मना नत तत्क्षण ||
अपहित लड़के जबर जकड़के, बुचर बना वृहनल्ला |
ऐसे बुचरा अति कर निखरा, बन किन्नर धंध दल्ला ||1||

गंदी आतंकी करनी से, मिलती जग बदनामी |
पतन करे सज्जन समाज छवि, व्यसनी कुपथगामी ||
पथ बहुरूपिया स्वॉग रचाये, डरा डरा जग लुटे |
अश्लील हरकतें सघन आस्था, गहन धारणा टूटे || 2 ||

सभ्य शालीन कुलीन जनों से, हुड़दंगी कर देते |
परिजन संग बैठे लोगों के, झट मन भर भर देते ||
सफर दंगई झुंड गुंडई, देख फैले सन्नाटा |
कोई कुछ भी कर न सके पर, मन सबका भन्नाता || 3 ||

मनमाफिक धन मांगे सबसे, पौरुषता ललकारे |
लहंगा उठा छाती हिला, कमर मटका दुत्कारे ||
काटो खून नहीं जन हतप्रभ, जो मांगे झट दे दे |
हिजड़े से गया गुजरा कह, अभद्र बद्दुआ दे दे || 4 ||

युवा किशोरों को चिकना कह, गाल छुए चट चूमे |
महिला के कुल्हे पे चिकोटी, कॉट हॉस सब झूमे ||
किसी को गबरु कह उसके तन, अति अभद्र सहलाये |
जो उसके सुर में सुर मिला दे, वही दिलेर कहाये || 5 ||

मातृ पितृ सम्मुख कर देता, लज्जित बेटी बेटा |
असली किन्नर भाव विनयवत, जो दे पुलकित लेता ||
पता चले जब नकली किन्नर, लोग दिखा भय लुटे |
तब असली किन्नर दल सेना, छूट भयंकर कुटे || 6 ||

निज अभिमान सुरक्षा करना, जो समाज नहि जाने |
उनका गौरव गान मिटेगा, यह अकाट्य सच माने ||
जिसे कभी भी सभ्य समाज, अपने अनुकूल न माने |
ईश्वर की विकृत रचना लख, उपज दर्द पहचाने || 7 ||

शब्दों से ही आग है बुझता, शब्दों से ही बाग सजे |
शब्दों से तन आग है लगता, शब्दों से मन दाग लगे ||
वाणी जितनी मीठी दिलकश, जीवन पथ मधुरस हो |
कर्कश वाणी सठ जीवन पथ, कालिखमय अपयश हो || 8 ||

शब्दों के बाजीगर कोई, शब्द अस्त्र संधान करो |
शब्द किसी का दिल ना तोड़े, ऐसा जग निर्माण करो ||
लूट मचाते दुर्जन सज्जन, के मन अगन लगाए |
धिकमय जीवन पल छिन चुभता, किन्नर व्यथा बतायें || 9 ||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले भाग में

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3 thoughts on “किन्नर व्यथा भाग-8 -डॉ. अशोक आकाश

  1. बहुत ही अद्भुत सृजन गुरुदेव
    अशोक आकाश जी
    बेहतरीन रचना के लिए अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं

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