किन्नर व्यथा भाग-9 -डॉ. अशोक आकाश


गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-9
किन्नर व्यथा भाग-9

किन्नर व्यथा भाग-9

किन्नर व्यथा भाग-9

पितृ तनय नाता रह वंचित, तनी गुरु बन बेटी |
गिरिसम मनतमतल अतल खोह,आक्रोश हिलोरें लेती ||
ताली ठोके आय हाय कह,हाय हाय जग दर दर |
करते किन्नर हाय लगी तो, हाय हाय जीवन भर | || 1 ||

तन तपाये तड़पत साधना, रत रहता नित साधू |
जाके शुभाशीष प्रसीदत, कलुषित जीवन जादू ||
किन्नर वाणी ब्रह्मउवाचे, सत्य अद्य द्रुत कल में |
युग सहस्र वलय परिमार्जित, परिणित अज द्विज पल में || 2 ||

स्वर्णिम स्वारथ चाह नहीं यह, जीने तन मन साधे |
नित मन आरत रत परमारथ,पेट भरे तन आधे ||
भटक तपाया दर-दर जीवन, लगती उनकी बानी |
मन दगदग शोले दहके पुनि, बिहसे मधुरस वाणी || 3 ||

मांगलिक शुभ घड़ी घरो घर, कर नर्तन अन्न पाया |
रूह बेच दी भीख मजूरी, पालने पंछी काया ||
जली तवा जस तन गुब्बारा, किसने सुई चुभोई |
देह बंसरी बन बज उठता,रख दे उंगली कोई || 4 ||

मन संदेह पिटारा खुलता,आँसू खून बहाया |
पॉव मनो भारी हो जाता,थक मन जर्जर काया ||
बंजर जीवन पतझड़ मौसम,पा किन्नर तन चेहरा |
सज दूल्हा बन दुल्हन लाये, सपन लगे निज सेहरा || 5 ||

बिना किसी गलती जीवन भर, घोर यातना भोगे |
इस विडंबना पर कवि कहता, दाग ह्रदय झट धोदे ||
विकलांग जन्मांध दिमागी, कमजोरी दिखे जिनमें |
उनके जैसी ही विकलांगता, देख लो किन्नर तन में || 6 ||

अब परिवार समाज सरकार, संवेदना दिखादे |
बुझा दावानल दिखा मानवता, अंगलग स्वजन बतादे ||
जिसके तन कुछ कमी है तो फिर,उसका दोष बतायें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता,किन्नर व्यथा बतायें || 7 ||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले भाग में

Loading

2 thoughts on “किन्नर व्यथा भाग-9 -डॉ. अशोक आकाश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *