आंदोलनकारी किसान द्वारा लाल किले पर झंड़ा फहराना कई प्रश्‍न खड़े कर रहे हैं

आंदोलनकारी किसान

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी असंख्‍य भारतीय विभिन्‍न टी.वी. चैनलों में राजपद में आयोजित गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देख रहे थे, सैन्‍य मार्च, फ्लाई मार्च, विभिन्‍न राज्‍यों की झांकियां । अभी-अभी कार्यक्रम संपन्‍न हुआ ही था लोग टी.वी. बंद भी नहीं कर पाये थे कि टी.वी. पर किसान आंदोलनकारियों का ट्रेक्‍टर परेड़ का दृश्‍य टी.वी. पर दिखने लगे । यह साफ-साफ दिखाई देने लगा कि ये आंदोलनकारी किसान अनियंत्रित होकर दिल्‍ली के विभिन्‍न सड़को पर कैसे उपद्रव मचाने लगे थे । कहीं तलवार लहराया गया तो कहीं  तलवार से पुलिस पर हमला भी कर दिया गया । ये आंदोलनकारी किसान बैरिकेट्स को बलपूर्वक हटाते हुये हठधर्मिता पूर्वक आगे बढ़ते रहे । हद तो तब हो गई जब ये प्रदर्शनकारी लालकिले पर आ धमके और देखेते ही देखते वो कृत्‍य कर गये जिससे सभी राष्‍ट्रप्रेमी देशवासियों का सिर शर्म से झुक गया है । राष्‍ट्रीय स्‍वाभिमान के प्रतिक लालकिले पर राष्‍ट्रीय ध्‍वज के समांतर खालसा ध्‍वज फहरा दिया गया । किसान आंदोलनकारी द्वारा लाल किले पर झंड़ा फहराना कई प्रश्‍न खड़ा कर रहे हैं ।

आंदोलनकारी किसान  द्वारा लाल किले पर झंड़ा फहराना कई प्रश्‍न खड़ा कर रहे हैं
आंदोलनकारी किसान द्वारा लाल किले पर झंड़ा फहराना कई प्रश्‍न खड़ा कर रहे हैं

लालकिले पर राष्‍ट्रीय ध्‍वज के अतिरिक्‍त किसी भी अन्‍य ध्‍वज का यहॉं फहराया जाना आजाद भारत की पहली घटना है । यह घटना केवल और केवल राष्‍ट्रीय शर्म है । असंख्‍य देशप्रमियों की आत्‍मा आज आहत हुई । इस घटना से असंख्‍य प्रश्‍न देश के सम्‍मुख उठ खड़े हुये ।  आखिर इस घटना के लिये जिम्‍मेदार कौन ? क्‍या आंदोलन के नाम पर ऐसा कृत्‍य किया जा सकता है ? लालकिले के प्राचिर के सुरक्षा पर लगे सुरक्षाकर्मियों का इस प्रकार असफल होना सही है ? क्‍याा सरकार द्वारा आवश्‍यकता से अधिक रक्षात्‍मक होने का परिचय देना सही है ? क्‍या राष्‍ट्रीय स्‍वाभिमान के मूल्‍य पर भी विपक्षियों द्वारा आंदोलन को समर्थन देना सही है ? 

आजकल यह यह दृश्‍य आमबात हो गई है कि लोग संविधान की दुहाई देते हुये अपने अधिकारों के लिये कुछ भी कर गुजरने को दिखाई देते हैं । जायज नजायज मांगों को लेकर आंदोलन खड़ा करना और संवैधानिक अधिकार के नाम पर राष्‍ट्रीय संपत्‍ती को नुकसान पहुँचाना, यहॉं तक की राष्‍ट्रीय प्रतिकों का अपमान करना आम हो गया है । इसस पहले कई मौकों पर राष्‍ट्गान का अपमान होते हुये हमने केवल देखा-सुना नहीं अपितु बर्दाश्‍त भी कर लिया । कई मौकों पर राष्‍ट्रीय ध्‍वज का भी अपमान होते हुये देखा और बर्दाश्‍त किया । आज राष्‍ट्रीय स्‍मारक का भी अपमान होते हुये भी हमने देख लिया । उस राष्‍ट्रीय स्‍मारक का अपमान, जिसे आजादी के प्रतिक के रूप में आजादी के पश्‍चात से हर वर्ष स्‍वतंत्रता दिवस के दिन अपने स्‍वतंत्रता के प्रतिक तिरंगा फहराया जाता है । इस स्‍मारक पर आज आंदोलनकारीयों ने तिरंगा के समांतर अपना ध्‍वज लहराया ही नहीं अपितु उस ध्‍वज दण्‍ड पर, जिस पर प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराते हैं उसी ध्‍वज दण्‍ड़ पर अपना ध्‍वज फहरा दिया ।

इस घटना के लिये कोई सरकार को दोष दे सकता है, कोई आंदोलनकारी को दोष दे सकता है तो कोई विपक्षी दलों को दोष दे सकता है । ऐसा करना केवल और केवल एक दूसरे पर दोषारोपण करना होगा वास्‍तव में यह सामूहिक रूप से अपने दायिात्‍वों के प्रति विमुख होने का परिणाम है । न ही सरकार अपने कर्तव्‍या निभा पाने में सफल रहा न ही आंदोलनकारी और न ही विपक्षी दल । सभी लोग कहीं न कहीं इस घटना के लिये जिम्‍मेदार दिख रहे हैं ।

आज प्रश्‍न किसान आंदोलन के समर्थन में या विरोध में होने का नहीं है । प्रश्‍न तो यह है कि संविधान के नाम पर संविधान की ही आत्‍मा को कब तक आहत की जा सकती है ? संविधान क्‍या पूरी सृष्टि ही अधिकारों के बल पर नहीं कर्तव्‍यों के बल पर टिका हुआ है । हमारे संविधान में भी अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्‍यों का भी स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है । भाग 4 क अनुच्‍छेद 51 क में पहला मौलिक कर्तव्‍य निर्धारित किया गया है कि – ‘प्रत्‍येक नागरिक संविधान का पालन करे और उसके आदर्शो, संस्‍थाओं, राष्‍ट्र ध्‍वज,और राष्‍ट्र गान का आदर करे ।” शेष मौलिक कर्तव्‍यों को छोड़कर केवल इस पहले ही कर्तव्‍य का पालन किया जाये तो संविधान की आत्‍मा की रक्षा की जा सकती है ।

मौलिक कर्तव्‍यों का पालन करना जब प्रत्‍येक नागरिक कर्तव्‍य है तो इसका उल्‍लंघन संविधान का उल्‍लंघन नहीं है ?  संविधान का इस प्रकार उल्‍लंघन करने वाले लोग फिर किस मुँह से संविधान की बात करते हैं ? क्‍यों इन्‍हें संविधान में केवल अधिकार ही  दिखाई देते हैं कर्तव्‍य नहीं ?

मौलिक कर्तव्‍यों का पालन सुनिश्चित करना किसकी जिम्‍मेदारी है ? नि:संदेह सरकार को इस दिशा में पहल करना चाहिये । संवैधानिक ढांचा में पक्ष और विपक्ष दोनों का समान महत्‍व है दोनों को मिलकर  संविधान की रक्षा करनी चाहिये । किन्‍तु कटु प्रश्‍न है क्‍या राजनैतिक पार्टी ही देश है? केवल राजनेताओं की ही जिम्‍मेदारी है ? आम नागरिकों की जिम्‍मेदारी नहीं है ? देश के विभिन्‍न संगठन जो अधिकार के लिये आंदोलन खड़ा करते हैं उनकी जिम्‍मेदारी नहीं है कि वे अपने मौलिक कर्तव्‍यों का पालन सुनिश्चित करें ?

देश में जितने लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं उसका 1 प्रतिशत लोग भी कर्तव्‍यों के प्रति जागरूक नहीं दिखते । आज आवश्‍यकता इस बात कि है लागों को कर्तव्‍यों के प्रति भी जागरूक किया जाये । हमारे शैक्षणिक ढांचा का इस प्रकार विकास किया जाना चाहिये कि लोग बाल्‍यकाल से अपने कर्तव्‍यों के प्रति जागरूक और सचेत रहें । अपने अधिकारों की बात करते समय यह भी ध्‍यान रखें कि दूसरों के अधिकारों का हनन न हो । आज लोग जैसे अपने अधिकारों को लेकर मुखरित हैं उसी प्रकार अपने कर्तव्‍यों के प्रति भी जागरूक हों, तभी देश की अखण्‍ड़ता एवं एकता अक्षुण रह पायेगी ।


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