किसान अउ किसानी के कविता
-रमेश चौहान
किसान अउ किसानी के कविता
हमर किसान (घनाक्षरी छंद)-
मुड़ मा पागा लपेटे, हाथ कुदरा समेटे,
खेत मेड़ मचलत हे, हमर किसान गा ।
फोरत हे मुही ला, साधत खेत धनहा,
मन उमंग हिलोर, खेत देख धान गा ।
लहर-लहर कर, डहर-डहर भर,
झुमर-झुमर कर, बढ़ावत शान गा ।
आनी-बानी के सपना, आंखी-आंखी संजोवत,
मन मा नाचत गात, हमर किसान गा ।
नांगर बइला फांद, अर्र-तता रगियाये
जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के ।
दुनिया के रचयिता, जग पालन करता
दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।।
धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा
दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा ।
तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना
तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।
किसान के किसानी (कुण्डलियां छंद)-
नागर बोहे कांध मा, किसान जावत खेत ।
संग सुुवारी हा चले, कुदरी रपली लेत ।।
कुदरी रपली लेत, बीजहा बोहे मुड़ मा ।
बइला रेंगे संग, चलत हे अपने सुर मा ।
पहुॅचे हे जब खेत, सरग ले लगथे आगर ।
अर्र अर-तता गीत, गात जब जोते नागर ।।
होगे किसान व्यस्त अब, असाढ़ आवत देख ।
कांटा-खूटी चतवार अउ, खातू-माटी फेक ।
खातू-माटी फेक, खेत ला बने बनावय ।
टपकत पानी देख, मने मन मा हरसावय ।।
‘पागा बांध रमेश‘, बहुत अब तक तै सोगे ।
हवय करे बर काम, समय बावत के होगे ।।
सरग उतर गे खेत मा, छोड़ के आसमान ।
करत हवे बावत गजब, जिहां हमरे किसान ।।
जिहां हमरे किसान, भुंइया के जतन करत हे ।
धरती के भगवान, जगत बर धान छिछत हे ।।
देखत अइसन काम, सुरुज हा घला ठहर गे ।
देखे के ले साध, खेत मा सरग उतर गे ।।
संगी चल चल खेत मा, बोये बर गा धान ।
राग पाग सुघ्घर लगत, कहत हवंय किसान ।।
कहत हवय किसान, हाथ बइला मा फेरत।
धरे बीजहा धान, दुवारी मा नागर हेरत ।।
भरही कइसे पेट, करे मा आज लफंगी ।
आज कमा के काल, खाय ला पाबो संगी ।।
किसान के गॉंव (मत्तगयंद सवैया)-
गांव बसे हमरे दिल मा हम तो लइका अन एखर संगी ।
गांवन मा सबके ममता मिलथे कुछु बात म होय न तंगी ।।
जोतत नागर खेत किसान धरे मुठिया कहिथे त तता जी ।
खार अऊ परिया बरदी म चरे गरूवा दिखथे बढि़या जी ।।
किसान तै हमर भगवान (छबि छंद)-
धरती हमार । तैं हर सवार
हमरे मितान । आवस किसान
कर ले न चेत । जाके ग खेत
जांगर ल टोर । माटी म बोर
ओ खेत खार । धनहा कछार
बसथे ग जान । बाते ल मान
नांगर ल जोत । तन मन ल धोत
अर अर तता त । अर अर तता त
उबजहि ग धान । सीना ल तान
घात लहरात । घात ममहात
पीरा ल मेट । भरही ग पेट
जांगर तुहार । जीवन हमार
गाबो ग गीत । तैं हमर मीत
जय जय किसान । तैं ह भगवान
किसानी के काम आय पूजा आरती (गीतिका छंद)-
काम ये खेती किसानी, आय पूजा आरती ।
तोर सेवा त्याग ले, होय खुश माँ भारती ।।
टोर जांगर तैं कमा ले, पेट भर दे अब तहीं ।
तैं भुईयां के हवस गा, देव धामी मन सहीं ।। 1।।
तोर ले हे गाँव सुघ्घर, खेत पावन धाम हे ।
तैं हवस गा अन्नदाता, जेन सब के प्राण हे ।।
मत कभू हो शहरिया तैं, कोन कर ही काम ला ।
गोहरावत हे भुईंयां, छोड़ झन ये धाम ला ।।2।।
बनिहार के दुकला परगे (गगनांगना छंद)-
मिलत हवय ना हमर गांव मा, अब बनिहार गा ।
कहँव कोन ला सुझत न कूछु हे, सब सुखियार गा ।।
दिखय न अधिया लेवइया अब, धरय न रेगहा ।
अइसइ दिन मा हमर किसानी, बनय न थेगहा ।।
कइसे कहँव किसान ला (कुण्डलियां)-
कइसे कहव किसान ला, भुइया के भगवान ।
लालच के आगी बरय, जेखर छतिया तान ।।
जेखर छतिया तान, भरे लालच झांकत हे ।
खातू माटी डार, रोग हमला बांटत हे ।।
खेत म पैरा बार, करे मनमानी जइसे ।
अपने भर ला देख, करत हे ओमन कइसे ।।
घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक ।
अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।।
थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया ।
बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।।
ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा ।
पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।।
नैतिक अउ तकनीक के, कर लौ संगी मेल ।
मनखे हवय समाज के, खुद ला तैं झन पेल ।।
खुद ला तैं झन पेल, अकेल्ला के झन सोचव ।
रहव चार के बीच, समाजे ला झन नोचव ।
सुनलव कहय ’रमेश’, देश के येही रैतिक ।
सब बर तैं हर जीय, कहाथे येही नैतिक ।।
-रमेश चौहान