व्यंग्य: किसे मैं याद करूं?
-डॉ. अर्जुन दुबे
आदि कवि वाल्मीकि जी तमसा नदी में स्नान कर रहे थे; क्रौंच युगल नर मादा क्रीड़ा करते हुए प्रणय भी कर रहे थे और ऋषि वाल्मीकि जी उन्हें अपलक निहार रहे थे; न ऋषि को भान और न ही युगल पक्षी को कि कब नर शिकारी ने नर क्रौंच को तीर से बींध दिया, और फिर शुरू हो गया मादा क्रौंच का अपने साथी की दशा पर विछुड जाने के परिणाम पर करूण क्रंदन, जिसे सुन कर देखा, निशब्तता टूटी, शब्द निकले और ऐसे निकले कि श्राप बन गये उस शिकारी के लिए। ऐसा नहीं नहीं रहा होगा कि इसके पहले शिकारी ने शिकार नहीं किया होगा और ऋषि ने नहीं देखा होगा ऐसा दृश्य, किंतु शिकारी ने स्वार्थवश परिस्थिति और मर्यादा का ध्यान नहीं रखा। परिणाम वेदना युक्त शब्द का वेदना से परिपूर्ण आकार जो अनादि काल से अनंत काल तक रहेगा, तभी तो निराला जी के शब्दों में, वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।
मैनिया टूटी कि तंद्रा टूटी, नहीं, नहीं मैनिया , मैनिया ही रही, कल्पना भंग हो गयी, शब्द के अर्थ खोजने लगा; अरे, यह क्या नये अर्थ मिल रहे हैं। यह तो आश्चर्य है, नये अर्थ, नये शब्द नयी रचना। कमाल है!
इसी कमाल में तो साहित्य है, इसी में तो भाषा अपने नियम और रूप लिए साहित्य में समा जाती है। पर कौन इसका वाहक है? रचनाकार, कोई संशय? नहीं संशय तो नहीं है किंतु रचनाकार को कौन जानेगा, अगर जानेगा तो कैसे?
पढ़कर पाठक बतायेगा। किंतु पाठक पढ़ेगा! और पढ़ने वाले को कोई सुनेगा! सभी नहीं, बहुत कम।
तब कैसे? दिखा कर पढ़ें जैसे पीपीटी द्वारा अथवा अन्य माध्यम से करते हैं। अच्छा, इससे सुनेंगे? नहीं, मैं खुद नहीं सुनता हूं पर क्यों? उसकी कापी हैं न, हर चीज संरक्षित है और जब चाहूंगा तो देख सुन लूंगा! कब चाहोगे? छोड़ो, समझ गया मैं।
अच्छा बताओ आज कल क्या करते हो? सुनो, जब टेक्नोलॉजी नहीं थी, जो अच्छा सुनाता था अर्थात जिसमें मेलोडी होती थी, उसका क्या पूछना! तानसेन के बारे में सुना है न? नियम, सिद्धांत थे पर नयी मेलोडी दिये थे, सुना है देखा नहीं है क्योंकि टेक्नोलॉजी नहीं थी। टेक्नोलॉजी का क्या काम?
जब टीवी नहीं था तब मुकेश और लता जी के मेलोडी में राम चरित मानस का पाठ सुनते थे। हां सुनते थे, बहुत अच्छा लगता था और रचनाकार तुलसीदास जी भी स्मरित हो जाते थे।
फिर टीवी टेक्नोलॉजी, अब अनेक माध्यम, ने कथानक और रचनाकार दोनों को जीवंत कर दिया। वह कैसे? उस कथानक को निभाने वाले चरित्रों द्वारा।
पर चरित्र तो भी नश्वर हैं। व्यक्ति नश्वर है, चरित्र तो जब तक कथानक रहेगा तब तक अमरता की स्थिति में रहेंगे।
-डॉ. अर्जुन दुबे
सेवानिवृत्त प्रोफेसर