श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ की दो अतुकांत कवितायें

श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ से एक परिचय-

श्री कृष्‍णकुमार भट्ट 'पथिक' की दो अतुकांत कवितायें
श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ की दो अतुकांत कवितायें

श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ एक संपादक, समीक्षक एवं आलेखकार के रूप में जाने जाते हैं । आपने अपने विद्यार्थी जीवन से ही 1967-68 में लेखन कार्य का श्रीगणेश किया और 1972 में शासकीय शिक्षा महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका का संपादन किया ।  आपके प्रकाशित कृति ‘शहर का गाड़ीवान‘ (काव्य संग्रह), ‘युग मेला‘ (काव्य संग्रह) आपके सृजनात्मक क्षमता को प्रकट करने में समर्थ रहा है।  ‘इतिहास की साहित्य पगडंड़ियों पर‘ समीक्षा ग्रंथ से समीक्षा के पगडंड़ियों पर चलना प्रारंभ कर दिये । ‘चेहरे के आसपास‘ (कहानी संग्रह) का संपादन कर आपने समीक्षक एवं संपादक के रूप में अपना स्वयं का परिचय साहित्यकारों से कराया । आकाशवाणी रायपुर से फाग पर ‘नाचे नंद को कन्हैया‘ वार्ता का प्रसारण हुआ है तथा आकाशवाणी बिलासपुर से आपका साक्षात्कार प्रसारित हुआ है । कवि सम्मेलनों के तामझाम से दूर आप प्रादेशिक, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय साहित्य शोध संगोष्ठियों में आनंदित रहते हैं । प्रस्‍तुुुत है आपके दो नवीन कतिवतायें-

श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ की अतुकांत कविता- ‘दीवारों पर नये कलेण्‍डर’

नये वर्ष में फिर आ गया हूॅजिन्‍दगी की तलहटियों में
अयाचित बारिश की फहारों में
समस्‍यायें नदी झाील झरने की तरह
बर्फ की तरह जम सी गई हैं
इतिहास के थपेड़ों के ओलों से
मौसम करवट बदल रहा है संकल्प का
नये संकल्‍प नागरिक कानून संशोधन की तरह
वाद-विवाद, संदेह,भ्रमों दलदल से
उग रहे हैं, पुष्‍पगंधा हवाओं की तरह
मैं भी जाना चाहता हूँ
कार्यो की उस सीमा तक,लगातार
जिसके आगे राह नहीं है, सपनों की तरह
ढ़ूँढ़ता है मन, पुराने वर्ष की सफलतायें
नये वर्षो की राहों पर संकल्‍प सपनों की नई उड़ानें
मैंने कभी नहीं चाहा, सुविधाओं के शिविर
मैं लड़ता रहा हूँ, अपने दोनों हाथों से
नये वर्ष के संकल्‍पों के लिये
नये जीवन संघषों से, नये बुद्धिजीवी रास्‍तें
नकारात्‍मक सोचों से अलग
मेरे पास, सकारात्‍मक सोचों के रास्‍ते हैं
बसंत तक ले जाती हैं,जिन्‍दगी की तलहटियॉं
बसंत, कुंडली मारे बैठा है
वह चाहता है नये इतिहास
नये संकल्‍प, नये कार्य, नये टाइमटेबल पर
मदारी के नये वर्ष की नागिन बीन
भविष्‍य के नये दिनों के, नये सूरज
इबारत, इमले लिख सकें
नयी सफलताओं के, नये सुखों के
नये कार्य के, नये वर्ष के कलेण्‍डर
मेरी दीवारों पर टंग चुके हैं

श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ की अतुकांत कविता-‘शब्‍दों के लाॅकअप से’

कोर्ट, कचहरी जाने से पहले
पुलिस थानों के लॉकअप में होते हैं आदमी
शब्‍दों, आचरण की मर्यादा से बाहर
उपयोग करते करते स्‍टार्टअप में होते हैं आदमी
कब तलक ढोते रहेंगे आप यह लोकतंत्र
दूसरों के कंधों पर अपना हाथ रखकर
सुविधाओं की फसल होती हैं उनकेपास,
मौन रहते है लॉकअप शटअप होते हैं आदमी
शब्‍दों के लॉअप से बाहर आते हैं
अपनी पीड़ाओं के गपशप से बाहर आते हैं
विचारों की आंधी तोड़ देती है फिर पुराने पंख
लोकतंत्र के नये पैमाने लॉकअप से बाहर आते हैं
जिन्‍दगी की आपाधापी पर आपका सारा ध्‍यान है
आलमारियों  के लॉकअप में बंद पुस्‍तकीय ज्ञान है
इन्‍द्रधनुुषीय रंगजीवन के क्‍यों लॉकअप में
बस थोड़े से अध्‍ययन से खुलता हुआ म्‍यान है
-कृष्‍ण कुमार भट्ट 'पथिक'

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एक महात्‍मा साहित्‍यकार-श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’ 

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