कुछ कवियायें अवकाश में (भाव विविध विभिन्न)-
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
कुछ कवियायें अवकाश में –
1. फिर उठें अगस्त्य–
फिर उठें अगस्त्य खोज करें बिंदु, क्या पुनः पियें उदधि, क्यों भला दबाव! हों स्वतः प्रवृत्ति, हों सही प्रयत्न क्यों करे उदधि धरे छुपा सूक्ष्म बंध! एक बिंदु हेतु क्यों हज़ार बिंदु शुष्क हों, क्यों अनंत जीव जंतु कर्म बन अशक्त हों।
2. हमीं किन्तु हठी बने
गीत भी लिये हुए अनंत कोटि मधुर मधुर , शक्ति के अनेक घोष, और उच्छ्वास ले प्रयत्न चल रहे निरत दृष्टि भी ,दिशा भी किन्तु एक कहीं छिद्र कर्म सभी सोख कर , उलट फेर कर रहा, कर्म सब भिगो रहा , राष्ट्र कह रहा बचें, व्याधि अभी शेष है, हमीं किन्तु हठी बने मास्क फेंक चल पड़े।
3. हवा बह रही है सुबह, आह की तरह
कहाँ छुप गए सुबह चाँद की तरह, हवा बह रही है सुबह,आह की तरह । कतार में खड़ी रहीं,रात भर ख्वाहिशें, सुबह हुई ,गर्द उड़ी,और वो निकल गए। हज़ार ख्वाब सोख कर निकल रही किरन कोई, तभी तो तेज़ लग रही ,जला रही ,चुभो रही। हज़ार जुल्म ठीक थे ,आस थी आह भरी, जवाब चलो आ गया,आंख मगर भर गई।
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
कवि परिचय-
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक ही , बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी कवितायेँ लगभग दो दर्जन साझा संकलनों में भी प्रकाशित हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं । )
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह की अन्य रचना –श्रद्धा के दो शब्द : सिर्फ अक्षर ही नहीं शायद बनाते छाँव