कुछ यूँ ही कवितायेँ
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

1.यूँ ही ढुली रात
बीत गया दिन
यूँ ही कल ढुली रात
जगे रहे स्वप्न
न हुई बात!
कई उड़े संदेश
इधर- उधर, बार- बार ,
दिखे वो मगर
नज़र उलझ फंसी तार !
चाय भीगी सिमट सिमट
खुशनुमा गुलाल,
बात चार बोल बाल
पुनः अश्रु धार !
छुप गए कहां
मिलो सही एक बार
ढल रही है धूप
आस लगे तार तार!
2.लिख लिख भेज रहे खत उनको
लिख लिख भेज रहे खत उनको
वो कहते हैं मर्यादायें
क्यों न घोंटा आकांक्षायें
क्यों फूली पनपी आशायें !
यूं ही अगर चले जाना था
क्यों सींचा था प्रेम इस तरह
यूं ही इस मरू स्थल में
क्योंकर हरे पौध उग आये !
3.वह भी क्या क्षण उलझ गये
वह भी क्या क्षण उलझ गये ,
बीती कितनी फिर बरसातें ,
धुली हुई कुछ दृष्टि अलग सी
फिर से वही अकेली रातें।
अनकहे , कहे या छिपे प्रयोजन ,
भ्रामक से कुछ कथन अलग से
मन में कुछ रह बचा कहीं तो ,
तब ही शांत बची बस यादें।
जाने कितनी सुनी – सुनायीं
साँझ -सवेरे उन्हें कहानी ,
जाने कितने व्यक्त प्रयोजन
कितने फिसले भाव उघारे।
थमी हुई सी सृजन श्रंखला
पथरीली सी दिखती राहें।
वही रास्ते वही मोड़ हैं ,
न सुनाने वाला वहाँ कहानी।
4.और रात फिर पसर
आज फिर वही सड़क
दिखा फिर वही चाँद
लौट गयी दोपहर
द्वार खटखटा रहा चाँद।
याद मन मसोस कर
भाप बनकर उड़ गयी ,
चाँद भी अजीब सा
भाव सोख कर रहा।
साँझ ढली ढल गयी
और रात फिर पसर
असलियत बता गयी।
5.बँटा हुआ क्षितिज
चाँद फिर बहका उस ओर आज
पुराने पत्थरों पार बस्तियों में उलझ
फंसा रहा कई दिवस ,बिना काम नासमझ।
कौन रहा देख , धुंध भरी गली ,
धुआँ- धुआँ शहर ,मन मसोस ,मन मसोस
रह गया विचार ,उलझ -उलझ , लिपट -सिमट
धुआँ सघन , कभी विरल ,उलझ- उलझ विचार
चाँद गिरे ,फिर उठे ,फिर चले फिसल – फिसल ,
कह रहा क्या करे ,कहाँ नज़र किस तरफ
हर तरफ धुंधलका , हर तरफ तरल पदार्थ।
चाँद कह रहा “नहीं “
यह नहीं उसे स्वीकार, नहीं उसे स्वीकार।
रहे कहीं सघन दृष्टि , या विरल किसी प्रकार
उसे नहीं स्वीकार।
कह रहा -परवरिश ,कह रहा- समाज ,
किन्तु जान रहे , सुनो , बँट गया प्रकाश।
ढूंढ लो , ढूंढ सको सफ़ेद किरण , पीत किरण
चमक दमक जो मिले ,लो – लिखो प्रकार।
बँटा क्यों प्रकाश , बँटी क्यों हवा , बँटा हुआ क्षितिज !
क्यों रहे आस , क्यों रहे प्यास ,
भरी धूल हर तरफ, बची खुची उड़ी आज।
दृष्टि बंधी , दृष्टि रुकी
चाँद को भी तो लगता होगा यार।
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह के विषय में
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।