कुण्डलियां छंद की संपूर्ण जानकारी
(छंद और रमेश – रमेश चौहान का छंद)
कुण्डलियां छंद-
कुण्डलियां छंद एक विषम मात्रिक छंद है । जिसमें 6 पद 12 चरण होते हैं । यद्यपि सभी 6 पदों में 24-24 मात्राएं होती हैं किन्तु पहले दो पदों में 13,11 यति से चौबीस मात्राएं होती हैं जबकि शेष चारों पदों में 13,11 यति पर चौबीस मात्राएं होती हैं । वास्तव में कुंडलियां छंद दोहा और रोला दो छंदों के मेल से बनता है । कुंडिलयां में पहले दोहा फिर रोला आता है । दोहा में 13,11 के यति से 24 मात्राएं होती हैं जबकि रोला में 11,13 यति पर 24 मात्राएं होती हैं ।
कुण्डलियां छंद में कुण्डलियां छंद की परिभाषा-
दोहा रोला जोड़कर, रच कुण्डलियां छंद ।
सम शुरू अंतिम शब्द हो, प्रारंभ अंतिम बंद ।।
प्रारंभ अंतिम बंद, शब्द तो एकही होते ।
दोहा का पद अंत, प्रथम पद रोला बोते ।।
तेरह ग्यारह भार, छंद रोला में सोहा ।
ग्यारह तेरह भार, धरे रखते हैं दोहा ।।
कुण्डलियां की विशेषताएं-
उपरोक्त परिभाषा से कुंडलियां के निम्न लक्षण या विशेषताएं कह सकते हैं-
- कुण्डलियां में 6 पद अर्थात 6 पंक्ति होती है ।
- पहले दो पद दोहा के होते हैं ।
- शेष चार पद रोला के होते हैं ।
- दोहा का अंतिम (चौथा) चरण ज्यों का त्यों रोला का प्रथम चरण होता है ।
- कुण्डलियां के पांचवें पद के पहले चरण में कवि का नाम आता है ।
- कुण्डलियां जिस शब्द या शब्द समूह से प्रारंभ हुआ है उसी से उसका अंत होता है ।
दोहा छंद-
दोहा एक विषम मात्रिक छंद है । इसमें दो पद और चार चरण होते हैं । इनके विषम चरणों 13 मात्राएं और सम चरणों 11 मात्राएं कुल 24 मात्राएं होती हैं । चारों चरणों की ग्यारहवीं मात्रा निश्चित रूप से लघु होना चाहिये । विषम चरण का प्रारंभ जगण अर्थात लघु-गुरू-लघु से नहीं किया जाता है । सम चरण का अंत गुरू-लघु से समतुक से होता है ।
दोहा छंद की परिभाषा दोहा छंद में –
चार चरण दो पंक्ति में, होते दोहा छंद । तेरह ग्यारह भार भर, रच लो हे मतिमंद ।। ग्यारहवीं मात्रा होय जी, निश्चित ही लघु भार । आदि जगण तो त्याज्य है, आखिर गुरू-लघु डार ।
कुण्डलियां छंद में दोहा का गुणधर्म-
भरिये दोहा छंद में, ग्यारह तेरह भार । चार चरण दो पंक्ति में, आखिर गुरू लघु डार ।। आखिर गुरू लघु डार, चरण सम ग्यारह होवे । विशम चरण में भार अधि, भार तेरह को ढोवे । सुन लो कहे ‘रमेश’, ध्यान धरकर मन धरिये । सभी ग्यारवीं भार, मात्र लघु मात्रा भरिये ।।
दोहा छंद की विशेषताएं-
- दोहा छंद में चार चरण और दो पद होते हैं ।
- पहले और तीसरे चरण को विषम चरण कहते हैं, दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं ।
- विषम चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं ।
- सम चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं ।
- चारों चरणों की ग्यारहवी मात्रा निश्चित रूप से लघु होना चाहिये ।
- विषम चरण के आदि में जगण वर्जित है ।
- सम चरण का अंत गुरू-लघु से होना अनिवार्य है ।
- सम चरण के अंत के गुरू-लघु का समतुकांत होना भी अनिवार्य है ।
रोला छंद-
रोला छंद भी एक विषम मात्रिक छंद है । इसमें आठ चरण और चार पद होते हैं । विषम चरणों में 11-11 मात्राएं और सम चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं । दोहा के मात्रा के उलट मात्रा रोला में होने के कारण कई लोग इसे दोहा का विलोम भी कह देते हैं जो सही नहीं है । दोहा का विलोम सोरठा होता है रोला नहीं । दोहा के चरणों को उलट देने से सोरठा बनता है, रोला नहीं ।
रोला छंद में रोला छंद की परिभाषा-
आठ चरण पद चार, छंद रोला में भरिये ।
ग्यारह तेरह भार, विषम सम चरणन धरिये ।
विषम चरण का अंत, भार गुरू-लघु ही आवे ।
त्रिकल भार सम आदि, अंत चौकल को भावेे।।
कुण्डलियां छंद में रोला छंद का गुणधर्म-
रोला दोहा के उलट, ग्यारह तेरह भार ।
भेद चरण में होत है, आठ चरण पद चार ।
आठ चरण पद चार, छंद रोला में भावे ।
विषम चरण के अंत, दीर्घ लघु निश्चित आवे ।।
सुन लो कहे ‘रमेश’, त्रिकल सम के शुरू होला ।
चौकल सम के अंत, बने तब ना यह रोला ।।
रोला छंद की विशेषताएं-
- रोला में चार पद और आठ चरण होते हैं ।
- विषम चरणों 11-11 मात्राएं और सम चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं ।
- विषम चरण का अंत गुरू-लघु होना चाहिये । कहीं-कहीं विषम चरण के अंत में नगण भी देखा गया है किन्तु गुरू लघु को श्रेष्ठ माना जाता है ।
- सम चरण का प्रारंभ त्रिकल अर्थात 3 मात्रा भार से होना चाहिये ।
- सम चरण का अंत चौकल अर्थात चार मात्रा से होना चाहिये । अंत में दो गुरू को श्रेष्ठ माना जाता है ।
- अंत के इस चौकल में समतुकांतता होना चाहिये ।
कुण्डलियां छंद की रचना-
पहले दोहा लेना-
भारत मॉं वीरों की धरा, जाने सकल जहान ।
मातृभूमि के लाड़ले, करते अर्पण प्राण ।।
दोहा के अंतिम चरण का रोला का प्रथम चरण होना-
उपरोक्त दोहा में अंतिम चरण ‘करते अर्पण प्राण’ आया है इसलिये रोला इसी से शुरू होगा-
करते अर्पण प्राण, पुष्प सम शिश हाथ धरे ।
बन शोला फौलाद,शत्रु दल पर वार करे ।
सुनलो कहे ‘रमेश‘, देश में लिखे इबारत ।
इस धरती का नाम, पड़ा क्यों आखिर भारत ।।
पांचवें पद में कवि का नाम आना-
करते अर्पण प्राण, पुष्प सम शिश हाथ धरे ।
बन शोला फौलाद,शत्रु दल पर वार करे ।
सुनलो कहे ‘रमेश‘, देश में लिखे इबारत ।
इस धरती का नाम, पड़ा क्यों आखिर भारत ।।
दोहा के पहले शब्द या शब्द समूह से रोला का अंत होना-
दोहा का प्रथम शब्द ‘भारत’ है, इसलिये रोला का अंत ‘भारत’ से ही होगा ।
करते अर्पण प्राण, पुष्प सम शिश हाथ धरे ।
बन शोला फौलाद,शत्रु दल पर वार करे ।
सुनलो कहे ‘रमेश‘, देश में लिखे इबारत ।
इस धरती का नाम, पड़ा क्यों आखिर भारत ।।
संपर्ण कुण्डलियां-
भारत मॉं वीरों की धरा, जाने सकल जहान ।
मातृभूमि के लाड़ले, करते अर्पण प्राण ।।
करते अर्पण प्राण, पुष्प सम शिश हाथ धरे ।
बन शोला फौलाद,शत्रु दल पर वार करे ।
सुनलो कहे ‘रमेश‘, देश में लिखे इबारत ।
इस धरती का नाम, पड़ा क्यों आखिर भारत ।।
-रमेश चौहान
इसे भी देख सकते हैं- दोहा छंद विधान