लघु व्‍यंग आलेख-डॉ. अर्जुन दूबे

लघु व्‍यंग आलेख

-डॉ. अर्जुन दूबे

लघु व्‍यंग आलेख-डॉ. अर्जुन दूबे
लघु व्‍यंग आलेख-डॉ. अर्जुन दूबे

1.धर्म मे साहित्य अथवा साहित्य में धर्म

ऋषि वाल्मीकि ने राम चरित के वर्णन द्वारा धर्म के मर्म को बताया है. पहला मर्म त्याग जिसमें राज लोभ नहीं दिखता है, भाइयों के बीच कोई संदेह नही; नहीं, सभी के बीच नहीं, रावण द्वारा देवी सीता का लोभ वह भी अपहरण करके, वह तरीका अनुचित, और विभीषण द्वारा अधर्म है कहने पर संदेह करके निष्‍कासित करना; बाली का सुग्रीव के प्रति राज्य सुख मे बाधक के रूप मे संदेह करना और बलपूर्वक खदेडना क्या दर्शाता है?अनुचित कृत्य ,अत: अधर्म. गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म पर ही जोर दिया है, अधर्म का नाश आवश्य होगा. कौन करेगा? मैं करूंगा. कौन मैं? मेरा मैं, तुम्हारा मैं, सभी का मैं. धर्म के लिए युद्ध से कोई परहेज नहीं है.

धर्म की व्याख्या का दौर कालांतर में शुरु हो जाता है. धर्म की शाखाऍं विकसित होने लगती है. श्रीकृष्ण के पश्चात् भारतीय उप महाद्वीप मे धर्म का आध्यात्म प्रधान व्याख्या प्रारंभ होना प्रतीत होता है. भारत मे महाबीर और बुद्ध ने अपने प्रयोग किये जो सनातन से बहुत इतर तो नही कहेगें, वैचारिकी एवं षटकर्मो में भिन्नताएं रही है ,यह भिन्नता चलती रही है; शंकराचार्य ने पुन: धर्म पर जोर देते ब्रह्म को जानने मे रुचि दिखाई. इनके प्रचारक और अनुयायी बड़ी संख्या मे हैं.

आज भी भारत में सनातन एवं इसकी शाखाओं में अंतर्विरोध वैचारिकी एवं षटकर्म ही कारण प्रतीत होते है किंतु अनुयायी एक दूसरे के प्रति विष वमन से लेकर मरने मारने मे परहेज नहीं करते है जबकि यह युद्ध नही है किंतु युद्ध सदृश अवश्य लगता है. धर्म शुद्ध आध्यात्मिक स्वरूप मे नहीं दिख रहा है, अर्थ अथवा धन, संपति और भूमि जो किसी के लिए स्थाई नही हैं, धर्म का वाहक अथवा उत्प्रेरक बन कर सामने आ जाते है और शुरू करा देते धर्म और अधर्म के बीच महास़ंग्राम.

2.क्या देखूं -क्या सुनूं?

घर पर टी वी .चैनलों को खोलता हूं तो इच्छा करती है कि कुछ नवीनतम् समाचार जान लूं पर जैसे ही कोई चैनल देखना शुरू करता हूँ कि चैनल वाले समाचार का ज्ञान न देकर पंचायत शुरू कर देते हैं और उसमे प्रतिभाग करने वालों के उत्साह में कोई कमी नहीं होती है, पक्ष कोई भी हो.पाकिस्तान की खबर न हो, ऐसा संभव नही. इमरान खान जब से प्रधान मंत्री बने तभी से पांच दिन के मेहमान रहे, खैर अब चार साल बाद रूखशत होने के बाद वह असली लड़ाई के लिये संघर्षं करेंगे.

कभी कभी फिल्मों को भी देखता हूं, किन्हें? उन्हें जो रोज आकर प्रपंच मचा देते हैं यह तो अच्छा है कि जब नहीं मन किया तो उन्हें क्यों देखूं, सिनेमाहाल में थोडे हूं कि टिकट के मूल्य की क्षतिपूर्ति करनी है!
मनोरंजन चैनल भी कभी कभी देखता हूं; उसमे भी नायक नायिका, निदेशक और निर्माता आदि अपनी फिल्मों के प्रचार प्रसार के लिए आते हैं. अभी किसी शो मे अभिषेक बच्चन अपनी फिल्म के प्रचार के लिए आये थे जिसमें दसवीं कक्षा पास होने के लिये जी तोड प्रयास करते हैं. हम लोगों के जमाने मे दसवीं पास करना वह भी बिना नकल किये अति दुरूह था; कभी कभी मजाक में साथी कहते थे कि अब बोर्ड पास कर देगा क्योंकि सात बरस से फेल हो रहा है.
तभी उस शो मे एक जादूगर अपना टैलेंट दिखाता है जिसमे बिना परीक्षा दिये अभिषेक बच्चन दसवीं की डिग्री लिये गाउन मे पंडोरा बाक्स से बाहर निकलते हैं. दोनो को यह भान नहीं है कि डिग्री दसवीं मे नहीं मिलती है, स्नातक करने पर ही मिलती है. हां यह अलग बात है कि स्नातक करना कठिन नही है बस एडमिशन लेने की देर है.

डॉ. अर्जुन दूबे

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