छत्तीसगढ़ का गोदना- डुमन लाल ध्रुव
छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति अत्यंत समृद्ध जीवंत और विविध रूपों से परिपूर्ण है। यहां की मिट्टी, भाषा, लोकगीत, लोकनृत्य, वेशभूषा और आभूषण सभी में जनजीवन की सादगी और सौंदर्य झलकता है। इन्हीं में से एक विशिष्ट परंपरा है गोदना जो शरीर पर उकेरी जाने वाली एक लोक कला, श्रृंगार और धार्मिक पहचान का प्रतीक है। गोदना…
मोर गंवा गे हे गांव कइसे खोज के मैं लांव-सुरेन्द्र अग्निहोत्री “आगी”
मोर गंवा गे हे गांव कइसे खोज के मैं लांवखोज खोजत इही गांव ल मोर थक गए हे पांव मोर गंवा गे हे गांव… पएडगरी ले चल के जांववनरवा खंड ले ओला निहारंव खदर के छानी म जिनगानी हचहकत आवै वोला मैं पांववधुर्रा उडावत धेनु भागैबछरू मन जब गोहरावैगांव बाहिर के गोठान गंवागेचारा चरे के…
आलेख: ‘बदलते समाज में साहित्य की भूमिका: दर्पण से दिशा-सूचक तक’-रमेश चौहान
प्रस्तावना: साहित्य – जीवन का शाश्वत संवाद साहित्य, मानव सभ्यता के साथ विकसित हुआ एक शाश्वत संवाद है। इसे प्रायः “समाज का दर्पण” कहा जाता है, क्योंकि यह अपने समय की परिस्थितियों, मान्यताओं, संघर्षों और संवेदनाओं को यथार्थवादी ढंग से प्रतिबिंबित करता है। महान आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा था, “किसी भी देश का साहित्य…
छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार एवं शिक्षाविद डिहुर राम निर्वाण ‘प्रतप्त’
छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकधारा और साहित्यिक परंपरा में अनेक ऐसे रचनाकार हुए हैं जिन्होंने न केवल साहित्य को नई दिशा दी बल्कि समाज को जागरूक और प्रगतिशील बनाने में भी अमूल्य योगदान दिया। इन्हीं में से एक हैं डिहुर राम निर्वाण ‘प्रतप्त’, जिनका जन्म 27 नवम्बर 1935 ई. को रायपुर जिले के (वर्तमान में धमतरी…
छत्तीसगढ़ी कहानी:हमर मौसी-डॉ राजेश मानस
कहिथं के बिपत ह कोनो ल बता के नी आय। कब काकर उपर कइसे बिपत आ जाही तेला कोनो नी जाने। मनखे ल ऐकर ले जुझे बर परथे। जब ऐकर ले जुझबे तमे जिनगी ह बने चल पाही, अउ बिपत ले सीख घलो मिलथे बस आदमी ल सीखे बर तियार रहना चाही। हमर मौसी के…
लघु व्यंग्य आलेख: चित्र अथवा फोटो की सार्थकता
प्रेम कहें, आकर्षण कहें या मोहित हो जाना कहें — आखिर यह होता क्यों है?महान कवि कालिदास की नाट्य रचना ‘मालविकाग्निमित्र’ की कथा पढ़ते हुए मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि कैसे बिना किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष देखे, केवल चित्र देखकर ही कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम करने लगता है। यह केवल…
व्यंग्य, गीत और साहित्य साधना के पुरोधा- त्रिभुवन पाण्डेय- डुमन लाल ध्रुव
धमतरी की साहित्यिक मिट्टी ने अनेक साहित्यिक मनीषियों को जन्म दिया है उन्हीं में से एक है त्रिभुवन पाण्डेय । जिनका जन्म 21 नवंबर 1938 को धमतरी में हुआ। सोरिद नगर, धमतरी उनका स्थायी निवास रहा। यह नगर जिसने उनकी रचनात्मक चेतना को आकार दिया आज भी उनके साहित्यिक अवदान की गवाही देता है। त्रिभुवन…
माँ, मिट्टी और मेहनत : रामेश्वर शर्मा की रचनाएँ
ग़ज़ल जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता हैसृजक का लेख हो या गीत वह मशहूर होता है हक़ीक़त में अगर तुम प्यार करते हो सुनों यारोंजो दिल में प्यार बस जाए न फिर वो दूर होता है ग़ज़ल सुनते हैं अच्छे लोग इसमें गुण है कुछ ऐसाग़ज़ल के शेर में क्योंकि अदब…

