लघु व्यंग्य : महंगाई पर लोरिक-भोरिक संवाद
-डॉ. अर्जुन दूबे
लोरिक : यह पेट्रोल, डीजल और गैस का दाम कौन बढाता है?
भोरिक: तुमको क्या लेना -देना है इससे?
लोरिक: देखो हमारे पास गाड़ी नहीं है इसलिए इन्हे भरवाने का सवाल ही नहीं है, कितुं जब बाहर जाता हूं, जाना तो पडेगा ही क्योंकि यह पेट भेजने लगता है, गाडियों का किराया पैसे में नहीं रूपये में बढे मिलते हैं; कुछ खाने को पेट ने मांगा तो उसके लिए भी रुपया चाहिए, पैसा नहीं ।
भोरिक: ऐसा क्यों होता है?
लोरिक: पेट के लिए खाने को अन्र चाहिए; उसे पकाना भी मांगता है, रोज-रोज व्रत कैसे रहोगे!
भोरिक: बात तो सही है । पकाने के लिए गैस चाहिए; अब लकड़ी से पकाने का जमाना गया, लकड़ी ही नहीं बच रही है । दूसरी बात कठिनाई भी होती है।
लोरिक: ठीक कहते हो भाई.इसीलिए गैस का दाम पैसे मे नहीं बल्कि रूपये मे बढ जाता है ।
भोरिक: लेकिन, दाम बढाने का काम सरकार नहीं करती है बल्कि कंपनियां करती हैं ।
लोरिक:सरकार क्या करती है?
भोरिक: टैक्स!
लोरिक: मान लो, हम दोनो सरकार हैं, तुम केंद्र में और मै राज्य में; तुम कुछ कम लो और मैं कुछ कम लूं. कुछ तो बोलो; अब नहीं बोलोगे? इधर-उधर की बातें बहुत करते हो!
भोरिक: बहुत नेक विचार हैं तुम्हारे, कितुं अब मजा आ रहा है तुम्हें भी मुझे भी, मतलब हम दोनो को ।
लोरिक; क्या मन की बात कहे हो,हा हा हा!
महगांई कैसे रोकोगे अगर तुम सक्षम हो जाओ तो, लोरिक ने पूछा ।
सक्षम होने पर कैसी महगांई, भोरिक ने जबाब दिया।
अच्छी बात बताई. लेकिन यह बताओ कि किसके ऊपर महगांई निष्प्रभावी होती है? लोरिक ने पूछा ।
अभी अभी तुमने बताया है कि सक्षम अभेद्य होता है जिनकी संख्या सीमित होती है; दूसरा बिल्कुल अक्षम /असमर्थ; उसे समय समय पर प्राणवायु दिया जाता है; यही तो आधार स्तंभ होते हैं और सरकारें समय-समय पर इनके प्रति कृतज्ञ रहती है इस आशा के साथ कि ये दीर्घायु बने रहें। इनकी संख्या एक तिहाई के आस पास होती है, भोरिक ने विस्तार से बताना चाहा।
लेकिन तीसरा कौन है!लोरिक ने जानना चाहा।
मत पूछो! यह बहुत ही विचित्र है.महा ढोंगी, प्रवचन करने मे सिद्धहस्त, सफेद को काला, काले को सफेद साबित करने मे माहिर, धर्म, परंपराओं, रीतियों, संस्कृतियों आदि को मुकाम तक पहुचाने मे अहर्निश संलग्न; सक्षम बनने की चाहत रहती है जिसमे मैं भी शामिल हूं, अक्षम की कतार में शामिल होने से शर्माता है, उसकी संख्या दो तिहाई से थोडे ही कम है । सरकारे भी जानती हैं कि इन्हे टैक्स से ठोको । जयकारा और विरोध दोनों तो यही करते हैं, भोरिक ने कहा ।
महगांई का उपाय बताइए, प्रवचन नही,लोरिक ने कहा ।
धैर्य रखो, इंतजार करो, भोरिक ने कहा.
अब घड़ी आ गई. कौन सी घड़ी? महगांई दूर करने के उपाय की, लोरिक ने उत्सुकता व्यक्त की ।
आ गये महगांई के छलावे मे? भोरिक ने प्रश्न किया ।
अच्छा छोडो । यह बताओ कि गरीब का अस्तित्व है ना! हां यह शास्वत सत्य है ।उसी प्रकार महगांई भी है, इसे स्वीकार करो ।फिर भी उपाय? त्रृष्णा पर नियंत्रण रखो, महगांई भाग जायेगी ।
मतलब गांधीवादी तरीका अपनाना पड़ेगा?
जो समझो;बुद्ध ने भी नियंत्रण किया था! हमारे ऋषि तो तृष्णा नियंत्रण करने मे सिद्धि प्राप्त किये थे.
धन्य हो भोरिक, भोर हो गया है । मेरे चक्षु खुल गये हैं; आपके ज्ञान का ऋणी हो गया हूं.शत शत नमन ।
-डॉ. अर्जुन दूबे