महापर्व दीपावली-श्लेष चन्द्राकर

महापर्व दीपावली

-श्लेष चन्द्राकर

महापर्व दीपावली
महापर्व दीपावली

महापर्व दीपावली

महापर्व दीपावली का मनोरम दृश्‍य-

दीपावली की बात चलते ही आँखों के सामने मिट्टी के दीपों और कृत्रिम रौशनी से जगमगाते घर, फूलझड़ियाँ जलाते बच्चे, आकाश में उड़ते आकाश गंगा के दृश्य उभर आते है। कानों में पटाखों के शोर गूँजने लगते है। लजीज पकवानों के स्वाद याद आने लगते है। दीपावली ही वह पर्व है जिसके आने की प्रतीक्षा हर भारतीय बड़ी बेसब्री से करता है। क्योंकि, अन्य त्यौहारों के उत्साह एक-दो दिन तक ही रहते हैं, लेकिन दीपावली के कारण हर घर में लगभग हफ्ते भर तक उत्साह उमंग का वातावरण रहता है। दीपावली के चलते शासकीय, अर्धशासकीय कार्यालयों और निजी क्षेत्र की कंपनियों में छुट्टियां घोषित की जाती है। जिससे नौकरी के चक्कर में घर से दूर रहने वाले अपने परिवार के साथ यह पावन पर्व मनाने पाँच-दस दिनों के अपने गाँव या शहर आते हैं। लोग वर्षा ऋतु के उत्तरार्ध से ही इसकी स्वागत की तैयारी में जुट जाते हैं। बारिश के कारण जर्जर हुए अपनी झोपड़ियों और मकानों की मरम्मत कर साफ-सफाई, रंग- रोगन लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर करते हैं। स्कूल में पढ़ने बच्चे भी अपने अवकाश का सुदुपयोग करते हुए इस कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। किसान अपनी उपज को मंडियों में बेचकर परिवार के लिए नये कपड़ें, गहने और भौतिक सुख की वस्तुएँ खरीदता है। कुम्हार मिट्टी के दीपक बनाने के काम जुट जाता है, जिन्हें बेच वह अपने परिवार की जरुरतें पूरी करता है। मोमबत्ती, अगरबत्ती, झालर, हार और पूजन सामग्री तैयार करने वाले लघु एवं कुटीर उद्योगों में जान आ जाती है। दीपावली के पूर्व ही बाजारों की रौनक लौट आती है। चारों ओर प्रेम, भाईचारा, सौहार्द और खुशी का माहौल रहता है।

महापर्व दीपावली मनाने के पीछे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक कारण –

भारतीय संस्कृति का महापर्व दीपावली को दीपोत्सव, आलोक पर्व, प्रकाश पर्व, दीपमालिका, सुखरात्रि, यक्षरात्रि और दीवाली आदि कई नामों से भी जाना जाता है। दीपावली यानी दीपों की अवली। इस पर्व में हर शहर- गाँव में आस्था और विश्वास के प्रतीक दीपों की पंक्तियों से आलोकित होते हुए घर-द्वार देखने को मिलते हैं। जीवन में उजियारे संदेश देने और सत्य पर असत्य की जीत का पर्व दीपावली भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हर कोने में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक मास में मनाये जाने वाले इस पाँच दिवसीय पर्व में क्रमशः धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज का पर्व समाहित है। जैसा कि, आप जानते है। भारत के प्रत्येक त्यौहार जैसे- मकर संक्रान्ति, हरियाली, पोंगल, बैशाखी, रक्षाबंधन, बसंत पंचमी, तीज, छठ, होली, दशहरा, शरद पूर्णिमा, नवरात्र, गुड़ी पड़वा आदि के मनाये जाने के पीछे कुछ-न-कुछ सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, पौराणिक गाथाएं, खगोलीय घटनाएं, ऋतु परिवर्तन और वैज्ञानिक कारण हैं।

पंच दिवसीय पर्व दीपावली-

वैसे ही पाँच दिनों तक चलने वाले भारत की गौरवशाली परंपरा की थाती और जन-जन को उल्लासित करने वाले इस पर्व के प्रत्येक दिवस का अलग महत्व है और इसके पीछे जुड़ी अलग-अलग मान्यताएँ हैं।

प्रथम दिवस –

कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धनतेरस या धनवंतरि जयंती मनाते है। पौराणिक कथा के अनुसार आज ही के दिन आरोग्य के आदिदेव धनवंतरि महाराज सागर मंथन में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने ने चिकित्सक का कार्य करते हुए जनसाधारण को स्वस्थ व निरोगी बनाया। इस कारण आज के दिन उनकी पूजा-अर्चना करके, लोग अपने घरों में दीप जलाते हैं। धनतेरस के दिन नये बर्तन खरीदने और दीपदान की भी परंपरा है।

द्वितीय दिवस –

कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या रूप चौदस का पर्व मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली भी कहते है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इस दिन भगवान श्री कृष्ण और हनुमान जी की पूजा की जाती है। इस दिन तेल, उबटन आदि से नदी तट पर स्नान कर अपने पितरों को अर्ध्यदान देने की प्रचलित मान्यता है। इस दिन घर के द्वार में चौदह दीप जलाते हैं।

तृतीय दिवस –

कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धन, धान्य और समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी की विशेष पूजा की जाती है। घरों प्रतिष्ठानों, कारखानों और गोदमों में दीप जलाये जाते हैं। लोग नये कपड़े पहनकर लक्ष्मी जी की पूजा करते है और अपने पूरे परिवार के साथ यह उत्सव मनाते हैं। इस दिन बाल बूढ़े जवान सभी फूलझड़ियाँ, अनार दाना जलाते हैं, पटाखें फोड़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि, इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी राक्षसराज लंका पति रावण का संहार कर चौदह वर्ष के वनवास के बाद अपनी अर्धांगिनी सीता जी और भ्राता लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने नगर को मिट्टी के दीयों से सजा दिया था। उस दिन अमावस के अँधेरे को दूर करने का यह प्रयास दीपावली की परंपरा बन गई। इसी दिन से व्यापारी लोग अपना नया बही-खाता भी तो लिखना प्रारम्भ करते हैं।

चतुर्थ दिवस –

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पूजा का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार गोकुलवासियों द्वारा वर्षा के लिए पूर्व की भांति इंद्र की पूजा न करने पर रुष्ठ होकर इंद्रदेव गोकुल पर अति जल वृष्टि कर जनसामान्य को भयभीत कर दिया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की थी और इंद्रदेव के दंभ को तोड़ा था। इसी दिन अन्नकूट का अनूठा पर्व भी मनाया जाता है। पशुओं के प्रति प्रेम और दया का संदेश देने वाले इस पर्व में गौ माता की पूजा की जाती है और खिचड़ी खिलायी जाती है। यदुवंशी इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते।

पंचम दिवस –

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भैया दूज या यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है। भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास को प्रदर्शित करने वाले इस पावन पर्व के पीछे मान्यता है कि, यमराज की बहन यमुना को शिकायत रहती थी कि भाई यमराज उससे मिलने और हालचाल पूछने नहीं आते। कहते है कि इसी दिन भाई यमराज अपनी बहन यमुना के यहाँ पधारे थे और बहन के हाथ का भोजन किया था। तब ही से यह परंपरा चली आ रही है। भाई अपनी बहन के घर जाता है। बहन भाई को तिलक लगाकर आरती उतारती है और अपने हाथों से बने भोजन खिलाती है और उसके लम्बी उम्र की कामना करती है।

सौहार्द, सामंजस्‍य और संस्‍कृति रक्षक महापर्व दीपावली-

पाँच दिनों तक चलने वाले इस पर्व को हमारे देश के लोग अपने क्षेत्र या राज्य में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग तौर-तरीके से मनाते हैं। लेकिन, इसके पीछे उद्देश्य समान है, जन-जन के बीच प्रेम, भाईचारा, सौहार्द, आपसी सामंजस्य और एकता बनाए रखना और अपनी पुरातन संस्कृति की अस्मिता की रक्षा करना। बदलते समय के साथ दीपावली मनाने के तौर-तरीके बदले हैं। जैसे- आजकल लोग मिट्टी के दीयों की बजाय मोमबत्ती जलाते हैं रंग बिरंगे बल्ब वाले झालर से घर सजाते। घर में पकवान बनाने के बजाय ऑनलाइन आर्डर देकर मिठाईयां मंगवाते हैं। आम के पत्तों के तोरण के बदले प्लास्टिक के रेडीमेड तोर लगाते हैं। समय के साथ कुछ बुराईयां भी इस पावन पर्व का हिस्सा बन गई है। जैसे- जूआ-सट्टा खेलना, त्यौहार के नाम पर नशाखोरी, अत्यधिक आतिशबाजी से ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ाना आदि। इन सबके बावजूद आज भी लोग के बीच दीपावली के प्रति उत्साह और उमंग कम नहीं हुआ है। अब जररूत है, त्यौहार के नाम पर हमने जो बुराईयां अपनाई है उन्हें दूर करते हुए। पर्यावरण की बेहतरी का ध्यान रखते हुए यह त्यौहार मनाये। इसी में हम सबकी भलाई है।

कोरोना कोविड -19 के दौर में महापर्व दीपावली-

वर्तमान में भारत ही नहीं पूरा विश्व कोरोना कोविड -19 नामक वैश्विक महामारी के चपेट में आया हुआ। व्यापार व्यवसाय सब चौपट हैं। बाजारों में भीड़ नजर नहीं आ रही। लोग यात्रा करने से कतरा रहे हैं। लोगों के बीच भय व्याप्त हैं। ऐसे वातावरण में अच्छे से दीपावली मनाना संभव नहीं। लोगों को सावधानी बरतनी होगी। सरकार और स्वास्थ विभाग द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग अपनाते हुए, मास्क और सैनिटाइजर का प्रयोग करते हुए, यह त्यौहार मनाने उनके हित में रहेगा। क्योंकि जान है तो जहान है।

महापर्व दीपावली पर भारत की गौरवशाली परंपरा की रक्षा करें-

आशा है लोग महापर्व दीपावली की सार्थकता तो समझते हुए। ऊँच-नीच, जाति-धर्म के भेदभाव भूलकर मिलजुलकर आपसी तालमेल से प्रेम पूर्वक यह पर्व मनाएंगे। और सकल विश्व को भाईचारा का संदेश देते हुए। महापर्व दीपावली मनाते हुए भारत की गौरवशाली परंपरा की रक्षा करेंगे।

-श्लेष चन्द्राकर,
पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन - 493445,
मो.नं. 9926744445

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One thought on “महापर्व दीपावली-श्लेष चन्द्राकर

  1. मेरे आलेख को सुरता में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार संपादक महोदय जी।
    दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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