एक व्यंग्य आलेख:मैं चक्रवर्ती सम्राट बन कर रहूंगा
-प्रोफेसर अर्जुन दूबे
अश्वमेध यज्ञ करूंगा, परंतु उससे क्या होगा? चक्रवर्ती बन जाउंगा. वह कैसे! मेरे फरमान को सभी स्वीकार करेंगें और जो नहीं स्वीकार करेगा उसकी मृत्यु सुनिश्चित कर दूंगा!
प्राचीन काल में अश्वमेध घोड़ा छोड़ जाता था,चारो ओर वह भ्रमण करता था, यदि किसी ने बांध लिया तो उससे युद्ध होता था । भगीरथ की कथा जानते हैं न! उनके पूर्वज राजा सगर अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, घोड़ा छोड़ा गया, इंद्र ही डर गये, युद्ध नहीं करकर छल किये और घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम मे पाताल लोक में बाध दिये। राजकुमार जिनकी संख्या साठ हजार थी ने कपिल मुनि को ही दोषी समझे और उन्हे बुरा भला कहते हुए बांधने लगे, मुनि की आंखे खुली और क्रोधाग्नि में उन सभी को भस्म कर दिया था । भगीरथ उन्हे गंगाजी को वहां लाकर मुक्ति दिलाई थी ।
वाल्मीकिकृत रामायण में लवकुश द्वारा अयोध्या के अश्वमेध घोड़े को बांध दिया गया था.युद्ध हुआ था किंतु परिणिति सुखांत रही, वे तो अयोध्या के राजकुमार निकले!
ऐसे अनेक उदाहरण अश्वमेध यज्ञ कराने के हैं, उद्देश्य चक्रवर्ती बनना रहा है ।
विश्व विजय अभियान पर सिकंदर निकला था भारत आते आते उसका सामना पुरू से हुआ, युद्ध हुआ किंतु उस युद्ध केबाद सिकंदर थक गया था और अपने सेनापति सेल्युकस को जिम्मेदारी देकर वापस चला गया, कहते हैं कि रास्ते में ही मर गया!
अब शुरू होता है युद्ध के साथ साथ कूटनीति का.सेल्युकस ने अपनी पुत्री का विवाह सम्राट चंद्रगुप्त मोर्य से कर दिया.कालांतर ऐसे विवाह आम हो गये हैं ।
वर्तमान चक्रवर्ती कौन है? वह देश जो सैन्य में और घातक हथियार में सशक्त हैं और जिनका लोहा अन्य मानते हों और अकेले नहीं तो गोल बना लो फिर भी युद्ध चलता ही रहता है जैसे यूक्रेन और रूस के बीच.भारत को वीटो पावर नहीं देंगें, गोल बनाया तो भारत ने कहा कि अपनी गोल अपने पास रखो, तुम्हारे वीटो को हम नहीं मानते हैं । कमजोर मत समझो, समरथ को नहिं दोष गोसाईं!
देश के अंदर भी चक्रवर्ती के रूप में पनप कर उभरकर लोग आ रहे हैं । आंय! विशेषकर, अपराध की दुनियां में जिन्हें माफिया शब्द से संबोधित करते हैं जो डरावना लगता है ।
घर में चोरी की शुरुआत से मोहल्ले में अपराध का आगाज करते हुए जिला टाप हो जाते हैं । अंग्रेजी में कहावत है: ‘Birds of the same feathers flock together.’ बस क्या पूछना साथी मिल जाते हैं । नेटवर्क फेल कम ही होता है.राजनीति को भी इनकी खूब जरूरत रहती है, वही चक्रवर्ती की चाह!
कब तक हे राजनीति तुम्हारे घोड़ों की रक्षा करूंगा! मैं खुद राजनीति में आ गया हूं और बाकी भी शनै शनै आ रहे हैं!
अरे मूर्ख राजनीति को चुनौती देगा? कब तक! मेरे सम्मुख तुम टिक नहीं पाओगे! मैं राजनीति हूं ,मैं चक्रवर्ती हूं!
-प्रोफेसर अर्जुन दूबे