मजदूर दिवस का इतिहास और मूल
मजदूर दिवस का इतिहास और मूल
-डॉ. अर्चना दुबे ‘रीत’

यदि यह कहा जाए, कि कार्य को प्रगति देने में मुख्य भूमिका मजदूरों की होती है तो यह कहना अनुचित नहीं होगा……..भारत मजदूर दिवस को कामगार दिन, कामगार दिवस, अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस, लेबर डे, मई दिवस, कामगार दिन, इंटरनेशनल वर्कर डे, वर्कर डे आदि हिंदी अंग्रेजी के कई नामों के द्वारा कहकर मनाया जाता है । आज के ही दिन (1 मई) को प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है ।
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को अमेरिका में एक आंदोलन से शुरू हुई थी । इस आंदोलन के दौरान अमेरिका में मजदूर वर्ग को काम करने के लिए 8 घण्टे का समय निर्धारित किये जाने को लेकर आंदोलन शुरू किया गया था 1 मई 1886 के ही दिन मजदूर लोग रोजाना 12 से 15 घण्टे काम कराये जाने और शोषण के खिलाफ पूरे अमेरिका में सड़कों पर उतर आए थे । इसमें बहुत से मजदूर को अपने जान से भी हाथ धोना पड़ा तब जा करके यह प्रस्ताव पारित किया गया ।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 को हुई । यही वह मौका था जब पहली बार लाल झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था । यही से भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी ।
1मई को महाराष्ट्र और गुजरात का स्थापना दिवस भी मनाया जाता है । भारत की आजादी के समय यह दोनों राज्य मुंबई प्रदेश का हिस्सा था । महाराष्ट्र में इस दिन को “महाराष्ट्र दिवस” जबकि गुजरात में “गुजरात दिवस” के रूप में मनाया जाता है ।
1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय अवकाश होता है । यह उत्सव पूरे विश्व में एक ऐतिहासिक महत्व रखता है और पूरे विश्व भर में लेबर यूनियन के द्वारा मनाया जाता है। हिंसा को रोकने के लिए सुरक्षा प्रबंधन के तहत कार्यकारिणी समूह के द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन, भाषण, विद्रोह जुलूस, रैली और परेड आयोजित किए जाते हैं ।
हालांकि मजदूर दिवस का इतिहास और मूल अलग-अलग देशों में अलग-अलग है परन्तु इसके पीछे का मुख्य कारण एक समान है । यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण था कि देश के बुनियादी ढांचागत विकास के प्रति बहुत अधिक योगदान देने वाले लोगों के वर्ग के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया । दुनिया के बहुत से हिस्सों में इसके खिलाफ़ आंदोलन हुए तब जाकर यह दिन अस्तित्व में आया ।
श्रमिक वर्ग वास्तव में एक ऐसा वर्ग है जिसे विभिन्न श्रम साध्य कार्यों में शामिल होने की आवश्यकता है । समाज के प्रति उनके योगदान की सराहना करने और उनकी पहचान को जानने के लिए एक ख़ास दिन निश्चित रूप से जरूरी है । श्रम दिवस की उत्पत्ति यह दर्शाती है कि यदि हम सब एक जुट होकर खड़े रहे तो कुछ भी असंभव नहीं है । बड़े संघर्ष के बाद श्रमिकों को उनके अधिकार दिये गए थे । जिन्होंने इस दिन के लिए कड़ी मेहनत किये तो इस दिन का उनके लिए बहुत महत्व है जो श्रमिक वर्ग को समर्पित है ।
-डॉ. अर्चना दुबे ‘रीत’*
मुम्बई, महाराष्ट
संपर्क-9665168727