छत्तीसगढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थल

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छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल: छत्तीसगढ़: आस्था, प्रकृति, और पर्यटन (Hindi Edition)

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भारत के मध्य में स्थित छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ की धरती पर प्राकृतिक झरने, घने जंगल, प्राचीन मंदिर, और आदिवासी संस्कृति का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। आइए, छत्तीसगढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1. चित्रकोट जलप्रपात

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छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित चित्रकोट जलप्रपात को “भारत का नियाग्रा” कहा जाता है। इंद्रावती नदी पर स्थित यह जलप्रपात लगभग 29 मीटर की ऊंचाई से गिरता है। मानसून के समय इसकी चौड़ाई और जल प्रवाह अद्भुत हो जाता है, जो इसे पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण बनाता है। चित्रकोट के आसपास हरियाली से भरे जंगल और पक्षियों की चहचहाहट इसे और भी खूबसूरत बनाते हैं। यहाँ बोटिंग का आनंद भी लिया जा सकता है, जो इस स्थान की यात्रा को यादगार बना देता है।

प्राकृतिक वैभव का प्रतीक

  • चित्रकोट जलप्रपात घने जंगलों और हरियाली के बीच स्थित है, जिससे यह एक अत्यंत मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है।
  • बारिश के मौसम में यह जलप्रपात अपनी पूर्ण भव्यता पर होता है, जब इसका पानी चौड़े पर्दे की तरह बहता है।
  • जलप्रपात के आसपास की हरियाली और इंद्रधनुष के दृश्य इसे अद्वितीय बनाते हैं।

आकर्षण का केंद्र

  • जलप्रपात का घोड़े की नाल जैसा आकार इसे विशेष बनाता है।
  • गिरते हुए पानी की गर्जना और पानी की बूंदों से बनने वाली धुंध पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
  • जलप्रपात के आसपास का शांत वातावरण और शुद्ध हवा यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को सुकून देती है।

2. कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान

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कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में स्थित है और यह अपनी जैव विविधता और प्राकृतिक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है। इस उद्यान में कुटुमसर और कैलाश गुफा विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। कुटुमसर गुफा स्टैलैक्टाइट और स्टैलैग्माइट संरचनाओं से सजी हुई है, जबकि कैलाश गुफा अपनी अद्भुत प्राकृतिक शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। यहां पक्षी प्रेमियों के लिए दुर्लभ पक्षियों की कई प्रजातियां देखने को मिलती हैं। साथ ही, उद्यान के जंगलों में भालू, तेंदुआ और अन्य वन्यजीवों को देखने का अनुभव रोमांचक होता है।

वनस्पति और वन क्षेत्र

  • कांगेर घाटी में घने साल, सागौन, बांस, और अन्य प्रकार के वृक्षों का प्रचुरता से विस्तार है।
  • यहाँ का घना जंगल प्राकृतिक वातावरण को बनाए रखने में सहायक है और छत्तीसगढ़ की हरित धरोहर का हिस्सा है।

वन्यजीव और पक्षी

  • उद्यान में शेर, तेंदुआ, भालू, सांभर, चीतल, जंगली सूअर, और भारतीय भेड़िए जैसे वन्यजीव पाए जाते हैं।
  • पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ यहाँ निवास करती हैं, जिनमें हॉर्नबिल, तोता, और विभिन्न प्रकार के शिकारी पक्षी शामिल हैं।
  • यहाँ दुर्लभ और अद्वितीय जीव जैसे स्टेट फिश (ब्लाइंड फिश) कोटमसर गुफा में पाए जाते हैं।

पानी के जीव और जैव विविधता

  • उद्यान के जल निकायों में मगरमच्छ और विभिन्न प्रकार की मछलियाँ निवास करती हैं।

गुफाएँ: रहस्यमय और प्राचीन संरचनाएँ

1. कोटमसर गुफा

  • कोटमसर गुफा, कांगेर घाटी का प्रमुख आकर्षण है। यह 3,300 फीट लंबी है और भारत की सबसे लंबी प्राकृतिक गुफाओं में से एक मानी जाती है।
  • गुफा में स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट संरचनाएँ देखने को मिलती हैं।
  • गुफा के अंदर अंधेरे में अद्वितीय ब्लाइंड फिश (केव फिश) पाई जाती है।
  • गुफा में प्राचीन शिवलिंग और अन्य मूर्तियाँ हैं, जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।

2. दंडक गुफा

  • यह गुफा भी कांगेर घाटी में स्थित एक प्रमुख गुफा है।
  • दंडक गुफा अपनी अद्वितीय चूना पत्थर संरचनाओं और भौगोलिक जटिलताओं के लिए जानी जाती है।
  • गुफा के अंदर के दृश्य इसे रोमांच प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षक बनाते हैं।

3. कैलाश गुफा

  • कैलाश गुफा अपनी धार्मिक और प्राचीन संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है।
  • गुफा के भीतर शिवलिंग और अन्य पौराणिक आकृतियाँ देखी जा सकती हैं।

3. बस्तर का दशहरा

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दशहरे का पर्व भारत के हर कोने में मनाया जाता है, लेकिन बस्तर का दशहरा अपनी अनोखी परंपराओं और रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। यह त्योहार लगभग 75 दिनों तक चलता है, जो इसे भारत का सबसे लंबा त्योहार बनाता है। इस दौरान रथयात्रा, देवी पूजा, और आदिवासी नृत्य जैसे कार्यक्रम होते हैं, जो बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। पर्यटक इस अवसर पर आदिवासी समुदाय की अनोखी परंपराओं और उनकी कलाओं को नज़दीक से देखने का मौका पा सकते हैं।

दशहरा का प्रारंभ और धार्मिक महत्व

  • बस्तर का दशहरा देवी दंतेश्वरी को समर्पित है, जो बस्तर के लोगों की कुलदेवी मानी जाती हैं।
  • यह उत्सव सावन अमावस्या से आश्विन शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है।
  • दशहरे की शुरुआत देवी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और उनके आशीर्वाद से होती है।

मुख्य परंपराएँ और रस्में

  1. पाट जात्रा (महोत्सव का आरंभ):
    • सावन अमावस्या के दिन दशहरे की शुरुआत पाट जात्रा नामक अनुष्ठान से होती है।
    • इस दिन वन से लाए गए पवित्र लकड़ी के तने की पूजा की जाती है।
  2. काष्ठ पूजा (रथ निर्माण):
    • वन से लाई गई लकड़ी से विशाल रथ का निर्माण किया जाता है।
    • यह रथ बस्तर के राज परिवार और स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाया जाता है।
  3. रथयात्रा:
    • इस उत्सव का मुख्य आकर्षण विशालकाय रथ है, जिसे देवी दंतेश्वरी की सवारी के रूप में देखा जाता है।
    • हजारों श्रद्धालु रथ को खींचते हैं और देवी को आदर अर्पित करते हैं।
  4. कलश स्थापना और जोगी बिठाई:
    • दशहरे के दौरान विशेष स्थान पर कलश की स्थापना की जाती है।
    • जोगी बिठाई में एक व्यक्ति 9 दिनों तक उपवास रखते हुए देवी के सम्मान में ध्यान करता है।
  5. मावली परघाव:
    • देवी मावली, जिन्हें देवी दंतेश्वरी का प्रतीक माना जाता है, को रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है।
  6. अश्व पूजा और काछन गादी:
    • अश्व पूजा में देवी के घोड़े का विशेष पूजन किया जाता है।
    • काछन गादी समारोह में देवी के प्रतीक स्वरूप एक महिला को सजाया जाता है।
  7. मुरिया दरबार:
    • यह दशहरे का अंतिम चरण है, जहाँ राजा और सभी ग्राम प्रमुख एकत्र होकर जनहित और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
    • इसे स्थानीय प्रशासन और जनभागीदारी का अद्भुत उदाहरण माना जाता है।

आदिवासी संस्कृति और रीति-रिवाज

बस्तर की आदिवासी जनजातियाँ

  • बस्तर क्षेत्र गोंड, मुरिया, हलबा, और भतरा जैसी प्रमुख आदिवासी जनजातियों का घर है।
  • इन जनजातियों की परंपराएँ, वेशभूषा, नृत्य, और संगीत दशहरे के दौरान प्रकट होती हैं।

नृत्य और संगीत

  • बस्तर का दशहरा आदिवासी नृत्य और लोक संगीत के बिना अधूरा है।
  • धुरवा नृत्य और गौर नृत्य जैसे पारंपरिक नृत्य इस उत्सव के प्रमुख आकर्षण हैं।
  • आदिवासी ढोल, मांदर, और तुरी जैसे वाद्य यंत्रों की धुन पर लोग थिरकते हैं।

आदिवासी कला और हस्तशिल्प

  • दशहरे के दौरान स्थानीय बाजारों में आदिवासी हस्तशिल्प जैसे लौह शिल्प, बाँस की वस्तुएँ, और मृदभांड प्रदर्शित होते हैं।
  • इन वस्तुओं में आदिवासियों की कला और जीवन शैली की झलक मिलती है।

परंपरागत वेशभूषा और गहने

  • बस्तर की महिलाएँ पारंपरिक साड़ियों और चाँदी के गहनों से सुसज्जित होती हैं।
  • आदिवासी पुरुष धोती और पारंपरिक आभूषण पहनते हैं।
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4. मैकाल पर्वत श्रृंखला और अमरकंटक

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मैकाल पर्वत श्रृंखला में स्थित अमरकंटक छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह स्थान नर्मदा, सोन और जोहिला नदियों का उद्गम स्थल है। अमरकंटक का शांत और सुरम्य वातावरण पर्यटकों को सुकून का अनुभव कराता है। यहां के प्रमुख आकर्षणों में नर्मदा कुंड, कपिल धारा, और दुधधारा जलप्रपात शामिल हैं। इन स्थलों के साथ ही यहां का घना जंगल और पहाड़ियां ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए एक आदर्श स्थान है।

अचानकमार टाइगर रिजर्व छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित है और यह अपनी समृद्ध जैव विविधता, अद्वितीय पारिस्थितिकी और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यह रिजर्व सतपुड़ा की मैकाल पहाड़ियों पर फैला हुआ है और छत्तीसगढ़ के प्रमुख प्राकृतिक स्थलों में से एक है। वर्ष 1975 में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972 के तहत इसे वन्य अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था। 2009 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया, और यह भारत के 39 टाइगर रिजर्व में से एक है।

भौगोलिक और पारिस्थितिकी महत्व

क्षेत्रफल और संरचना

  • अचानकमार टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 553.286 वर्ग किमी है।
  • यह रिजर्व साल, बांस, सागौन, और अन्य वृक्षों से घिरे घने जंगलों से आच्छादित है।
  • यहाँ का परिदृश्य घने जंगल, पहाड़ियाँ, और घुमावदार रास्तों का अद्भुत संयोजन प्रस्तुत करता है।

बायोस्फीयर रिजर्व

  • वर्ष 2007 में इसे अमरकंटक बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा घोषित किया गया।
  • यह रिजर्व मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में विस्तारित है, जिससे इसकी पारिस्थितिकी को एक अद्वितीय संरक्षण क्षेत्र का दर्जा मिला।

वन्यजीव और जैव विविधता

अचानकमार टाइगर रिजर्व अपने अद्वितीय वन्यजीव और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है।

  • स्तनधारी प्रजातियाँ:
    • बाघ, तेंदुआ, गौर, भालू, लकड़बग्घा, सियार, चार सिंग वाला मृग, चिंकारा, जंगली सुअर, और बायसन।
    • यहाँ उड़न गिलहरी और चिलीदार हिरण जैसे दुर्लभ जीव भी देखे जा सकते हैं।
  • पक्षी प्रजातियाँ:
    • यह अभयारण्य 200 से भी अधिक पक्षी प्रजातियों का घर है।
    • इनमें कई प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं, जो इसे पक्षी प्रेमियों के लिए आकर्षक स्थल बनाते हैं।
  • वनस्पतियाँ:
    • साल, बांस, सागौन और अन्य औषधीय पौधों की प्रचुरता यहाँ की जैव विविधता को समृद्ध बनाती है।

5. भोरमदेव मंदिर

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कवर्धा जिले में स्थित भोरमदेव मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” कहा जाता है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और अपनी उत्कृष्ट शिल्पकला और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं, नर्तकियों और पौराणिक कहानियों से जुड़ी मूर्तियां उकेरी गई हैं। मंदिर के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है, जहां पर्यटक एक शांत और आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव कर सकते हैं।

भोरमदेव मंदिर का निर्माण और इतिहास

  1. निर्माणकाल:
    • भोरमदेव मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में फणि नागवंशी शासक गोपाल देव द्वारा कराया गया था।
    • नागवंशी वंश भगवान शिव के उपासक थे, और इस मंदिर का निर्माण उनके शिव भक्ति को दर्शाता है।
  2. शासनकाल का योगदान:
    • नागवंशियों ने इस क्षेत्र में कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया।
    • उनके शासनकाल के दौरान निर्मित यह मंदिर उस समय की समृद्ध स्थापत्य शैली और धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है।
  3. स्थापत्य शैली:
    • भोरमदेव मंदिर की संरचना में हिंदू और जैन स्थापत्य कला का समन्वय देखने को मिलता है।
    • मंदिर का शिखर नागर शैली में निर्मित है, जो उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की विशेषता है।

मंदिर की स्थापत्य कला और मूर्तियाँ

मंदिर का गर्भगृह और मंडप

  • मंदिर का गर्भगृह भगवान शिव को समर्पित है, जहाँ शिवलिंग प्रतिष्ठित है।
  • मंडप में पत्थरों पर अद्भुत नक्काशी की गई है, जो धार्मिक और सामाजिक जीवन को दर्शाती है।

दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियाँ

  1. देवी-देवताओं की मूर्तियाँ:
    • मंदिर की दीवारों पर शिव, विष्णु, दुर्गा, और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
    • इन मूर्तियों में पौराणिक कथाओं के दृश्य और देवी-देवताओं के विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण है।
  2. नर्तकियों और प्रेमी युगल:
    • खजुराहो की तरह, यहाँ भी दीवारों पर नर्तकियों और प्रेमी युगल की कलात्मक मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
    • ये मूर्तियाँ प्रेम, सौंदर्य, और मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करती हैं।
  3. पौराणिक दृश्य:
    • महाभारत, रामायण, और अन्य धार्मिक ग्रंथों से प्रेरित कथाओं को मूर्तियों के माध्यम से जीवंत किया गया है।
  4. प्राकृतिक आकृतियाँ:
    • मंदिर की बाहरी दीवारों पर फूल, पत्तियाँ, और पशु-पक्षियों की आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं।

भोरमदेव मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  1. शिव उपासना का केंद्र:
    • यह मंदिर भगवान शिव की आराधना के लिए प्रसिद्ध है और हर साल हज़ारों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
  2. शिवरात्रि का आयोजन:
    • महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
    • इस दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहाँ एकत्र होते हैं और आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।
  3. सांस्कृतिक धरोहर:
    • भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है।
    • इसकी शिल्पकला और मूर्तियाँ छत्तीसगढ़ की प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाती हैं।

मंदिर के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य

मंदिर का परिवेश और शांत वातावरण

  • भोरमदेव मंदिर पहाड़ियों और हरियाली के बीच स्थित है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है।
  • मंदिर परिसर का शांत वातावरण पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक सुकून प्रदान करता है।

भोरमदेव अभयारण्य:

  • मंदिर के पास स्थित भोरमदेव अभयारण्य भी एक प्रमुख आकर्षण है।
  • यह अभयारण्य वन्यजीव प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है।

सरोवर और जलाशय:

  • मंदिर के पास एक सुंदर सरोवर भी स्थित है, जहाँ पर्यटक प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।

6. तीरथगढ़ जलप्रपात

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बस्तर क्षेत्र में स्थित तीरथगढ़ जलप्रपात अपनी सीढ़ीनुमा संरचना के लिए प्रसिद्ध है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित यह जलप्रपात अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है। झरने के आसपास का क्षेत्र हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है, जो इसे पिकनिक और प्रकृति के साथ समय बिताने के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। यह स्थान पर्यटकों के लिए फोटो खींचने और वन्यजीवन का आनंद लेने के लिए बेहतरीन है।

खूबसूरत झरने और पर्यावरणीय महत्ता

झरने की भव्यता और सुंदरता

  • तीरथगढ़ जलप्रपात बहुस्तरीय (मल्टी-लेवल) झरना है, जो पानी के कई स्तरों में गिरने के कारण विशेष रूप से आकर्षक दिखता है।
  • झरने के चारों ओर हरे-भरे जंगल हैं, जो इसे और अधिक मनमोहक बनाते हैं।
  • मानसून के दौरान, झरने का जलस्तर बढ़ जाता है, और यह अपनी पूरी भव्यता में दिखाई देता है।

पर्यावरणीय महत्ता

  • तीरथगढ़ जलप्रपात कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है, जो जैव विविधता का प्रमुख केंद्र है।
  • यह क्षेत्र कई दुर्लभ वन्यजीवों, पक्षियों, और वनस्पतियों का निवास स्थल है।
  • झरने का साफ पानी आसपास के वन क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बनाए रखने में मदद करता है।
  • यह क्षेत्र न केवल पर्यावरणीय महत्व रखता है, बल्कि स्थानीय जनजातियों के जीवन का भी हिस्सा है।

शांति और सुकून

  • झरने की धारा की कलकल ध्वनि और उसके चारों ओर का शांत वातावरण इसे ध्यान, योग, और आत्मशांति के लिए उपयुक्त स्थान बनाता है।

7. सिरपुर

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महासमुंद जिले में स्थित सिरपुर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह प्राचीन काल में दक्षिण कोसल की राजधानी था। सिरपुर के प्रमुख आकर्षणों में लक्ष्मण मंदिर, जो भारत के सबसे प्राचीन ईंट निर्मित मंदिरों में से एक है, और बुद्ध विहार शामिल हैं। यहां पर पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई में मिली मूर्तियां और संरचनाएं इस क्षेत्र की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं। इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए यह स्थान एक खजाना है।

प्राचीन बौद्ध स्थल

सिरपुर अपने प्राचीन बौद्ध स्थलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यह स्थल बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान परंपराओं का केंद्र रहा है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में यहाँ से अनेक स्तूप, विहार, और प्राचीन बौद्ध अवशेष प्राप्त हुए हैं।

शिवगुप्त बलार्जुन का योगदान:
सिरपुर का बौद्धिक और धार्मिक विकास प्रमुख रूप से राजा शिवगुप्त बलार्जुन के शासनकाल में हुआ। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा ने यहाँ अनेक बौद्ध मठों और स्तूपों का निर्माण करवाया, जो आज भी उनकी सांस्कृतिक दृष्टि को दर्शाते हैं।

अनुप्रास विहार:
सिरपुर का अनुप्रास विहार एक विशाल बौद्ध मठ है, जो 7वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह मठ बौद्ध स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहाँ 12 कमरे, ध्यान कक्ष, और स्तूप की संरचना देखने को मिलती है।

महासंघराम विहार:
महासंघराम विहार सिरपुर का एक और प्रमुख बौद्ध स्थल है। यहाँ की वास्तुकला और मूर्तिकला बौद्ध धर्म के सुनहरे युग की गवाही देती है।

लक्ष्मण मंदिर: स्थापत्य का अद्वितीय नमूना

सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों में अपनी विशेष पहचान रखता है। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है और ईंटों से निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।

स्थापना और इतिहास:
लक्ष्मण मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था और इसे राजा महाशिवगुप्त बलार्जुन की रानी वासटा देवी ने अपने पति की स्मृति में बनवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान है।

वास्तुशिल्प और मूर्तिकला:
मंदिर का प्रवेशद्वार और स्तंभ बेहद सुंदर नक़्क़ाशी से सजाए गए हैं। यहाँ शेषनाग की मूर्ति, विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रण और पौराणिक कथाओं की झलक देखने को मिलती है। मंदिर के शिखर और आधार पर बने जटिल डिज़ाइन भारतीय वास्तुकला की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करते हैं।महत्व:
लक्ष्मण मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थापत्य और मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अद्वितीय स्थान रखता है। यह स्थल भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल होने के योग्य माना जाता है।

8. डोंगरगढ़

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राजनांदगांव जिले में स्थित डोंगरगढ़ का बम्लेश्वरी मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर 1,600 फीट की ऊंचाई पर है और यहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों या रोपवे का उपयोग किया जा सकता है। नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता और शांति का अनुभव कराता है।

धार्मिक आस्था और नवरात्रि उत्सव

मंदिर का धार्मिक महत्व

बम्लेश्वरी देवी को ‘माँ बम्लेश्वरी’ के नाम से पूजा जाता है। यह स्थान शक्ति उपासकों के लिए अत्यंत पवित्र है।

  • ऐसा माना जाता है कि यहाँ देवी माँ के दर्शन से सभी कष्टों का निवारण होता है।
  • यह मंदिर श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है।
  • बम्लेश्वरी देवी की मूर्ति गर्भगृह में स्थित है, जहाँ भक्त घंटों लाइन में खड़े होकर दर्शन करते हैं।

नवरात्रि उत्सव का विशेष महत्व

डोंगरगढ़ में बम्लेश्वरी मंदिर नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बनता है।

  • दुर्गा पूजा और अनुष्ठान: नवरात्रि के नौ दिनों में यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है। श्रद्धालु उपवास रखते हैं और देवी माँ की आराधना करते हैं।
  • मेला आयोजन: नवरात्रि के दौरान डोंगरगढ़ में एक भव्य मेला आयोजित होता है। इस मेले में हर उम्र के लोग उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।
  • श्रद्धालुओं की भीड़: नवरात्रि के समय लाखों श्रद्धालु यहाँ एकत्र होते हैं। आसपास के राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग देवी के दर्शन के लिए आते हैं।
  • संध्या आरती का महत्व: मंदिर में संध्या आरती एक दिव्य अनुभव प्रदान करती है। आरती के समय देवी माँ के जयकारों और घंटियों की ध्वनि से वातावरण गूँज उठता है।

पहाड़ी पर स्थित मंदिर और प्राकृतिक दृश्य

बम्लेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका पहाड़ी पर स्थित होना है। यह मंदिर 1,600 फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ तक पहुँचने के लिए भक्तों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर हैं। यह राज्य पर्यटकों को एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है। यहां की यात्रा न केवल मनोरंजक होगी, बल्कि आपको भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक विविधता से परिचित होने का भी अवसर प्रदान करेगी।

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