मकर संक्रांति का सांस्कृतिक महत्व
-रमेश चौहान
मकर संक्रांति का सांस्कृतिक महत्व -भूमिका
भारत विविध संस्कृति एवं विविध परम्पराओं का देश है । अलग-अलग राज्यों अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृति एवं परम्परा में भिन्नता होते हुये भी एक ही आधार पर टिका हुआ है । देश के सभी त्यौहारों, पर्वो, उत्सवों का एक पौराणिक आधार है । इन पर्वो का निर्धारण ज्योतिष काल-गणना के आधार पर होता है । मकर संक्रांति भारत का एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे भारत के सम्पूर्ण भू-भाग में मनाया जाता है यह अलग बात अलग-अलग क्षेत्रों इसके नाम एवं परम्पराएं भिन्न हो सकते है लेकिन सभी का आधार एक ही सूर्य का मकर राशि में प्रवेश ।
मकर संक्रांति क्या हैं ?
भारतीय ज्योतिष की मान्यता के अनुसार बारह राशियां होती हैं । इन राशियों में नौ ग्रह गति करते हैं, जिसे गोचर कहा जाता है । सूर्य भारतीय ज्योतिष के अनुसार एक ग्रह है । सूर्य इन बारह राशियों में गोचर करता है । जब-जब सूर्य जिस-जिस राशि में प्रवेश करता है, इसे ही उस राशि की संक्रांति कही जाती है । जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो मेष संक्रांति, कन्या राशि में प्रवेश करे तो कन्या संक्रांति, धनु राशि में प्रवेश करे धनु संक्रांति और जब मकर राशि मे सूर्य प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं । भारतीय संस्कृति में धनु संक्रांति और मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाया जाता है किन्तु जहां धनु संक्रांति उडिसा जैसे कुछ राज्यों तक सीमित है वहीं मकर संक्रांति सम्पूर्ण भारत में एक पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
मकर संक्रांति एक भारतीय पर्व है,जिसे सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है ।
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति हिन्दू पर्व होते हुये भी हिन्दी तिथि में न मना कर अंग्रेजी तिथि में मनाते हैं क्यों ?
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि अधिकांश भारतीय हिन्दू त्यौहार, उत्सव, पर्व हिन्दी महिने के तिथि के अनुसार मनाया जाता है किन्तु मकर संक्रांति का पर्व अंग्रेजी तिथि 14 जनवरी को मनाया जाता है । यह कहना कि मकर संक्रांति अंग्रेजी तिथि 14 जनवरी को मनाया जाता है सत्य है किन्तु यह अर्धसत्य है कि मकर संग्रांति हिन्दू पर्व होते हुये भी हिन्दी तिथि में न मना कर अंग्रेजी तिथि में मनाया जाता है । वास्तव में मकर संक्रांति हिन्दी पंचांग के अनुसार ही मनाया जाता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है किन्तु यह संयोग 14 जनवरी को ही इसलिये पड़ता है क्योंकि सूर्य का मकर में प्रवेश सूर्य की गति पर निर्भर करता और अ्ंग्रजी महिना सौर मास है हिन्दी महिना चन्द्रमास । हिन्दी महिना के अनुसार मकर संक्रांति पौष माह पर पड़ता है जबकि अंग्रेजी महिना के अनुसार जनवरी पर । सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण् होने की तिथि शताब्दियों तक नियत होती है पहले यह 13 जनवरी को पड़ता था अभी यह 14 जनवरी को पड़ रहा है आगे यह 15 जनवरी को होने वाला है । वर्तमान दशक में मकर संक्राति 14 और 15 जनवरी के मध्य संक्रमण काल में है इसलिये चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार पुण्यकाल की काल गणना के आधार पर 14 जनवरी या 15 जनवरी को मनाया जा रहा है ।
मकर संक्रांति सूर्य गति पर निर्भर करता है इसलिये सूर्य का मकर में प्रवेश, दक्षिाणायन से उत्तरायण होना सौर मास के 14 जनवरी को पड़ता है ।
मकर संक्रांति 14 जनवरी को क्यों ?
मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं ?
किसी भी पर्व या त्यौहार को मनाने के पीछे कोई न कोई पौराणिक, अध्यात्मिक या सांस्कृतिक कारण अवश्य होता ही है मकर संक्रांति मनाने के पीछे भी कारण है जिसमें प्रमुख कारण इस प्रकार है-
1. खरमास की समाप्ति-
मकर संक्रांति के ठीक पूर्व सूर्य धुन राशि पर गोचर कर रहे होते हैं जिसे धनुसंक्रांति के नाम से जाना जाता है, इसी माह को खर मास या मल मास कहा जाता है । मकर संक्रांति के दिन इस मलमास का समापन होता है । मान्यता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं चूँकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि मकर राशि का स्वामी है इसलिये सूर्य शनि से मिलने शनि की राशि मकर पर जाते हैं । इस दिन जप, तप, दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है ।
2.गंगाा अवतरण और सगर संतति को तिजांजलि देना-
गंगा अवतरण की कथा से हम सभी जानते हैं कि भगीरथ ने कठोर तप के बल पर गंगा को धरती पर आने के लिये विवश कर दिया और माता गंगा उनके तप से द्रवित होकर धरती में प्रकट हुई । भगीरथ, गंगा को हिमालय की चोटी गोमुख से गंगा गंगासागर कपिल मुनि के आश्रम तक लेकर आये । मकर संक्रांति के दिन ही गंगा का कपिल मुनी आश्रम में प्रवेश हुआ, जहां कपिल मुनि के श्राप से भगीरथ के पूर्वज, सगर के संतति कपिल मुनि के श्राप से भस्मीभूत हो गये थे । इनके मुक्ति के लिये ही गंगा काे यहॉं तक लाया गया था । मकर संक्रांति के दिन ही भगीरथ ने माँ गंगा के जल से अपने पूर्वजों को तिलांजली दिया था । यही कारण है कि मकर संक्रांति पर गंगासागर पर मेला का आयोजन होता है और इस पर्व में तिल तिल से बने लड्डूओं का दान करने का विशेष महत्व है ।
मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व-
कलेण्डर, पंचांग, काल गणना का आधार खगोलीय घटनाओं पर आधिरत होता है । वर्ष की गणना दो आधारों पर की जाती है एक सर्य की गति आधार पर सौर मास और दूसरा चन्द्रमा की गति पर चन्द्रमास । भारतीय वैदिक ज्योतिष चन्द्र गति पर निर्भर है इसमें चन्द्रमास की गणना होती है । यही कारण माह को दो पक्षों में विभाजित किया गया है एक शुक्ल पक्ष जब चन्द्रमा के आकार में नित्य वृद्धि होती है और दूसरा कृष्ण पक्ष जब चन्द्रमा के आकसा में नित्य कमी आती है । ठीक इसी प्रकार सूर्य गति के आधार पर वर्ष को दो भागों में बांटा गया है एक दक्षिणायन और दूसरा उत्तरायण । दक्षिणायन में सूर्य की रोशनी धरती में अपेक्षाकृत कम होती है दिन की अवधी भी कम होती है जबकि उत्तरायण में सूर्य रोशनी धरती पर अधिक पड़ती है और दिन की अवधि भी अधिक होता है । मकर संक्रांति इसी अयन का संधि बेला है । मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायन होता है और दिन की अवधी में बढ़ोत्तीरी होनी लगती है । इस प्रकार मकर संक्रांति का अपना एक खगोलीय महत्व है ।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व –
वैज्ञानिक रूप से यह सर्वविदित है कि वर्षा जल के वाष्पन और संघनन से होता है । वाष्पन की क्रिया जितनी अच्छी होगी उसका संघनन उतना ही अच्छा होगा फिर वर्षा अच्छी होगी । यह भी जानते हैं सूर्य का उत्तरायण होने से जलाशयों में सूर्य कि किरणे सीधी और तिखी पड़ने लगती है, जिससे वाष्पन अधिक होने लगता है । मकर संक्रांति सूर्य उत्तरायण होने का प्रारंभ बिन्दु है । इस दिन पवित्र जलाशयों में स्नान का महत्व इसी कारण है । इस दिन जलाशयों मेें स्नान करने से ऊर्जा एवं स्फूर्ति का संचार होती है यहॉं ध्यान देने योग्य तथ्य यह है इस ऊर्जा की प्राप्ति घर के बाथरूम में स्नान करने से नहीं हो सकता क्योंकि बाथरूम के जल से वाष्पन की क्रिया नहीं हो रही होती । मकर संक्राति पर्व पर तिल-गुड़ खाने की परम्परा है इसका वैज्ञानिक आधार तिल एवं गुड़ की उष्णता शक्ति है । यह शक्ति मकर संक्रांति से प्रारंभ हाेने वाले मौसम के अनुकूल है । इसी प्रकार खिचड़ी खाने की परम्परा है । क्योंकि खिचड़ी शरीर में पाचक शक्ति और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है । इस प्रकार मकर संक्राति पर्व की परम्पराऍं वैज्ञानिक आधार पर अवलंबित है ।
मकर संक्रांति सांस्कृतिक एकता का पर्याय-
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग संस्कृति पल्लवित है । यह सांस्कृतिक विभिन्नता भारत की शक्ति भी है । मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न संस्कृतिक एकता का पर्याय है । मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग नामों से पूरे देश में उत्साह एवं परम्परागत तरीके से मनाया जाता है । इस पर्व को भारत के अतिरिक्त नेपाल, थाईलैंण्ड़, श्रीलंका, कम्बोडि़या आदि देशों में भी मनाया जाता है ।
भारतीय क्षेत्र | मकर संक्राति पर्व |
---|---|
पश्चिम बंगाल | गंगा सागर मेंला |
पंजाब-हरियाणा | लोहड़ी |
दक्षिण भारत | पोंगल |
कर्नाटक | सुग्गी हब्बा |
पूर्वोत्तर | माघ बिहू |
गुजरात | उत्तरायण |
उत्तर भारत | सकरात या सकरायत |
मकर संक्रांति पर गंगा सागर मेला-
मकर संक्रांति पर भारत में गंगासागर का मेला विश्व प्रसिद्ध है । यहाँ ‘सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार’ कहा जाता है । यह गंगा सागर का मेला मकर संक्राति पर ही लगता है जिसमें लाखों-लाख लोगी श्रद्धा स्नान करते हैं । गंगासागर, बंगाल की खाड़ी में स्थित एक द्वीप है।कोलकाता से 100 कि.मी. दूर, गंगासागर सुंदरबन डेल्टा का हिस्सा है । गंगासागर द्वीप के छोर पर,जहाँ से गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है गंगासागर मेले का आयोजन होता है । इस मेले भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग आते ही आतें हैं साथी विश्व के कई हिस्सों से भी लोग आते हैं । इस प्रकार यह मेला विभिन्न संस्कृतियों का संगम स्थली के रूप में भारत के विविधता में एकता को निरूपित करता है ।
लोहड़ी-
लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलास से मनाया जाता हैं। मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए जाते हैं।
लोहड़ी से २०-२५ दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। इकट्ठा किये गये लकड़ीयों, उपलों को गॉंव-शहर के चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर जलाई जाती है। जलती हुई इस आग को लोहड़ी कहा जाता है । मुहल्ले या गाँव भर के लोग लोहड़ी के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। रेवड़ी या मक्की के भुने दाने लोहड़ी को भेंट करते हैं तथा प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बॉंटते हैं। घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।
पोंगल-
पोंगल तमिल हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व मकर संक्रांति पर प्रति वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इसे शस्योत्सव अर्थात फसल कटाई का उत्सव होता है । पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है। पारम्परिक रूप से इसे सम्पन्नता का पर्व माना जाता है, इस पर्व में समृद्धि की माकमना के लिए वर्षा, धूप तथा खेतिहर मवेशियों की आराधना की जाती है। इस पर्व का इतिहास कम से कम 1000 साल पुराना है तथा इसे तमिलनाडु के अलावा देश के अन्य भागों में भी मनाया जाता है ।
सुग्गी हब्बा-
मकर संक्रांति के पर्व को कर्नाटक में सुग्गी हब्बा के नाम से मनाया जाता है । जिस प्रकार उत्तर भारत मकर संक्रांति पर तिल की लड्डू प्रसिद्ध है उसी प्रकार कर्नाटक में ‘ईलू-बेला’ प्रसिद्ध है । कर्नाटक में, संक्रांति के अवसर पर लोग नये वस्तत्र धारण करते हैं विशेष कर लड़कियां । लड़कियां अपनी सहेलियों या परिवार के साथ गन्ने और ईलू-बेला के टुकड़े के साथ एक थाली लेकर तिल, नारियल, फूटी हुई मूंगफली और गुड़ लेकर सजाती हैं । कर्नाटक के अधिकांश हिस्सों में, युवा लड़कियों और नवविवाहित जोड़े अपने प्रियजनों के पास जाकर एलु-बेला का वितरण करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं। इस अनुष्ठान को “एलु बीरोडु” कहा जाता है।
माघ बिहू-
माघ बिहू पूर्वोत्तर भारत विशेष कर असम के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। पर्वोत्तर के लोग माघ बिहू को काफी हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं । यह पर्व भी फसलों से जुड़ा हुआ है, इसी समय खेतों से पक चुकी फसलों की कटाई करते हैं । इस दिन लोग प्रकृति और भगवान को फसलों की अच्छी पैदावार के लिए धन्यवाद देते हैं । पूर्वोत्तर के लोग इस त्योहार के साथ ही नये साल की शुरुआत मानते हैं । माघ बिहू के अवसर लोग खार, आलू पितिका, जाक, मसोर टेंगा. पपीते के साथ-साथ जले केले के तने का इस्तेमाल करके खार बनाते हैं ।
उत्तरायण –
गुजरात में मकर संक्रांति को ‘उत्तरायण’ पर्व कहा जाता है । गुजरात में इस दिन लोग पतंगबाजी का मजा लेते हैं। पतंगबाजी का यह उमंग इतना ज्यादा है । आजकल मकर संक्रांति या उत्तरायण पर्व से कहीं ज्यादा इसे पतंगबाजी उत्सव के रूप जाना जाने लगा है । पतंगबाजी गुजरात का पहचान बना चुका है । गुजरात में बच्चे, बुर्जुग, पुरूषों के साथ-सााथ महिलायें भी पतंगबाजी में भाग लेती हैं । पतंगबाजी के इस महत्व को विश्वस्तरीय बनाने के लिये अहमदाबाद में इंटरनैशनल काइट फेस्टिवल का भी हर साल आयोजन होता है। उत्तरायन के मौके पर गुजरात में उन्धियु और चिक्की खाने की परंपरा है।
सकरात-
मरक संक्राती को उत्तरभारत में सकरात या सकरायत के नाम से मनाया जाता है । इस दिन लोग बड़ी संख्या पवित्र नदियों या जलासयों में स्नान करते हैं। स्नान के बाद तिल और गुड़ का लड्डू खाने का प्रावधान है। इस पर्व को आदिवासी वर्ग विशेष तौर अलग रीति-रिवाज से मनाते हैं ।
उमंग और उत्साह का पर्व मकर संक्रांती-
मकर संक्रांति यद्यपि आस्था का पर्व है फिर भी यह उमंग और उत्साह के साथ पूरे देश भर में मनाया जाता है, चाहे वह लोहडी हो, पोंगल हो, सुग्गी हब्बा हो, माघ बिहू हो या गुजरात का पतंगबाजी सभी में एक चीज उभयनिष्ठ है उमंग, मौज मस्ती । जहॉं लोहड़ी में लोहड़ी के चारो ओर घूम-घूम कर आनंद उत्सव मनाया जाता वहीं गुजरात में पतंगबाजी का आनंद चरमोत्कर्षपर होता है । कुल मिलाकर यह पर्व पूरे देश आनंद की नदी बहाती है । इस पर्व में लोगों में एक उत्साह और जीवन को जीवंत जीने की इच्छा बलवती होती है ।
-रमेश चौहान
आलेख स्रोत-विकिपिडि़या
आदरणीय चौहान जी मकर संक्रांति पर विस्तृत जानकारी देने वाले बेहतरीन आलेख के लिये हार्दिक बधाई ..
सादर धन्यवाद भैया, इसी प्रकार दृष्टिपात करते रहियेगा
मकर संक्रांति पर ज्ञानवर्धक परिपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई।
सादर धन्यवाद वर्माजी