बच्चों का भविष्य सुखी एवं निरोगी बनायें
-रमेश चौहान
बच्चों का भविष्य सुखी एवं निरोगी बनायें
बच्चों का भविष्य-
हम सभी चाहते हैं कि बच्चों का भविष्य सुनहरा हो, उनका भविष्य सुखी एवं निरोगी हो । बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने हम खून-पसीना एक कर देते हैं । हमें इस बात का सिंहावलोकन करने की आवश्यकता है कि हमारे द्वारा बच्चों के भविष्य के लिये किये जा रहे उपाय क्या उनको सुखी एवं निरोगी जीवन देने में कारगर होगा अथवा नहीं ।
बच्चों का भविष्य कैसा हो ?
निश्चित रूप से हर मॉं-बाप चाहेंगे बच्चों का भविष्य अच्छा हो । किन्तु इस अच्छा का क्या परिभाषा होना चाहिए । यह विचारणीय है । बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण तभी संभव है जब वह निरोगी और संस्कारी हो ।
बच्चों का भविष्य सुखमय हो : सभी जीव सुखी रहना चाहते हैं-
सृष्टि में मनुष्य क्या सभी जीव सुखी रहना चाहते हैं । बस सुख की परिभाषा भिन्न-भिन्न जीवों के लिये भिन्न-भिन्न हाेे सकती है । यहाँ तक की भिन्न-भिन्न लोगों के लिये भी सुख भिन्न-भिन्न हाेे सकता है । कितु सर्वभौमिक सुख सबका एक ही है और वह है- ‘तन-मन से स्वस्थ रहते हुये जीवन का भरपूर उपभोग करना ।’ कोई जीवन के उपभोग से तभी सुखी अनुभव करता है जब वह निरोगी हो । यदि निरोगी काया को सुख का आधार कहा जाये तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी । सबसे पहले हम सुख एवं निरोगता को समझनें का प्रयास करें । जिससे बच्चों का भविष्य सुखी एवं निरोगी बनाया जा सके ।
सुख क्या है ?
लोग कहते हैं मजा आ गया । किन्तु यदि उनसे पूछा जाये कि यह मजा क्या है ? तो बहुत लोग निरोत्तर हो जाते हैं । वास्तव में यह मजा तो अनुभवगम्य है । इसे अनुभव किया जा सकता है व्यक्त नहीं किया जा सकता ।
‘सुख तन-मन की वह स्थिति जिसमें मन अपने आप में तृप्त होने का अनुभव करता है, देह की इंन्द्रियां खुद को तनाव मुक्त महसूस करती है ।’
सुख प्राप्त करने का साधन क्या है ?
अधिकांश लोग भौतिक साधनों का अधिकाधिक उपभोग को सुख का पर्याय मानते हैं, जिसकी पूर्ति के लिये धन का होना आवश्यक है । इसिलिये दरिद्रता को दुनिया का सबसे बड़ा दुख भी कह दिया गया । किन्तु पैसा होने के बाद भी इन भौतिक संसाधनों का उपभोग करने के लिये तन का स्वस्थ होना आवश्यक है । यदि तन स्वस्थ नहीं रहेगा तो मन भी स्वस्थ नहीं होगा और किसी भी साधन से सुख की प्राप्ति नहीं हो सकता । इसलिये कह सकते है सुख का सच्चा साधन स्वस्थ मन और स्वस्थ तन है । इसिलिये हम बच्चों का भविष्य सुखी एवं निरोगी करने के लिये बाल्यकाल से ही उनके स्वस्थ मन और स्वस्थ तन के प्रति सचेत रहें ।
बच्चों का भविष्य निरोगी हो-
निरोगता-
देह के सभी घटक, सभी इंन्द्रियों का सुचारू रूप से काम करना निरोगता अथवा स्वास्थय या निरोग कहलाता है । कहा गया है- ‘स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का वास होता है ।’ और ‘ ‘मन का हारे हार है मन का जीते जीत’ । इसका अभिप्राय यह हुआ मन और तन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । तन स्वस्थ मन स्वस्थ और मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ । मानसिक विकारों और शारीरिक विकारों से रहित स्थिति ही निरोगता है ।
निरोगता की चुनौतियां-
निरोगता को आयु बढ़ने के साथ-साथ बनाये रखना एक कड़ी चुनौती होती है । हमारे खान-पान, रहन-सहन का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर निश्चित रूप से होता है तथा आयु वृद्धि के साथ ही अंगों का शिथिल होना भी एक प्राकृतिक क्रिया है । लंबे समय तक वही व्यक्ति स्वस्थ रह सकता जिसका जीवन सुव्यस्थित एवं संयमित हो । बच्चों का भविष्य
संयमित एवं सुव्यवस्थित जीवन-
संयमित एवं सुव्यवस्थित जीवन केवल एक-दो दिन में प्राप्त नहीं किया जा सकता । यह तो सतत चलने वाली प्रक्रिया है जिसका प्रारंभ जन्म से ही हो जाता है । इसलिये अपने बच्चों को बाल्यकाल से इस ओर प्रेरित करने की आवश्यकता है । बच्चों का भविष्य
बच्चों का भविष्य सुखी एवं निरोगी बनायें-
दुनिया में ऐसे कौन माता-पिता होंगे जो अपने बच्चों का भविष्य में सुखी एवं निरोगी नहीं देखना चाहेंगे । अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों का जीवन सुखी हो इसके लिये उसके जन्म से प्रयास प्रारंभ कर देते हैं । अच्छी से अच्छी शिक्षा देने का प्रयास केवल उनके सुखी जीवन की कामना को लेकर ही किया जाता है । बच्चें भविष्य में सुखी हो इसके लिये प्रत्येक माता-पिता अपने कमाई की लगभग आधा हिस्सा केवल बच्चों पर ही खर्च करते हैं उसमें भी एक बहुत बड़ा भाग केवल उसके पढ़ाई में ही खर्च करते हैं । इच्छा केवल इतना ही है कि पढ़-लिख जायेगा तो अच्छा पैसा कमायेगा, जिससे वह सुखी रहेगा । ऐसा करते समय बच्चों से संघर्ष करने की शक्ति को छिन लेते हैं, उसे पढ़ाई-लिखाई के अलावा कुछ भी करने की प्रेरणा देना तो दूर बच्चें चाहें भी तो नहीं करने देते । बच्चों का भविष्य सुखी एवं निरोगी बनायें ।
बच्चों का भविष्य बेहतर हो इसके लिए यथार्थ की धरातल पर विचार करे-
क्या केवल पढ़ाई-लिखाई ही सुखी और निरोगी जीवन के लिये पर्याप्त है ? नहीं, नहीं कदापि नहीं । यदि आप अपने बच्चों का भविष्य में सुखी एवं निरोगी देखना चाहते हैं तो आज से ही ऐसी शिक्षा देनी चाहिये जो दुनिया के किसी स्कूल में नहीं दिया जाता, जिसे केवल माता-पिता ही दे सकते हैं ।
प्रकृति के साथ संतुलन बिठाने का अभ्यास कराना-
प्रकृति सुख एवं स्वास्थ्य दोनों का मूल है । प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना सुख एवं स्वास्थ्य कारक होता है । यही कारण है कि गुरूकुल के समय बच्चों को गाँव-शहर से दूर प्रकृति की गोद में शिक्षा दी जाती थी ।
अधिक गर्मी, अधिक ठंड, अधिक वर्षा किसी भी व्यक्ति को विचलित कर सकता है । अचानक इस स्थिति के संपर्क में आने पर बीमार कर सकता है । इस स्थिति से बचने के लिये बाल्यकाल से ही बच्चों को प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का अभ्यास होना चाहिये ।
बच्चों को प्राकृतिक वातावरण के सीधे संपर्क में आने देना चाहिये । उसे बंधक बना कर प्रकृति से दूर नहीं करना चाहिये । प्रकृति के संपर्क मे रहकर उसका शरीर प्रकृति के अनुकूल हो जायेगा औरबच्चों का भविष्य में उसका जुड़ाव प्रकृति से बना रहेगा जिससे वह प्राकृतिक रूप से सुखी एवं निरोगी रहेगा ।
संघर्षो से जुझने का अभ्यास कराना-
शिवाजी एवं उनकी माता जीजाबाई का जीवन यहाँ प्रासंगिक है । किस प्रकार सुख-सुविधा संपन्न होने के बाद भी माता जीजाबाई अपने बालक को संघर्षो से जुझने की शिक्षा देती थी ।
समय कभी भी एक समान नहीं हो सकता । जीवन में उतार-चढ़ाव आना अवश्यसंभावी है । इस उतार-चढ़ाव के क्रम को अविचलित हुये पार करने के लिये आवश्यक है, संघर्षो से जुझने का अभ्यास होना चाहिये ।
शारीरिक श्रम का अभ्यास कराना-
देह की प्रक्रिया भोजन करना और पचे हुये भोजन को अपशिष्ट के रूप में बाहर निकालना है । ये अपशिष्ट मल, मूत्र, वायु एवं पसीने के रूप में होता है । मल-मूत्र एवं वायु का निष्कासन तो प्रतिदिन स्वभाविक रूप से करते ही करते हैं किन्तु पसीने का निष्कासन दुख का प्रतीक मान कर नहीं करते क्योंकि यह पसीना परिश्रम से आता है । जिस प्रकार मल-मूत्र का त्याग आवश्यक है उसी प्रकार श्रम के कारण पसीने का निष्कासन आवष्श्क है । इसीलिये आजकल ‘वर्कआउट’ शब्द प्रचलित हो रहा है ।
शारीरिक श्रम कराने का अभिप्राय कठोर श्रम कराना ही नहीं अपितु घरेलू काम, व्यायाम आदि का बाल्यकाल से ही अभ्यास होना चाहिये ।
स्वस्थ रहने के लिये पसीना बहाना आवश्यक है । आप अपने आसपास ऐसे बुजुर्ग देखे हैं जिनकी आयु 70 वर्ष से अधिक हो और स्वस्थ हो । यदि उनसे बात करके देखे तो आपको ज्ञात होगा उनका स्वास्थ्य का राज उनके बाल्यकाल में किया गया परिश्रम ही है ।
समाजिकता का अभ्यास कराना-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिये उसे समाज के साथ घुलमिल कर रहने की कला आना चाहिये । परिवार में, मोहल्ले में, गाँव में एक-दूसरे से व्यवहार करना आना चाहिये । आजकल अधिकांशतः देखने को मिल रहा है कि बच्चों का समय घर से स्कूल, स्कूल से घर इसी में पूरा व्यतित हो जाता है । समाज के साथ संबंध बनाने का उसे अवसर ही नहीं मिलता । बच्चों का भविष्य
नैतिकता का अभ्यास कराना-
क्या भला है? और क्या बुरा ? इसे परखने का अभ्यास बाल्यकाल से ही होना चाहिये । किस व्यक्ति से हमें कैसे प्रस्तुत होना चाहिये । बच्चों को आत्मकेन्द्रित नहीं बनाना चाहिये, ऐसे लोगों को स्वार्थी कहते हैं । बच्चों में मानवीय गुणों का विकास किया जाना चाहिये । बच्चों का भविष्य
प्रकृति के साथ सामंजस्य रखना ही सुख का आधार है-
प्रकृति के साथ सामंजस्य और शारीरिक श्रम का अभ्यास निरोग रहने का अचूक उपाय है । संघर्षो से जुझने का अभ्यास व्यक्ति को तन एवं मन दोनों से मजबूत बनाता है । समाजिकता का अभ्यास एवं नैतिकता का अभ्यास व्यक्ति को मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है । यदि इन पांच उपायों को बाल्यकाल ही किया जाये तो वह व्यक्ति हर आर्थिक स्थिति में स्वस्थ एवं सुखी रहेगा । कहा गया है-‘अभ्यास ही सबसे बड़ा गुरू है, अभ्यास ही हर कठिन चुनौती को पार पाने सक्षम है ।’’ इसलिये अभ्यास चाहिये और यह अभ्यास बाल्यकाल से होना चाहिये ।
संगति का प्रभाव-
संगति का प्रत्येक मनुष्य के जीवन पर निश्चित ही प्रभाव होता है । इसलिए बच्चों के संगति पर दृष्टि रखनी चाहिए । बच्चों को कुसंग से बचाना चाहिए ।
इसे भी देखें-संगति का प्रभाव रामचरित मानस के आधार पर
-रमेश चौहान
बहुत सुन्दर सर जी
सादर धन्यवाद बोधन भाई, इसी प्रकार अपना स्नेह बनाये रखियेगा ।
ज्ञानवर्धक लेख बधाई💐💐💐💐
धन्यवाद तिवारी जी
ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपको कोटि कोटि धन्यवाद ! चौहान sir…..
सादर धन्यवाद साहूजी
बहुत खूब सर
बच्चों की प्रकृति से दूर रहने का कारण आधुनिक सुविधाएं बन चुकी है आज के दौर में आधुनिक सुविधाएं जैसे मोबाइल फोन के कारण आज बच्चे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं जिसका कारण आज के दौर में विद्यालय में प्राकृतिक ज्ञान तथा खेलो को बढ़ावा ना देना है जिसके कारण बच्चे किताबी ज्ञान में ही उलझ कर रह गए हैं
सविस्तार प्रतिक्रया देने के लिये आपका हार्दिक अभिंनंदन, अमित भाई
Good
Thanks
बहुत ही सुन्दर उपयोगी धरोहर आलेख
धन्यवाद भाई
बहुत ही सुन्दर उपयोगी और धरोहर