छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें-मनोज श्रीवास्‍तव

छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें

-मनोज श्रीवास्‍तव

छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें

मनोज श्रीवास्‍तव की  छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें
मनोज श्रीवास्‍तव की छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें

छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें –

‘आ बेटा चुरगे खाबे’

आ बेटा चुरगे खाबे,
खाले, तहाँ ले डिलवा डहर मेछराबे,
गाँव म घूम-घूम इतराबे,
अउ काटपत्ती-चौरंग म,
कमाके घलो तो लाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
ददा हर कोल्हू कस बइला,
कमावत हे,
सुक्खा रोटी ल,
रसमलई बरोबर खावत हे,
तेखर पीठ म,
लदना कस लदाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
दाई हर बनी म जात हे,
तोला जनमाहे तेखर,
लागा ल छुटात हे,
सुआरी के कमई घलो ल,
मुसुर-मुसुर हलाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
घर वाले मन ल,
लहू के आँसू रोवाबे,
ददा के कमाए मरजाद ल,
माटी म घलो तो मिलाबे,
दाई-ददा तो हक खागे,
उंखर जिये के संउख बुतागे,
ठोमहा भर पानी म तो उन बुड़गे,
अउ काय गंगा ले के जाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।

‘काबर !’

आजकाल के लइका मन के उमर
बीमारी म पहावत हे,
काबर !
आजकाल के दाई लइका ल
अपन दूधे नई पियावत हे,
अरे! देवता घलो मन,
महतारी के दूध पिये बर,
अपन जीव ल चुरोथे,
काबर!
दाई के दूध म अमृत होथे,
आजकाल के दाई मन ल,
बस अपन फिगर के चिंता हे,
अरे! द्वापर त्रेता के दाई मन,
फिगर के चिंता करतीस,
त भगवान धरती म
कभू नई अवतरतीस,
लोगन कहिथें-
भगवान मन अवतार लेके,
परमार्थ करे बर  ललचाय रहिन,
फेर सिरतोन गोठ तो ये हर आय,
ओमन धरती म दाई के दूध पीये आय रहिन।

‘चुनाव बर महूँ खड़े हँव’

ए कका! देसी ल छोड़,
अंग्रेजी ल गटक,
एती-तेती झन बिचार,
मोरे चिनहा म ठप्पा पटक,
चार दिन बर तुंहर ले छोटे हँव
तहाँ पांच साल बर महीं बड़े हँव,
देखे रइहव ददा-भाई,
चुनाव बर महूँ खड़े हँव,
पुराना गोठ हे काबर,
गोठ नवा ल धर,
पाँच सौ के पत्ती देत हँव
जादा चिक-चिक झन कर,
अरे! परिवार के,
कका-बेटा संग लड़े हँव
देखे रइहव ददा-भाई,
चुनाव बर महूँ खड़े हँव।

‘सुन अभिलाषा’

मुखड़ा-
सुन अभिलाषा
बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा
तीरी पासा……..तीरी पासा
तीरी पासा-तीरी पासा-तीरी पासा
सांप सीढ़ी लूडो गोली चैनिस चेकर
झा…र तमाशा
सुन अभिलाषा
अरे बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा
तीरी पासा……..तीरी पासा
तीरी पासा-तीरी पासा-तीरी पासा
अंतरा 1-
अरे थाप ले छेना हेर के गोबर
रोटी पो ले चोग्गर-चोग्गर
छोड़ होटल बासा
सुन अभिलाषा
अरे बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा
तीरी पासा……..तीरी पासा
तीरी पासा-तीरी पासा-तीरी पासा
अंतरा 2-
अंतस मोरे किरिया पारय
मया के आगी मन म बारय
तोर गाल के मासा
सुन अभिलाषा
अरे बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा
तीरी पासा……..तीरी पासा
तीरी पासा-तीरी पासा-तीरी पासा
अंतरा 3-
सम्हर के तैं हर रेंगे रेंगना
नाच न आवय टेड़गा अंगना
त… खलखला के हांसा
सुन अभिलाषा
अरे बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा
तीरी पासा……..तीरी पासा
तीरी पासा-तीरी पासा-तीरी पासा
अंतरा 4-
खान म नांगर चिरहा बंडी
गोसइनिन मुड़ी म धरे हे हंडी
तहं संझा बेरा करथे नाचा
सुन अभिलाषा
अरे बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा
तीरी पासा……..तीरी पासा
तीरी पासा-तीरी पासा-तीरी पासा

सुन अभिलाषा बिन के लासा
चल खेलबो तीरी-पास तीरी-पासा

-मनोज श्रीवास्‍तव नवागढ़

मनोज श्रीवास्‍तव के प्रसिद्ध किताब -‘गम्‍मत’

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