‘मेहनत की कीमत’ Mehnat ki kimat
माता – पिता अपने परिवार यानी अपने बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीदे रखते है । यहां तक कि अपना सपना वो अपने बच्चों में देखने लगते है । अपना पूरा जीवन बच्चों के परवरिश में निकाल देते है …….. लेकिन जब उसी बच्चों में काबिलियत नजर आती है तो उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहता है …………..बात यह है कि सियाराम की आमदनी कम होते हुए भी बच्चों के प्रति हौसलें बुलंद है । वे अपने बच्चों के शिक्षा – दीक्षा में गरीबी का रोना नजर नहीं आने देना चाहते है । खुद को भूखा रखकर, कपड़ों की तंगी हालत सहकर बाकी के अरमानों की बात ही छोड़ दो, वे हर कठिन से कठिन परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करते है ।
दो पुत्र व एक पुत्री के पिता सियाराम जीवन के झंझावातों व कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे थे, परंतु बच्चों के भविष्य से कोई खिलवाड़ नहीं करना चाहते है । अपना क्या ? पर बच्चे मेरी तरह जीवन न जिये । बड़ा बेटा बारहवीं में दुसरा दसवीं में और बेटी नौवीं कक्षा की पढ़ाई वाणिज्य से कर रहे थे । खर्च का अधिक बोझ होने के कारण वे दो – दो जगह काम करने जाते थे । सुबह के तीन बजे ही चारपाई छोड़ देते थे तो वही रात के ग्यारह बजे के पहले नसीब नहीं होती थी । उनका कमरतोड़ मेहनत लोगों के होशों – हवास उड़ा दे रहा था ।
ईश्वर की भी इतनी मेहरबानी थी कि उनके तीनों बच्चें बहुत ही संस्कारी व कक्षा में भी अव्वल आते थे । सबके मुँख पर सियाराम के बच्चों का ही उदाहरण रहता था कि बच्चे हो तो ऐसे । लेकिन सियाराम हमेशा काम के फिराक में रहता था, छुट्टी लेना तो उसके लिए सपना सा हो गया था …………. उनका सोचना यही रहता था कि किसी भी हालत में मुझे बच्चों को सही दिशा देना है ….. चाहे क्यू ना मुझे अधिक मेहनत ही करना पड़े ?
मेहनत अधिक व खान – पान सही न रहने के कारण सियाराम का स्वास्थ्य भी बिगड़ता जा रहा था । दिन पर दिन तबियत गिरती जा रही थी , पत्नी को ये बात खाये जा रही थी कि यही हालत रही तो आगे क्या होगा ? एक दिन तो सियाराम को इतना तेज बुखार था कि काम पर जाने की उसे ताकत ही नहीं थी । पूरा शरीर ताप से जल रहा था । डॉक्टर ने भी सलाह दिया कि इनको आराम की शक्त जरूरत है ….. नहीं तो भगवान ही मालिक है ……….. ऐसी हालत में बच्चों का भविष्य अंधकारमय दिखने लगा । सबकी शिक्षा आधे – अधूरे पर ही रूक जाय…… यह बात पत्नी रमावती को खाये जा रही थी । दिनों – रात उसके जेहन में एक ही बात घूमती रहती कि हालात का सामना मैं किस तरह करूँ ?
….. काफी जद्दोजहद के बाद कुछ करने को सुझीं । पति के सपने को साकार करना है । ……… आखिर एक कम्पनी में पैकिंग के काम में लग ही गयीं । सुबह तड़के उठकर घर का सारा काम करने के साथ – साथ पति का भी पूरा इंतजाम करके जाती थी । बाकी देख – रेख में सहयोग बच्चे भी कर देते थे । इसके बावजूद भी पैसो की कमी थी । रमावती जरूरत को देखते हुए काम का समय और बढ़ा दिया … लिकिन चिंता की लकीरे रमावती के चेहरे पर साफ – साफ नजर आर ही थी ।
…. एक दिन उनका सेठ पूछा कि आप की परेशानी क्या है ? रमावती पूक्काफोड़ रोने लगती है और घर के सारे हालात को सेठ के आगे बयां कर दी । सेठ भी करूण हृदय वाला था । रमावती को आश्वासन दिया ईश्वर सब ठीक कर देगा ।
सच्चाई क्या है ? पता करने सेठ घर पर आते है …… घर की हालात को देखकर शायद उन्हें दया आयी । …….बड़े बेटे को होनहार देखकर सेठ ने हिसाब – किताब के लिए अपने यहां रख लिए ……. और कुछ उधार के रूप में रूपयों की भी मदत कर दिये ।……. जिससे पति की अच्छे से इलाज करवायीं । एक महीने के अंदर ही सियाराम पूर्ण रूप से ठीक हो गये । …. और काम पर जाना भी शुरू कर दिये । बड़ा बेटा काम के साथ – साथ स्नातक पूरा कर लिया और सीविल की तैयारी में लग गया । ईश्वर की कृपा से दो ही साल में उसका चौबींसवें पद पर नियुक्ति हो गयी । छोटा बेटा स्नातकोत्तर करने के बाद ही लिमिटेड कम्पनी से अच्छी तनख्वाह पर बुलावा आ जाता है । बेटी भी सीविल की तैयारी में लगी है …. पूरे परिवार का सहयोग है उसके साथ ।
सियाराम अपने को बहुत भाग्यशाली समझता है …. कि ईश्वर की ही कृपा है कि मुझे कर्मठी व सुशील पत्नी मिली। बुरे हालात में भी हिम्मत से काम लेकर परिवार के ऊपर आंच तक न आने दिया । बच्चों के अंदर भी इतना अच्छा संस्कार का असर था कि माता – पिता ही उनके लिए सब कुछ थे । हालात को समझकर हर कमियों को सहते हुए शिक्षा की जो ऊँचाई को उन्होने छुवा है….. हर पिता के लिए यह गर्व की बात है ।
पति – पत्नी के कठिन मेहनत का कीमत बच्चों की शिक्षा में रंग लायी ।
-डॉं. अर्चना दुबे