आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी- मेरा दर्द न जाने कोए

आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी- मेरा दर्द न जाने कोए

-रमेश चौहान

आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी- मेरा दर्द न जाने कोए
आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी- मेरा दर्द न जाने कोए

मेरा दर्द न जाने कोए

मैं आम रास्‍ता हूँ । ऐसे मेरे कई रूप और नाम है । मैं ही राष्‍ट्रीय राजमार्ग हूं, मैं ही राजकीय राजमार्ग हूं, मैं ही पहुँच मार्ग हूं तो मैं ही मोहल्‍ले’ गॉंव की गली । ऐ सारे नाम मेरे आकार और सौंदर्य के आधार पर है लेकिन मैं हर आकार-प्रकार में हूँ आम रास्‍ता । जिस प्रकार सोना अपने नाना प्रकार के गहनों में भी रहता तो सोना ही है उसी प्रकार मैं तो ठहरा आम रास्‍ता ।

मैं अपनी चौड़ी छाती और लंबी बॉंहो को फैलाए हर पल दिन रात आम आदमियों का स्‍वागत करने के लिए उसी प्रकार तत्‍पर रहता हूँ जिस प्रकार दुकानदार अपने ग्राहकों के लिए ललायित रहता है । मुझे अपने ऊँपर से आप लोगों के सुख पूर्वक चलने से आत्‍मीय खुशी होती है । जब आम लोगों को मुझ पर से चलने में कठीनाई होती है तो मेरी आत्‍मा आहत हो जाती है । लोगों की दृष्टि में मैं निर्जीव हो सकता हूं किन्‍तु मेरे अंदर संवेदनाओं के ज्‍वार-भाटा उठते रहते हैं ।

मुझे आम रास्‍ता कहलाने में आनंद की प्राप्ति होती है । मैं खास आम में कोई भेद नहीं करता । चाहे मुझ से कोई खास आदमी गुजरे या आम मुझे सभी के लिए सुखमय माध्‍यम बनने में मजा आता है । मैं अपने सभी यात्रियों के लिए एकरस रहता हूँ । मैं किसी व्‍यक्ति विशेष का अनुनायी नहीं हूँ, न ही किसी व्‍यक्ति विशेष के अधिकार में हूं मैं तो हवा, पानी की तरह हर कोई के लिए अहलादित गतिमान रहता हूँ ।

मेरी केवल एक मजबूरी है मैं अपने लिए स्‍वयं कुछ नहीं कर सकता । मैं अपनी रूप सज्‍जा और देह सज्‍जा के लिए विवेकशील, बुद्धिमान मनुष्‍य पर निर्भर रहता हूँ । एक प्रकार से आप कह सकते हैं मैं मनुष्‍यों का ही जाया हूँ, उनकी संतान । मेरी इस विवशता का ही कुछ लोग लाभ उठाते हैं ।

आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी
आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी

जो मनुष्‍य अपने चेहरे को दिन भर साफ करते रहते हैं, अपने रूप सौंदर्य को निखारने स्‍नो-पाउडर लगाते हैं, उन्‍हीं में से कुछ दुर्बुद्धी प्राणी मेरे चेहरे पर दाग मढ़ते हैं ।  अपने चेहरे के किल-मुँहासे के साफ करने वाला मनुष्‍य मेरे चेहरे पर गड़ढा बना देते हैं । सड़कों पर पानी निकासी के नाम पर तो गलियों में अपने घर के वमन निष्कासन कर देते हैं ।

अपनी आजादी का दम्‍भ भरने वाले मनुष्‍य मेरी आजादी का जरा भी ध्‍यान नहीं रखते । मेरी समस्‍या राजमार्गो की अपेक्षा पहुँच मार्ग और गलियों पर अधिक है । सर्वाधिक गलियों पर । लोग मेरे फैले बाहों को काटने पर आंमदा हैं । अपने घर की चौड़ाई बढ़ाने मेरी चौड़ाई पर अतिक्रमण कर रहे हैं यद्यपि मेरी चौड़ाई उनके लिए उपयोगी और गौरव का कारण है तदापि ऐ लोग मुझ पर नहीं स्‍वयं पर कुठाराघात कर रहे हैं । मेरी बांहों का कटे जाने का मलाल किसी को नहीं है । यदि किसी मनुष्‍य का बांह कोई काट दे तो राजनेता, जनप्रतिनिधि, पुलिस, कानून सभी उनके पक्ष में खड़ हो जाएंगे किन्‍तु जब मेरी बांह काटी जा रही तो मुझे निहारने वाला कोई नहीं दिख रहा है ।

आम रास्‍ते की पीड़ा आम रास्‍ते की जुबानी- मेरा दर्द न जाने कोए
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बाजार पहुँच मार्ग पर, बाजार की गलियों पर जहां एक ओर दुकानदार अपना समान बिखेर कर मुझे सिकुड़ने पर मजबूर कर रहे हैं तो वहीं लोग अपने वाहन तितर-बितर खड़े करके मेरा अस्तित्‍व ही मिटाने में लगे रहते हैं । खुद मुझ पर घाव करते हैं और जाम लगने का रोना रोते हैं । विश्‍वास कीजिए जाम लगने की पीड़ा जितना मनुष्‍यों को होता होगा उससे कई गुना अधिक पीड़ा मुझे होती है कारण मेरा जीवन अस्तित्‍व ही खतरे में होता इस समय मेरा ऊर्ध्‍व श्‍वास चल रहा होता है ।

गलियों और सड़को के किनारे बसे लोग ये भूल जाते हैं मैं आम हूँ उसके लिए खाश नहीं । मुझ पर उनके अतिरिक्‍त अंदर की बासिन्‍दे भी गुजरते हैं किन्‍तु ये लोग मुझे अपना खाश मानकर अपने निजी समान यदा घर की मटेरियल छड़, गिट्टी, रेत आदि गलियों पर ऐसे ढेर कर देते हैं कि लोग आ-जा न सके । यकिनन उनके ऐसे किए जाने पर मेरे ऑंखों से अश्रु की धारा फूट पड़ती है ।

मेरे देह पर मलमल कर नहाने वाले लोग गंदगी उलड़ते हैं । अपने घर का सारा मैल मुझ पर ही निष्‍कासित करते हैं इस कारण मुझसे सडांध की बास आती है लोग मुँह-कान सिकोड़ कर आने-जाने के लिए विवश हो जाते हैं इस विवशता से मेरी छाती फट जाती है ।

मुझे मुझ पर से आने-जाने वालों का दर्द का एहसास होता है किन्‍तु इस लोकतंत्र में आजाद लोगों में मेरा दर्द न जाने कोए ।

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