मेरे नवगीत
नवगीत
नवगीत -रमेश चौहान
नवगीत
1.मंदिर मेरे गाँव का ढोये एक सवाल
मंदिर मेरे गाँव का,
ढोये एक सवाल
पत्थर की यह मूरत पत्थर,
क्यों ईश्वर कहलाये
काले अक्षर जिसने जाना,
ढोंग इसे बतलाये
शंखनाद के शोरसे,
होता जिन्हें मलाल
मंदिर मेरे गाँव का,
ढोये एक सवाल
देख रहा है मंदिर कबसे,
कब्र की पूजा होते
लकड़ी का स्तम्भ खड़ा है
उनके मन को धोते
प्रश्न वही अब खो गया,
करके नया कमाल
मंदिर मेरे गाँव का,
ढोये एक सवाल
तेरे-मेरे करने वाले,
तन को एक बताये
मन में एका जो कर न सके
ज्ञानी वह कहलाये
सूक्ष्म बुद्धि तन कर खड़ा,
स्थूल चले है चाल
मंदिर मेरे गाँव का,
ढोये एक सवाल
पूजा तो पूजा होती है,
भिन्न न इसको जानों
मन की बाते मन ही जाने,
आस्था इसको मानों
समझ सके ना बात जो,
नाहक करे बवाल
मंदिर मेरे गाँव का,
ढोये एक सवाल
2.महिलाएं भी इसी पत्रिका से करें निमंत्रण स्वीकार
महिलाएं भी इसी पत्रिका से
करें निमंत्रण स्वीकार
मेरे हाथ पर निमंत्रण कार्ड है
पढ़-पढ़ कर सोच रहा हूॅ
विभाजनकारी रेखा देख
खुद को ही नोच रहा हूॅं
कर्तव्यों की डोर शिथिल पड़ी
अकड़ रहा अधिकार
महिलाएं भी इसी पत्रिका से
करें निमंत्रण स्वीकार
भाभी के कहे भैया करते
भैया के कहे पर भाभी
घर तो दोनों का एक है
एक घर की दो चाबी
अर्धनारेश्वर आदिदेव हैं
जाने सकल संसार
महिलाएं भी इसी पत्रिका से
करें निमंत्रण स्वीकार
मेरा-तेरा, तेरा-मेरा
गीत गा रहा है कौन
प्रश्न, यक्ष-प्रश्न से बड़ा
युधिष्ठिर खड़ा है मौन
परिवार बड़ा है या है बड़ा
फैशन का बाजार
महिलाएं भी इसी पत्रिका से
करें निमंत्रण स्वीकार
3. घुला हुआ है वायु में, मीठा-सा विष गंध
घुला हुआ है
वायु में,
मीठा-सा विष गंध
जहां रात-दिन धू-धू जलते,
राजनीति के चूल्हे
बाराती को ढूंढ रहे हैं,
घूम-घूम कर दूल्हे
बाँह पसारे
स्वार्थ के
करने को अनुबंध
भेड़-बकरे करते जिनके,
माथ झुका कर पहुँनाई
बोटी – बोटी करने वह तो
सुना रहा शहनाई
मिथ्या- मिथ्या
प्रेम से
बांध रखे इक बंध
हिम सम उनके सारे वादे
हाथ रखे सब पानी
चेरी, चेरी ही रह जाती
गढ़कर राजा -रानी
हाथ जले हैं
होम से
फँसे हुये हम धंध।
-रमेश चौहान
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Enjoyed reading it !
पढ़ने के लिये सादर आभार
अनुपम भाव और सटीक बिम्ब विधान से परिपूर्ण बेहतरीन नवगीत के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय चौहान जी।
उत्साह वर्धन के लिये सादर आभार भैया
बहुत सुंदर नवगीत है… बहुत बधाई