मेरी दो कवितायें
-अवधेश कुमार सिन्हा
मेरी दो कवितायें
मेरी दो कवितायें
‘सत्य की सत्ता सर्वत्र’
प्रवृत्ति और निवृत्ति, जीवन की परिणति;
जीवन -दो कूल,जीव की अलिखित गति ।
सत्य नेत्रों से ओझल, प्रकट सदा दृश्य-पटल,
अनेक युगों से करते सत्य-शोधन,
थके विज्ञ-ज्ञानी, न कर सके विवेचन ।।
सत्य एक, पथ अनेक,
आभा एक, अनेक भेक ।
सत्य के आयाम अनंत,
व्याप्त सत्य सर्व दिग्-दिगंत ।।
कभी तृणों के ओट सत्य,
मेहंदी पर -चोट – रहस्य ।
सत्य सरल, सत्य विमल,
सत्य निस्पृह, सत्य अमल ।।
प्रवृत्त सत्य, निवृत्त सत्य,
सत्य अवाच्य, सर्वकृत्य सत्य ।
सुंदर सत्य, सत्य शिव,
सत्य आप्लावित सर्व जीव ।।
ओम् सत्य, सर्व-व्याप्त व्योम,
सत्य निर्जीव काष्ठ खंभ ।
सत्य गुंजित निनाद मृदंग,
राग सत्य, वैराग्य- सत्य ।।
हिरण्य-कश्यप, प्रह्लाद सत्य.
आशा-बंध प्रकाश सत्य ।
प्रकाश-वाहक नैराश्य सत्य
सत्य, सत्य की सत्ता सर्वत्र ।।
‘मन चिर युवा’
कभी मन नहीं बूढा होता है,
वह इच्छाओं की खाई है ।
इच्छायें सतत् लडती रहतीं है,
जीवन लडाई की परछाई है ।।
वाह्य जगत को संचालित करते हैं-
हस्त-दंत -नेत्र-कर्ण -भुजदंड ।
इच्छाओं की सतत बाढ को झेलते,
काल – क्रम में दिखते ये उजडे भूखंड ।।
जीवन-घट प्रति पल रीतता है जाता,
मन तरू रहता सदा नवीन ।
श्रांत विवर्ण तन को धीमे से कहता-
नील कुसुम है अक्षय नवीन ।।
जाओ जाओ तोड उसे लाओ,
प्रियतमा के जूडे लगाओ ।
जीवन में पुन: छा जायेंगे अक्षय चिर वसंत.
अपूर्ण इच्छायें हैं जननी विकार की ।
मन तृप्ति हेतु : तन को उकसाती,
अशम्य -राग -लोभ दुर्निवार सी ।।
-अवधेश कुमार सिन्हा
अवधेश कुमार सिन्हा की चर्चित कविता