रवीन्द्र कुमार रतन की ‘मेरी कविताएं’ अपने प्रांत बिहार और देश को समर्पित कविता है । इसमें दर्शित और ध्वनित भावनाएं कवि की अपनी भावना है । देश को दुख, क्लेष रहित एकाकार करने की उनकी मंगल कामना है ।
1. ‘बिहार की गौरव-गाथा गाऍं हम ”
बिहार के स्थापना दिवस के अवसर पर
‘बिहार की गौरव-गाथा गाऍं हम ”
जन्मशती बिहार प्रदेश की
है,आओ आज मनाएं हम
।आओ सब मिलके निज बिहार की
गौरव-गाथा गाएँ हम ।
देश के प्रथम राष्ट्रपति सा
विभूतियों के हम स्वामी हैं।
वैष्णवी, विन्ध्याचल , मैहर
सम तीरथ, थावे आमी है।
जाति-पाति औ’ ईर्ष्या-द्वेष को
भी चलो आज मिटाएं हम।
जाति-धर्म औ’वर्ग दलों का भेद
मिट रहा है प्रदेश में।
प्रजातंत्र की पहली लाली,
फैली इसी मह्त प्रदेश में ।
निज विकसित बिहार को
मिलकर के आगे और बढ़ाएँ हम ।
महावीर,गौतम, कुवँर सिंह से ही
सिंचित यह प्रदेश है।
सम्पूर्ण क्रान्ति- उद्घोषकका भी तो
यह ही प्रदेश है।
आओ मिलकर नवबिहार-हित
नूतन उत्साह जगाएं हम।
मगध और वैशाली जैसे
श्रेष्ठ देश थे इसी प्रदेश में।
मन्जुघोशा – अम्बपाली भी
नगरवधू थीं इसी प्रदेश में।
सद विचार फैलाकर के ही
यह पुण्य प्रदेश बनाएं हम।
आज चाहिए इस बिहार को
विशेष- दर्जा का उप हार।
कर्म प्रधान राज्य के युवा से
होगा इसका उद्धार ।
इस प्रदेश के लिए भी चलो
अब नया सबेरा लायें हम ।
हमें विरासत में ऋषियों का
सानिध्य- संयोग मिला है।
मधुर वाणी का प्रसाद हमें
इन मनीषियों से ही मिला है।
आओ बिहार सहित भारत की
नवल तकदीर बनाएँ हम।
भूलें नहीं आज हम अपने गौरव
अतीत को पहचाने।
धवल कीर्ति-ध्वज अब देश की
चलो हिम -शिखरपर लहराने।
इस प्रदेश में भी गंगा है
छेड़ रही है अपना सरगम।
आज देश में पनप न पाएँ
पुन: आसुरी सी वृत्ति कहीँ।
राम-कृष्ण का देश है यह
रावण का है अस्तित्व नही।
चलो सभी जन जगे और सबजन को भी
सजग बनाएँ हम।
अभी प्रगति की और आंधियां
लानी होगी इस प्रदेश में ।
जन- बल के आगे शासक को
था झुकवाया इस प्रदेश ने ।
जन्म शताव्दी वर्ष में रवि -सा
स्वच्छ बिहार बनाएँ हम ।
जन्म दिवस के साथ हीं आया
नव वसंत का उल्लास यहाँ ।
नव संकल्पों की नव कलियों से
है प्रेरित उत्साह यहाँ ।
नव उमंग से नूतन बिहार की
रचना आज करायें हम।
इस प्रदेश की ही सीता थी,
विद्यापति सम काव्य परखी।
मण्डन मिश्र विभूति यहीं के
और यहीं की रहीं भारती।
इन विभूतियोंके निर्मल
चरित्र से निर्मित शिक्षा पाएँ हम ।
आओ मिलकरके निज बिहार की
गौरव-गाथा गाएँ हम।।
बिहार की अपेक्षा
जहाँ भी बिहारी हो उत्सव
तन-मन से होना चाहिए ।
बिहार-दिवस का उत्सव
आजजन – ज़न में होना चाहिए।।
पूर्ण शराब बन्दी लागू
होने का ही कानून बना।
पीने पर तो मृत्यु – दंड का भी
कुछ नया विधान बना।
हुआ शराब बन्द तो गाँव-शहर
सब बन्द होना चाहिए ।
बिहार -दिवस का उत्सव
आज जन-जन में होना चाहीये ।
रोक लागी है अभी बिहार में
देशी औ’ मशालेदार पर।
गाँव में तो लगी पाबंदी
आज है विदेशी शराब पर।
घाटा हो सरकार को अगर तो
भी शराब बन्द होना चाहिए ।
बिहार -दिवस का उत्सव
आज जन – जन में होना चाहिए।
आज धारणा जनता की तो
विश्वास में बदलती जा रही।
सरकार अपनी बचन वद्धता
पर खड़ी उतरती जा रही।
संज्ञान लेकर भी आज दोषियों को
दंड देना चाहिए ।
बिहार -दिवस का उत्सव
आजजन-जन में होना चाहिए ।।
बिहार की गौरव-गाथा को
बरकरार रहना चाहिए ।
बिहार विभूतियों की गाथा से
सबको वाकिफ होनाचाहिए।।
भ्रष्टाचार व्यभिचार का तो
अब अन्त होना चाहिए ।
बिहार – दिवस काउत्सव
आज जन – जन में होना चाहिए ।।
सुशासन औ’ गुणात्मक शिक्षा का
प्रचार-प्रसार तो चाहिए ।
शासक हो कर भी नेता को
सेवक समान बनना चाहिए।
बिहार- दिवस को प्रगति के पथ का उत्सव होना चाहिए ।
बिहार-दिवस का उत्सव आज जन -जन में होना चाहिए ।।
जहाँ भी बिहारी हो उत्सव
तन-मन से होना चाहिए ।
बिहार-दिवस का उत्सव आज
जन – ज़न में होना चाहिए।।
पूर्ण शराब बन्दी लागू
होने का ही कानून बना।
पीने पर तो मृत्यु – दंड का
भी कुछ नया विधान बना।
हुआ शराब बन्द तो गाँव-शहर
सब बन्द होना चाहिए ।
बिहार -दिवस का उत्सवआज जन-जन में होना चाहीये ।
रोक लागी है अभी बिहार में
देशी औ’ मशालेदार पर।
गाँव में तो लगी पाबंदी
आज है विदेशी शराब पर।
घाटा हो सरकार को अगर तो
भी शराब बन्द होना चाहिए ।
बिहार -दिवस का उत्सवआज
जन – जन में होना चाहिए।
आज धारणा जनता की तो
विश्वास में बदलती जा रही।
सरकार अपनी बचन वद्धता
पर खड़ी उतरती जा रही।
संज्ञान लेकर भीआज दोषियों
को दंड देना चाहिए ।
बिहार -दिवस का उत्सवआज
जन-जन में होना चाहिए ।।
बिहार की गौरव-गाथा को
बरकरार रहना चाहिए ।
बिहार विभूतियों की गाथा से
सबको वाकिफ होनाचाहिए।।
भ्रश्टाचार व्यभिचार का तो अब अन्त होना चाहिए ।
बिहार – दिवस काउत्सवआज
जन – जन में होना चाहिए ।।
सुशासन औ’ गुणात्मक शिक्षा
का प्रचार-प्रसार तो चाहिए ।
शासक हो कर भी नेता को
सेवक समान बनना चाहिए।
बिहार- दिवस को प्रगति के पथ का उत्सव होना चाहिए ।
बिहार-दिवस का उत्सव आज
जन -जन में होना चाहिए ।।
नया बिहार बनाने को
बँटवारे की पीड़ा को पी ,अद्भुत शक्ति जगाने को ।
देखो , कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ।।
चलें दिल्ली युवक बिहार के,विशेष दर्ज़ाका हक दिलवाने।
लेने को अधिकार स्वंय का चलें एकजुट्ता दिखलाने को ।
भूखे-नंगे-शोषित जन को, जीवन आज दिलाने को ।
देखो, कौन आज आया है, नया बिहार बनाने को ?
मिलेगा न जब तक बिहार को विशेष दर्ज़ा का अधिकार ।
तब तक इसके संग रहेगा ,निश्चित सौतला व्यवहार ।
आलू- बालू पर आतुर है नवल प्रभात उगाने को।
देखो कौन आज आया है , नया बिहार बनाने को ।।
शीघ्र चाहिए इस बिहार को विशेष दर्ज़ा का उपहार ।
बँटबारे का दंश झेलता इसका तब होगा उद्धार ।
बाढ-सुखाड़ सदृश संकट मेंसुन्दर महल बनाने को ।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
खो कर निज अधिकार बैठना हम बिहारियों ने ना जाना।
निज रक्षा में मर मिटने का मर्म सभी ने है पहचाना ।
खनिज-सम्पदा के अभाव में भी उत्थान कराने को।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
मुक्ति मिलेगी वेशेष दर्ज़ा से चमकेगा यह नूर – से ।
भारत माता की मांग भरे अब बिहारी सिन्दूर से ।
संसाधन की अल्पता पर भी नव उत्साह जगाने को ।
देखो बनाने को ।।
अन्धकार से त्रस्त राज्य में अभियंता अद्भुत आया है।
ले ज्योतिर्मय-मन्जूषा वह तिमिर मिटाने को आया है।
संकल्पित है बिहार को पुष्पित – पल्लवित कराने को ।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
आधी से ज्यादा आबादी यहाँ विवश एवं मजबूर ।
विशेष हक मिलते बिहार मेंजनता का होगा दुख दुर ।
निज प्रदेश को ऊँच-नीच से ऊपर आज उठाने को ।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
विशेष दर्ज़ा भीख न कोईयह अधिकार हमारा है।
मिले नहीं हक ऐसे तो लड़ कर लेना काम हमारा है ।
सभी समस्यायें बिहार कीअति ही शिग्र मिटाने को।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
यह मत सोचों विशेष राज्य का दर्ज़ा केवल नारा है ।
विकसित होते इस बिहारमेंसमझौता न गंवारा है ।
आया यह बिगडे बिहार कागौरव आज बढाने को ।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
हक के लिए व्यग्र मन मेराहै बिहार भी अंग तुम्हारा।
मेरी स्मिति में तेरी स्मिति,मुझको सर्जन- प्रलय तुम्हारा।
अब सुषुप्त युवकों को आयेवे तो आज जगाने को ।
देखो, कौन आज आया है,नया बिहार बनाने को ?
हर ओर प्रगति-हित बिहार कोमिले स्थान विशेष दर्ज़ा का ।
भूखे नंगे शोषित जन मेंभरे शक्ति नूतन चर्चा का ।
जाति धर्म से रहित सर्वथामुक्त बिहार बनाने को ।
देखो ,कौन आज आया है नया बिहार बनाने का ।
कथा काव्य-चित्रवन्श – महात्म
इस भारत की तो संस्कृति है ,चित्रगुप्त जी का उत्तम वंश ।
जिसके गुलशन में खिलआए,सुन्दर से सुन्दरतम आवतंश ।
मेरे श्रेष्ठ पूर्वजों ने ,मधु काही सेवन नहीं किया ।
पड़ी जरुरत जब भारत को ,राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री दिया ।
भारत को तो दिया इसी ने महामहिम राजेन्द्र प्रसाद ।
प्रधान मंत्री लालबहादुर ,भी आते हम सभी को याद।
जन्में ‘वच्चन’ कायस्थ कुल में जिसने लिखा ग्रंथ मधुशाला ।
नहीं कभी पीने वाले को जिसने पहुंचाई मधु- शाला ।
शाकाहारी जीवन जी करजो रह्ता हरदम मतवाला ।
उसके भी हाठों में इसने ,थमा दिया वारुणी- प्याला ।
सादा-जीवन उच्च बुद्धि मेंटोडरमल को भी ढाल दिया।
श्री जगदीश चंद्र बोस औ’माथुर जैसा भी लाल दिया ।
पराधीनता की बेड़ी में ,जब जकड़ी थी भारत माता ।
तब सुभाष-जेपी ने जोड़ा जन – जीवन से अपना नाता।
खुदीराम औ’ रासबिहारी ,लाला हरदयाल सम शरीर ।
श्री लाजपत राय ने तोड़ी ,शीघ्र गुलामी की जंजीर ।
हिन्दी – उपन्यास के मुन्शी ,प्रेमचंद ही सम्राट बने ।
गोरखपुरी ,महर्षि- मेरी ,के थे व्यक्तित्व विराट बने ।
कालिदास कवि घनानंद भीलगते हैं चित्रांश- महत्तम ।
औ’ कवयित्री महादेवी जी की कविता है अतिशय उत्तम।
इसी वंश में हुए अवतरित ऋषि अरविंद, विवेकानंद।
जिनकी ज्ञान ज्योंति से लोगों ने पाया अतिशय ही आनन्द ।
फिल्म जगत के चकाचोंध मेंजिसने राष्ट्र का नाम किया ।
शेखर-अमिताभ औ’ शत्रुघ्न ने कला-जगत मेंभी नाम किया।
चित्रवन्श के नृपति सुरथ की चर्चा धर्म – ग्रंथों मे आई।
दूर हुआ तब उसका दुर्दिन, कृपा, शक्ति की ज्योंही पायी।
जाति नहीं ‘ कायस्थ ‘ यहाँ है जन-जन की वह महा प्रकृति।
उसके जीवन के रग-रग में मंगलमय है सुन्दर -झंकृति।
सूर्य रहेगा जबतक भू परनभ मंडल में शशि का वास।
तबतक चित्रगुप्त वंशज का कभी नष्ट न होगा इतिहास।
गणतंत्र दिवस मनाओगे कैसे?
हर जगह भय- भूख,ऐसे मेंतंत्र को बचओगे कैसे ?
भ्रष्टाचार-व्यभिचार से तुम देश को सुधारोगे कैसे ?
गणतंत्र मनाओगे कैसे?
गाँधी , सुभाष औ’ जे पी ने मिल भारत को आजाद किया।
भगत,आजाद औ’ खुदीराम के सपने को साकार किया ।
जाति-धर्म में बंटे देश में एकता बनाओगे कैसे ?
जाति- धर्म के उन्मादों सेदेश को उबारोगे कैसे ?
गणतंत्र मनाओगे कैसे ?
हिन्दुत्व की भूख में राष्ट्रटूट के कगार पर खड़ा है।
विपक्षी गोलबंदी के लिए , अब विकास पुरुष खड़ा है।
मन मिजाज बदले माहौल में विश्व शान्ति लाओगे कैसे ?
ईश्या-द्वैष की कोठरी में विश्वास ला सकोगे कैसे ?
गणतंत्र मनओगे कैसे ?
मानव- मानव में मेल नहीं सरकार चलाना खेल नही ।
बढ़ती रोज वेरोजगारी का निदान कोई खेल नही ।
भाषा – क्षेत्रवाद झमेले सेदेश को उबरोगे कैसे ?ज
हाँ जम्हुरियत खतरे में लोकतंत्र बचओगे कैसे ?
गणतंत्र मनओगे कैसे ?
सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता
युग के नव निर्माण की वापू के वरदान की।
जयप्रकाश के अरमानों की यह धरती वलिदानों की ।।
इस अखंड भारत को तुमने खंडित होते देखा ।
सोने की धरती के सुत को वे घर होते देखा ।
भारत माता की आजादी तुमने सब कुछ वार दिया।
शत -शत कोटि देशवासीकेसपनों को साकार किया ।।
तू जनता के जननायक हो भारत माँ के परम सपूत ।
भूखे नंगे शोषित जन के उद्धारक आकांक्षा दूत।।
ओ बिहार के परम लाड़ले! भारत माँ के मुकुट महान।
श्रद्धा के सौ सुमन चरण में अर्पित करता सकल जहान।।
पराधीनता की बेड़ी में जकड़ी थी भारत- माता ।
तब तुमने नेतृत्व सम्भाला जन-जन से जोड़ा नाता ।
मत तेरा सम्पूर्ण क्रांति कैसे हो पूरा अरमान?
तेरे सपनों के भारत काकैसे होगा नव निर्माण?
भोली भाली जनता से जो मत लेकर अब ऐंठे हैं।
तेरे आदर्शो को भूले वे अब शासक बन बैठे हैं।।
जाति-पाति सम्बन्धवाद यह अब भी पग-पग पर छाया।
धनी-दीन के दो वर्गों में बटी हुई मानव- काया ।।
उसी सभ्यता के रंगों मे दिन-दिन ये ढलते जाते
भूला दिया आदर्श तुम्हारा कुछ करते क्यों शर्माते।।
अपना उल्लू सीधा कर लें आज सभी की चाह यही ।
फ़िर क्या अन्तर उसमें इसमें जब परिवर्त्तन हुए नही ?
लोकनायक! अब जन्मोत्सव आज मनना है हमको।
जयप्रकाश के ही प्रकाश से हमें मिटाना है तम को।।
हमें आज खंडित भारत को फ़िर आर्यावर्त्त बनाना है।
आपके सब सपनों को तो हमको साकार बनाना है।।
सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता आज तेरा जन्म दिन प्यारा।
तानाशाह से बचाके तुम बने सबके आँख का तारा।।
सादा जीवन सरल विचारों का तेरे जीवन का विधान ।
जगा दिया था तरुणाई को बनी अन्तर्राष्ट्रिय पहचान ।।
तेरा कर अनुकरण देश यह अब महाभर्ग बन जायेगा।
इसमे तो है संदेह नहीं देश स्वर्ण-मृग बनजायगा।।
वीर शहीदों को शत-शत बार प्रणाम
भारत की आजादी पर जिसने वार दिया जीवन तमाम ।
उन वीर शहीदों को मेरा है अर्पित शत -शत बार प्रणाम।।
कहाँ खो गए वो बलिदानीजिन्होंने आजादी दिलाई ।
मिटा दिया निज अरमानो कोऔ’ देश की अस्मिता बचाई।
अडिग- क्रांति अक्खड़ योद्धा का था सचमुच आराम हराम।
उन वीर शहीदों को मेरा है अर्पित शत-शत बार प्रणाम।।
भूला दिया हमने उनको भी जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर ।
जिन चिरगों से रौशन हुआ देश ‘वे वुझ गए आजादी पर।
अंग्रेजों के शोषण से जो देश को मुक्ति का किया काम।
उन वीर शहीदों को मेरा अर्पित शत -शत बार प्रणाम।।
जब-जब जुल्मी जुल्म करेगा सत्ता के ही हथिआरों से ।च
प्पा -चप्पा गूंज उठेगा सत्ता छोड़ो के नारों से ।
न जाने कितने शहीद हुए’ लिए बिना जीवन में विराम ।
उन वीर शहीदों को मेरा अर्पित शत-शत बार प्रणाम।।
फूल नहीं चिन्गारी हम तो भारत माँ के बलिदानी है।
संकट के बादल मडराते तैयार खड़े सेनानी है ।
अल्पायु में ही देश के कितने सपूत चले गए सुरधाम ।
उन वीर शहीदों को मेराअर्पित शत-शत बार प्रणाम।।
देँ सलामी इस तिरंगे को इस देश की ये हैं पहचान।
सर ऊचा रखना है इसका जबतक जान तब तक है शान।
स्वस्थ सुरक्षित सुरभित ‘रहे हमारा यह आव और आवाम।
उन वीर शहीदों कों मेरा है अर्पित शत-शत बार प्रनाम।।
वतन पे मरने वाला ललन और भगत सा रतन चाहिए।
मरणोपरांत हो जन्म तो भारत ही हमे वतन चाहिए।
भरी जवानी में फांसीं चढ़ने बाले को मेरा सलाम ।
उन वीर शहीदों को मेरा हैअर्पित शत -शत बार प्रणाम।।
नशा कुछ तिरंगे के आं कीकुछ मातृ भूमि के शान की।
हम लहराएं यह तिरंगा हीनशा ऐसा हो हिन्दुस्तान की।
हम मरे परन्तु यों मरे कि करेयाद भारत देश तमाम ।
उन वीर शहीदों को मेरा अर्पित शत शत बार प्रणाम।।
पीने विष का प्याला आओविश्व शान्ति गुरु बनवाओ ।
स्वर्ण -विहगसम इसधरती कोफिर अखंड भारत बनवाओ ।
स्वतंत्रता-सेनानियों का सुनोराष्ट्र के नाम पैगाम ।
उन वीर शहीदों को मेरा अर्पित शत -शत बार प्रणाम।।
रंग गुलाल संग होली
कादो -किचर से रंग पराना, होली का है सन्देश नहीं।
पीकर शराब ,शबाव चढ़ना,होली का है उद्देश्य नहीं ।
जीवन प्रेम -प्यार की मंजिल,होली का त्योहार सिखाता।
आपस का मतभेद भुला कर,होली सबको गले लगाता ।
उत्साह – उमंग से भरा यहफागुनी त्योहार है आता।
आ होलिका नफरत जलाकर,शान्ति – सौहाद्र फैलाता ।
भाभी निज कोमल हाथों से देवर को रंग लगाती है ।
मन के पावन भावों का हीतो दिग -दर्शन करवाती है।
जीजा की पिचकारी का रंग साली की चोली संग जाता।
सारे रिस्ते – नाते मिलके ,बस प्रेम रंग में रंग जाता ।
इर्ष्या- द्वेष को मिटा कर के,होली का त्योहार मना लो।
कलुष भेद तम हर प्रकाश सेजग मग सारा समाज करलो।
फागुन माह में ही सुनाई,देता कोयल की भी बोली ।
आती है नव-वर्ष मनाने ,ले रंग गुलाल संग होली ।
-रवीन्द्र कुमार रतन, हाजीपुर बिहार