व्यंग्य:मेरी शोक सभा
-डॉ अशोक आकाश
मेरी शोक सभा
मेरी शोक सभा
आदरणीय आगंतुक बंधुओं,
आप सभी मेरी मृत्यु का समाचार सुन मेरी मैयत उठाने आए, मैं आप सबका आभारी हूं । वैसे मैं इतने दिन दुनिया में रहकर बहुत भारी हो गया था और मौत के बाद भी आप सब पर भारी ही रहा इस पर सॉरी …..। वैसे लोग कहते हैं, साहित्यकार कभी मरता नहीं, लेकिन मैंने कभी एक साहित्यकार के रूप में अमर होने का प्रयास ही नहीं किया । अब जबकि मर गया हूं , आप सब की कृपा दृष्टि मुझ नाचीज़ पर पड़ गयी है, तो हो सकता है अमर भी हो जाऊं । जब कभी भी मुझे लोग याद करते ता उम्र मेरी सभी हुनर में खोट ही देखते , वैसे खोटा सिक्का तो था ही, लोग भूल बस या मजबूरी बस चला ही लेते और मैं गर्व से चल निकलता । यह मेरी नहीं आप सब की महानता है , जो मुझ जैसे लंगड़े घोड़े को भी खेल के मैदान में प्रतियोगी के रूप में देखते रहे । आप सभी ने मुझे ताउम्र झेला , आप सब की सहनशीलता को मैं शत शत नमन करता हूं । वैसे इस बीच आप सभी ने मुझे जो भी बद्दुवाएं दी होंगी , वह सब मैं सादर ग्रहण करता हूं । हालांकि मुझे आप सब की बद्दुवाएं जीते जी लगी ही नही । आप सबको दुखी किया इसके लिये क्षमा चाहता हूँ
बुराई हर किसी में होती है, मुझ में भी बहुत सारी बुराइयां थी, जिसे मैं गिना नहीं सकता । अगर उन सभी बुलाई बुराइयों का पुलिंदा यहां रख दूं , तो मृत्यु के बाद मेरी महानता पर ऑच आ जाएगी और मेरी आत्मा नहीं आप सबका दिल दुख जाएगा । आप कहेंगे जीते जी तो हम सब का दिल दुखाया ही , मरने के बाद भी हम सब का दिल दुखा गए । आपका टूटा हुआ दिल देखकर मेरी आत्मा दुखी हो जाएगी ।
मेरी स्वाभाविक मृत्यु पर जिस किसी भी दुश्मन को अफसोस हो रहा होगा इसके लिए मैं भगवान को धन्यवाद देता हूं कि भगवान आपने मुझे कम से कम इस काबिल तो बनाया कि मेरे दुश्मन मेरी मौत के बाद भी अफसोस ही मना रहे हैं । मुझे देखते ही अपना रास्ता बदल लेने वाले महानुभाव जो कि यहां कुछ मात्रा में उपस्थित हैं , उन्हें मैं धन्यवाद देता हूं कि आपने मेरी मौत की खबर अपने मित्रों परिचितों में इतनी जल्दी-जल्दी शेयर किया और इतनी जल्दी आप लोग पहुंचे कि आप लोगों को देखते ही मुझे उठ कर बैठ जाने और देखते ही रास्ता बदल लेने का कारण जानने की तीव्र इच्छा हो रही है । साथ ही जो दोस्त मेरी मृत्यु पर यकीन नहीं कर रहे होंगे उन्हें मैं बता देना चाहता हूं कि आपने मेरे जीते जी जो मुझ पर यकीन किया भरोसा किया मैंने उसे निभाने का प्रयास किया । लेकिन किसी मोड़ पर आपको लग रहा होगा कि मैंने आपका विश्वास तोड़ा है तो आप यकीन कर सकते हैं कि मैंने वास्तव में आपका विश्वास तोड़ा ही होगा । हालाकि मैं जीते जी दस पांच लोग भी एकत्रित करने में असफल रहा लेकिन अब मैं अपने आप में गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि मेरी मौत पर इतने सारे लोग आए और अपने आप को शोकाकुल कर रहे हैं । मेरी खूबियां गिनाते लोगों के गमगीन चेहरे की मासूमियत देख ऐसा लग रहा है कि मुझे अभी मरना नहीं था । मैंने इन लोगों के प्रति बड़ी नाइंसाफी की है , मुझे मालूम रहता कि ये लोग मेरे प्रति इस तरह की सकारात्मक भावना रखते हैं, तो मैं किसी भी तरह जीता ही रहता, इन लोगों को ताउम्र नहीं सताता ।
मेरे कारण पूरी जिंदगी इतनी तकलीफ उठा कर भी ऐसी सकारात्मक सोच रखते हैं सुनकर मुझे इतनी आत्मग्लानि हो रही है कि आत्महत्या कर लेने को जी कर रहा है । जी तो बहुत कुछ करना चाहता है लेकिन क्या करूं अगर फिर से जी उठूंगा , तो इतने सारे वक्ता जो मेरे लिए हमदर्दी जता चुके हैं उनका क्या होगा । मेरी शोक सभा को साहित्य सभा बना देने वाले महानुभावों के दिल से निकले उद्गार सुनने बार-बार जी ने और बार बार मरने की इच्छा होने लगी है , लेकिन मेरा सारा बोझ कंधे पर उठाए चल रहे लोगों की गहरी पीड़ा के कारण मैं फिर से नहीं जीना चाहता । जीते जी मैं उन पर तो बोझ था ही , मरने के बाद भी बोझ ही बना रहा । कई लोगों को मेरा इस तरह के यशोगान बोझ की तरह ही लग रहा होगा लेकिन उन्हें तसल्ली भी हो रही होगी, कह रहे होंगे कि चलो यह तो अब मर ही गया । मेरी मौत पर जरूरत से ज्यादा दुखी होने वाले शुभचिंतकों को बताना चाहूंगा कि आप लोगों का मेरे प्रति वास्तव में गहन आत्मीय संबंध थे , तभी तो आप लोगों में से कई लोगों ने जरूरत से ज्यादा बड़ाई कर कई महान विभूषणों से मुझे नमाज दिया है जिसे मैं अगले जन्म में पूरा करने की पूरी पूरी कोशिश करूंगा ।
अपने संस्मरण सुना रहे अपने एक बालमित्र की कविता शायरी के साथ रामचरितमानस, गीता के उपदेश सुन मुझे लग रहा है कि मैं जरूर मरणोपरांत ही सही स्वर्ग में स्थान बना लूंगा । मेरी शोक सभा को आम सभा बना देने वाले नेताजी के सुमधुर वाक्यांश हृदय को विदीर्ण कर गया । अब अफसोस हो रहा है अगर जीवित रहता तो अगले चुनाव में पहली बार ही सही अपना एकमात्र वोट उसे जरूर देता । दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि से मेरी आत्मा तो तृप्त नहीं हुई है, अपितु श्रोतात्माओं को जरूर तृप्ति मिली है , मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं । मेरी कविता सुनते चाय नाश्ता की मांग करने पर हमेशा पर्स ढीली करते रहने का मुझे उतना दुख कभी नहीं हुआ जितना मेरी मौत हो जाने पर होटल मालिक से ज्यादा होटल मालकिन और कविता का तथाकथित लुफ्त उठाते नाश्ते की प्लेट पर झपकते और चाय की चुस्कियां लेते, भाई वाह , भाई वाह, कहते- मेरा मन गद-गद कर देने वाले शुभचिंतकों को है । जो कि यहां एक कोने में बैठे रोज की कविता की गिनती, समय की उपयोगिता और चाय नाश्ता के रोजाना खर्चे का पहली बार हिसाब दे रहे हैं । उनके दुख की तो कोई सीमा ही नहीं है जिसके साथ मैं रोज मॉर्निंग वॉक पर जाता था और रोज ढेरों कविताएं सुना देता था । मुझे आज पता चल रहा है कि उनका बहुत-खूब, बहुत-खूब कहना तकिया-कलाम है और वे पूरी तरह से कान के कच्चे हैं ।
मेरी शोक सभा में अपने दो दो पंक्तियों से मुझे मरणोपरांत सम्मान देने वालों के प्रति दिल से शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने मेरी मौत के बाद ही सही कम से कम सम्मान तो दिया | अंत में यही कहना चाहूंगा कि आप लोगों ने मेरी आत्मा की शांति के लिए सिर्फ 2 मिनट की ही मौन धारण किए हैं, वैसे मैं अपनी जिंदगी में इतने सारे लोगों के बीच कभी मौन नहीं रहा | इससे मेरी आत्मा को शांति नहीं मिल रही है | मैं आप सभी से निवेदन करूंगा कि आप में से कोई सज्जन मेरी कम से कम 8 से 10 प्रतिनिधि रचनाओं के साथ मेरे द्वारा लिखित ” मेरी शोक सभा ” का पाठ जरूर कर दें ताकि मेरी आत्मा को सचमुच शांति मिल सके |
मेरी शोक सभा
- डॉ अशोक आकाश
अध्यक्ष मधुर साहित्य परिषद् जिला बालोद
सुरता साहित्य पटल में स्थान देने हेतु धन्यवाद चौहान जी
सादर धन्यवाद भैया