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हास्य-व्यंग्य आलेख: मीठी कड़वीं बातें-प्राे. अर्जुन दूबे

हास्य-व्यंग्य आलेख: मीठी कड़वीं बातें-प्राे. अर्जुन दूबे

हास्य-व्यंग्य आलेख:मीठी कड़वीं बातें

-प्राे. अर्जुन दूबे

हास्य-व्यंग्य आलेख:मीठी कड़वीं बातें
हास्य-व्यंग्य आलेख:मीठी कड़वीं बातें

मीठी चुनौतियां

मेरे मित्र ने मुझसे प्रश्न किया कि एक पुरूष के लिए सबसे कठिन चुनौतीभरा कार्य और दायित्व क्या हैं?
मैंने कहा कि प्रश्न न केवल समयानुकूल है बल्कि काल से परे होकर शास्वत है।
सुनो, भटकाओ नहीं, मुझे उत्तर चाहिए ,वह भी स्पषट।
देखो, अगर पुरूष विवाहित और बाल बच्चेदार है तो पत्नी और बच्चों की जिम्मेदारी सर्वोपरि है ।
क्यों, माता पिता नहीं है?
पुन: संवेदनशील प्रश्न किया है।
देखो, आधुनिक काल में परिवार की परिभाषा और इसके मूल्य बदल गये हैं।
पर कैसे और क्यों?
देखो, पढने लिखने अथवा युवा होने के बाद एक सपना होता है एक आशियाने का जिसमें जीवनसाथी के साथ रहते हुए खुशनुमा जीवन जीने की।
वाह क्या बात कही है तुमने!
देखो,तिरंगे का अमृत महोत्सव! 15 अगस्त है! यह 75 बरस बाद पड़ा है, सुर मिलाओ. कहां, भाषणों में!
सुर के लिए कैमेस्ट्री अच्छी चाहिए.ठीक, ठीक, ठीक ।
थोडा् विषयांतर हो गया था, इस पर पुन: चर्चा हो जायेगी।
देखो, विवाहित पुरूष के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसकी पत्नी होती है जिसके साथ खुशहाल जीवन जी लिया तो समझो ब्रह्मांड क्या है समझ लिया और नन्हे मुन्ने बच्चों की परवरिश, पढाई लिखाई से लेकर उत्तम संस्कार दे पाया तो समझ लो मोक्ष को प्राप्त कर लिया है। यही नहीं तुम्हारे माता-पिता संबधित प्रश्न का उत्तर भी इसी में समाहित है।
जो जिम्मेदारी से भागते हैं, क्या कहलाते हैं? मुझे नहीं पता, मैं तो ज़िम्मेदारियों को जिम्मेदारी के साथ निभा रहा रहा हूं।
अमूमन नहीं निभा पाने वाले साधु सन्यासी भी बन जाते हैं। क्या ज्ञानी भी बन जाते हें? बन जाते होंगे, ज्ञान ऐसे थोडे़ ही मिल जाता है।

कुछ तो दुनियां देखकर डर जाते हैं । डर जाते हैं अथवा जिम्मेदारी का आभास उन्हें विमुख कर देता है? जो समझो । कुछ तो यह सोचते हैं कि तनहा ही ठीक है क्योंकि तनहा ही जाना है । तुम्हारा ज्ञान चक्षु खुल गया है । लेकिन तनहा कौन सा मूल्य स्थापित करेगा? समाज सेवा और देश सेवा करेगा, नहीं!
मुझे पता नहीं है क्योंकि मैं तनहा नहीं हूं.हा,हा,हा…..

क्या होगा भूगोल का?

रूस यूक्रेन युद्ध होते हुए लगभग 100 दिन हो गये हैं। दोनो तरफ से काफी संख्या में सैनिक मारे गये हैं और मारे भी जा रहे हैं ।buck up पीछे नहीं हटना है।

खेल का मैदान में दो टीमें खेल खेलती हैं तो एक हार जाती है,यह अलग बात है कि कभी कभी टाई भी हो जाता है; कभी-कभी ऐसा भी होता है कि खेल बहुत दिनों तक चलता है, जैसे शतरंज, जिसका नतीजा, पहली बाजी, दूसरी बाजी, बाजी, बाजी, बाजी के आधार पर समाचार के माध्यम से मिलता है । दिलचस्पी नहीं रहती है ।क्यों? उबाउं हो जाता है ।कहीं यह कहना नहीं चाहते हैं कि रूस -यूक्रेन युद्ध भी वैसे ही हो गया है!

फ्री रेसलिंग में मजा आता है, खूब बेक अप होता है, कभी कभी कोई एक प्रतिद्वंद्वी शरीर सदा के लिए छोड़ देता है अथवा शरीर ही बेकार हो जाता है ।

महाभारत युद्ध लगभग खत्म हो गया था लेकिन दुर्योधन जीवित था, भागकर सरोवर मे छुपा था, कहीं बाहर निकलकर बेक अप करके द्वंद युद्ध न करने लगे । अंतत: मारा गया ।

राम रावण युद्ध की परिणिति रावण के बेकअप नहीं कर पाने कारण अर्थात उसकी मृत्यु के उपरांत खत्म हुयी थी।
द्वितीय विश्वयुद्ध जिसमें तब का सोवियत रूस भी शामिल था, 1939-45 तक बेकअप होने तक चला था । जापान तब तक बेकअप करता रहा जब तक उसके ऊपर ब्रह्मास्त्त्र का प्रयोग अमेरिका ने नहीं कर दिया ।

बर्नार्ड शा ने तो अपनी कृति Arms and the Man में सैनिकों के बारे में कहा है कि दस में से नौ सिपाही मूर्ख पैदा होते हैं, नहीं तो रोमांच मे बेकअप करते हुए लड़ते नहीं रहते ! शा ने ऐसा क्यों कहा? असल में मूर्ख तो शासक होता है जो कि यह जानते हुए कि परिणाम विनाशक होता है संघार के समर में सैनिकों को बेकअप कराता रहता है।

इसी लिए अब समझ मे आया कि इतिहास का गहन अध्ययन क्यों अपेक्षित होता है, क्योंकि उससे ज्ञान लेते हुए, भूगोल सुरक्षित कर सकें । शांति:शांति:शांति:

चित भी तेरी, पट भी तेरी

सुनो भाई, हां बोलो । यह बताओ कि मानव और असुर किसकी तपस्या करते हैं? नि:संदेह ब्रह्मदेव की अथवा भोले नाथ की तपस्या करते हैं, क्योंकि वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं । किस लिए तप करते हैं? असुर तो अमरत्व प्राप्त करने के लिए करते हैं । क्या पा जाते हैं? नहीं । ब्रह्मदेव कहते हैं, इसे छोडकर कोई भी वरदान मांग लो ।

इस मृत्‍युलोक में अमरत्व! मानव जानता है क्योंकि वह फल चखकर ज्ञान पाया था न! इसलिए उसे रोजगार मिले तो अमरत्व तो नहीं मृत्‍युलोक में स्वर्ग का सुख मिल जाता है । इसी लिए इन्हें प्रसन्न करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करता है । क्या इसी के लिए तप करता है । नहीं, शांति का मार्ग भी यहीं से होकर गुजरता है!

एक बात और है । वह क्या? मानव और असुर अन्य के फेर में खूब पड जाते हैं । अन्य क्या है? जानते हो फिर भी पूछते हो तो सुनो “फ्री”.असुर अमर तो नहीं हो पाते है किंतु अपने ताकत के बल पर देवताओं को खदेड देते हैं। मानव जानता है कि जन्म है तो मृत्यू आयेगी। इस लिए जब तक जीओ, तब तक असुर और देवों की समयानुसार जयकार करो। इसी में कल्याण है।
Dr. Arjun Dubey
Retired Professor of English,
Madan Mohan Malviya University of Technology,
Gorakhpur (U.P.) 273010
INDIA
Ph. 9450886113

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