मोक्ष को कैसे जानूं? -डॉ. अर्जुन दूबे

मोक्ष को कैसे जानूं?

-डॉ. अर्जुन दूबे

मोक्ष को कैसे जानूं? -डॉ. अर्जुन दूबे
मोक्ष को कैसे जानूं? -डॉ. अर्जुन दूबे

मानव अथवा अन्य जीव क्यों अस्तित्व में आया? आया है तो क्या कर रहा है? मानव के अलावा अन्य जीव कैसे उत्तर देगा? ऐसा हम सोचते हैं, पता नहीं वे जीव कैसा सोचते होंगे, सोच पाते भी होंगे अथवा नहीं? हमारे ग्रंथों में उनके ज्ञान का उल्लेख मिलता है, जैसे गरूड़-काकभुसुंडी संवाद। मानव को कैसे पता चला? ज्ञान का आधार ग्रंथ हैं, अनुभव न अवलोकन भी आधार हैं; अनुमान भी एक माध्यम है जानने का। तब भाषा में विविधता नहीं रही होगी अथवा मानव सभी की अथवा उनकी भाषाओं को भी जानता रहा होगा।आज भी जानता है अथवा जानने में प्रयत्नशील है!

खैर, छोड़ें इस विषय को, मतलब अन्य जीवों को। क्यों? मानव सोचता बहुत है। क्या अन्य जीव नहीं सोचते हैं? पता नहीं है मुझे। लेकिन मैं सोचता हूं, इस लिए भाषा का माध्यम लेकर सर्वत्र कहता रहता हूं। मैं ही क्यों, पता नहीं कितने काल से मानव सोचता रहा है और कहता रहा है; अपनी सोच को लिखता भी है ताकि संजोया जा सके। देखने, सुनने और सोचकर महसूस करने की विलक्षण गुण लिए मानव इस धरती पर विचरण करता है। क्यों अन्य जीव? विचरण करते हैं लेकिन किस लिए? भोजन के लिए; भोजन मिला, विचरण में विराम। जीवं जीवस्य भक्षणं। जीव ही जीव का भक्षण (कुछ शाकाहार भक्षण) करते हैं ; तो मानव भक्षण क्रिया नहीं करते हैं। वे भी माया से वशीभूत रहते हुए अपनी संततियो की देख भाल करते हुए भक्षण क्रिया में संलग्न कराते रहते हैं, ऐसा प्रतीत होता है। क्या मानव ऐसा नहीं करता है? मानव भी करता है किंतु कभी कभी वह वैराग्य मार्ग पर चल देता है। कितने-कितने दिनों तक भक्षण ही नहीं करता है–कभी भक्षण से उब जाता है, कभी मन नहीं करता है, कभी भक्षण का अवसर नहीं मिलता है और कभी कभी भक्षण के लिए विचरण करता है। ऐसा क्यों करता है और क्या मिलता है? ऐसा क्यों कहते हो? जीवों को मिलता होगा? उनकी तो परिणति है, तुम उनसे भिन्न हो क्योंकि तुम बहुत सोचते हो और सोचते सोचते थक जाओगे किंतु परिणति नहीं जान पाओगे।

बुद्ध के बारे में जानते हो न? हां, ठीक से और बहुत कुछ पढ़ा भी हूं ‌‌‌‌‌‌‌‌‌ क्या जानते हो?
यही कि उन्हें भक्षण करने की समस्या नहीं थी, राज परिवार से ताल्लुक रखते थे। फिर भी वेचैन रहते थे, व्याकुल होकर व्याकुलता का कारण जानने निकल पड़े। कोई समस्या थी? यही तो बात है, उनकी कोई परिवार की समस्या तो नहीं थी। तब फिर? वही, सोचना। क्यों जीते हैं, क्यों मरते हैं? मतलब कारण जानना चाहते थे! हां, सब कुछ छोड़ दिए। क्या भक्षण भी? भक्षण करते हुए, प्रश्न पूछते हुए स्थान स्थान विचरण करने लगे, सत्संग भी किये किंतु व्याकुल होकर अकेले ही रह गए; अकेले ही रहते हुए मानव दिखता है पर उन लोगों को नहीं जो भ्रम में रहते हैं कि वे अकेले नहीं हैं। तब फिर? उन्होंने भक्षण करना भी छोड़ दिया। तब क्या हुआ? भक्षण नहीं करने पर जीवित रहना आसान है? नहीं, भक्षण की महत्ता जीवन के लिए अपरिहार्य है। हां सही है। तब वह शरीर से अति दुर्बल हो गये थे, चलने की ऊर्जा भी नहीं रह गई थी; संभवतः प्रश्नों के उत्तर, अथवा व्याकुलता का कारण विभिन्न चरणों में मिलना प्रारंभ हो गये थे।

कैसे पता चला? सुना है कि किसी ने कुछ भक्षण कराया, सब कुछ स्मरण हो गया। भक्षण में शक्ति है। जरूर है तभी तो विचरण करते हुए सारनाथ पहुंच कर अपने शिष्यों के साथ संवाद करने लगे। उससे क्या हुआ? अपने अनुभव जो सत्य था बताने लगे। क्या सत्य था? क्या वही पूर्ण सत्य था? वही तो मैं जानना चाहता हूं। देखो, अपने अनुभव भक्षण की शक्ति से बता सकता हूं, तुम भी बता सकते हो। अनुभव भी भिन्न भिन्न होंगे? क्यों? भक्षण भिन्न भिन्न। लेकिन मोक्ष का अनुभव? मोक्ष छोड़ो, स्वयं द्वारा स्वयं की मृत्यु का अनुभव बोलो वह कैसे? दूसरे कहते हैं कि मृत्यु अच्छी हुई, कोई तकलीफ़ नहीं हुई थी। अरे, नहीं बहुत सांसत एवं पीड़ा हुई थी, पूरा परिवार शरीर की देखभाल करते करते ऊब गया था। माया के कारण मानव शिशु से नहीं ऊबता है जब कि वह असहाय और अशक्त रहता है किंतु उसी शरीर के बूढ़े और अशक्त होने पर? उस शरीर को कुछ पता चला था! जब तक उसका शरीर भक्षण करता रहा अथवा उसको भक्षण कराया जाता रहा तब तक उसे कभी कभी भक्षण और तृष्णा होने का आभास होता था और कभी कभी तो सांसत अथवा पीड़ा होने पर शरीर से मोक्ष चाहता था। ऐसा मैं नहीं कहता, बल्कि शरीर को भक्षण कराने वाले बताते हैं। ग्रंथ भी ऐसा ही कहते हैं। मतलब वह मोक्ष को नहीं बता पाता है? कैसे बताये? भक्षण की शक्ति से माया के समक्ष कौन टिक पाता है , जीवन में आनंद ही आनंद हो जाता है, किंतु भक्षण नहीं करने पर अंतिम अवस्था में असहाय, बोलने लिखने की शक्ति नहीं रहने पर कैसे मोक्ष को बताते? मेरी जानने की तृष्णा बनी हुई है; जब कुछ मैं भी जाना, बिना कहे व्याकुल बना रहूंगा।

-डॉ. अर्जुन दूबे

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