मोर गॉंव के रंग-
मोर गॉंव के रंग म धर्मेन्द्र निर्मल के 5ठन रंग ला देखाए गे हे । ‘मोर गॉंव के बिहाव’ कविता म गॉंव के बरसात के दृश्य ल उकेरे गे हे, ‘मोर गॉंव ले गँवई गँवागे’ कविता म गॉंव के पुराना रीति-रिवाज, संस्कार के लुप्त होय के खतरा ऊपर चिंता व्यक्त करे हे, ‘मोर गॉंव’ म गॉंव के चित्रण करे गे हे, ‘का हाल हे परोसिन’ म गॉंव के बारी-बखरी के व्यंग म चित्रण करे गे हे अउ ‘नवा अंजोर’ एक जगार गीत हे जेमा सुमती संग काम करे के गोठ करे गे हे ।
1-मोर गाँव के बिहाव-
नेवता हे आव चले आव
मोर गाँव के होवथे बिहाव।
घूम घूम के बादर ह गुदुम बजाथे
मेचका भिंदोल मिल दफड़ा बजाथे
रूख राई हरमुनिया कस सरसराथे
झिंगुरा मन मोहरी ल सुर म मिलाथे
टिटही मंगावथे टीमकी ल लाव ।।1।।
असढ़िया हीरो होण्डा स्प्लेण्डर म चढ़थे
मटमटहा ढोड़िहा अबड़ डांस करथे
भरमाहा पीटपीटी बाई के पाछू घुमथे
घुरघुरहा मुढ़ेरी बिला ले गुनथे
चोरहा सरदंगिया डोमी खोजै दांव ।।2।।
बाम्हन चिरई मन बने हे सुहासीन
अंगना परछी भर चोरबीर चोरबीर नाचीन
कौंआ चुलमाटी दंतेला बलाथे
झुरमुट ले बनकुकरी भड़ौनी गाथे
झूमै कुकरी कुकरा छोड़ौं का खांव ।।3।।
रउतीन कीरा मन बैठक म गोठियाथे
परगोतिया मन हॅ अपनेच ल बलाथे
रंग रंग के कीरा सम्हर सम्हर आगे
ठउका बेर बत्तर के नाव बुझागे
जुटहा माछी मन ल मैं का बतांव ।।4।।
केकरा गाड़ी रोकै हाथ ल हलावै
चांटीमन चढ़े बर लाइन लगावै
अतलंगहा बड़े माछी चिमट के भागे
गुस्सेलहा बिच्छी हॅ देथे घुमाके
मंसा कहय सुन कहानी सुनांव ।।5।।
परिया कुंवारी के तन ह हरियागे
रेटही बूढ़िया झोरी मन ह फुन्नागे
मेंड़ संग पानी ह खेलै बितांगी
टीप खेलै कोतरी अऊ डेमचुल सरांगी
पूछै मेछरिया मुसकेनी महुं आंव ।।6।।
नांगर बैला मन अखाड़ा देखावै
हरदाही खेले बर चिखला बलावै
भैंसी भैंसा मन ह हरदी चुपरावथे
चमकुलिया बिजली ह फोटू उतारथे
खाना हे लाडू चलो ताली बजाव ।।7।।
बारी बेला मन ह मंड़वा सजावथे
तितली फांफा मन ह लइका खेलावथे
पंड़की अऊ पंड़का पगरइत पगरइतीन
गांठे जोराये हे नइ छूटय गउकीन
सलहई मन परिया म भजिया बनांव ।।8।।
जिमिकांदा ऐंठै मुद्गर निकाल के
कांदी कोला चुप झांकै उघार के
डर के मारे बेरा कती लुकागे
अब्बड़ तो तपे हे अब पसिनयागे
अंटियावय गेंगरूवा खाके पुलाव ।।9।।
2-मोर गाँव ले गँवई गँवागे
मोर गाँव ले गँवई गँवागे
बटकी के बासी खवई गँवागे
मुड़ ले उड़ागे पागा खुमरी
पाँव ले पनही भँदई गँवागे
सुग्घर दाई बबा के कहिनी
सुनन जुरमिल भाई बहिनी
करमा सुआ खोखो फुगड़ी
लइकन के खुडवई गँवागे
खाके चीला अँगाकर फरा
जोतै नाँगर तता अरा रा
दूध कसेली खौंड़ी म चूरै
मही के लेवना लेवई गँवागे
आगे मोबाइल टीबी पसरगे
राग सुमत ल सबो बिसरगे
तीज तिहार म घर घर घुम घुम
ठेठरी खुरमी खवई गँवागे
करधन एैंठी खिनवा पहुँची
फँुदरी माहुर बोहागे गऊकी
लीखपोहना अउ ककवा ले मुड़ के
जुँवा हेरई लीख पोहई गँवागे
सगा सोदर बर लोटा म पानी
निकल जुड़ावय गुरतुर बानी
माते गुटका मंजन मंद म
पान सुपारी खवई गँवागे
गाड़ा बइला ढेलवा रचुली
गोरधन गंगाजल अउ भोजली
केंवट काँदा भक्का लाड़ू
खावत मेला मँड़ई गँवागे
धान कटोरा मोर छत्तीसगढ़
बमलाई महामाई के गढ़
तपोभूमि चंपारण सिहावा
राम के ममा गँवई सँवागे
3.मोर गाँव
होवत बिहिनिया चिरई चहकै
गोंदा गदकै मोंगरा महकै
गली-गली ममहागे
मोर गाँव गजब के नीक लागे
भौजी दुकलहीन भैया फिरन्ता
जात-पात कोनो नइए पूछन्ता
जुर मिल सब ल देथे पलौंदी
बढ़ता होवय चाहे खँगता
धरम करम म सुख दुख म
देवय सब संग जुरियाके
नदिया निर्मल पावन कल कल
बोहत चाँदी के तार उकेरै
हरियर हरियर रूख राई सुग्घर
चंचल शीतल छाँव के फेरै
झूमय खेत म सोनहा बाली
सरग बरोबर लागे
गोप -ग्वाल कस खेलै लइकन
बिन्दाबन लागै गलियन
हाँसत पुलकत रेंगै पनिहारिन
चूरी खनकै छनकै पैंजन
बबा झूमके जब पारिस दोहा
डोकरी दाई लजागे
4-का हाल हे परोसीन
चढ़े मुसकावत पलानी ऊपर ले
पूछत हे कोंहड़ा नार
का हाल हे परोसीन
एसो के साल का हाल हे
खबखब ले दाँत ल निपोर गिजगिजावत हे
मटमटहा चुटचुटिया
झगरही दाँव खेल अंगरी देखावत हे
चुकचुकहा रमकेलिया
माहर-माहर मया चटनी चटकारत
धनिया अउ मिरचा पताल हे
जनम के पेटरोगहा पेट धरे पेटघँइया
घोण्डे हे इहाँ-उहाँ तुमा
खेलत झगरत रिसावत मनावत हे
चेंच अमारी चुमिक-चुमा
ढंगढंग ले बाढ़े भर उठमिलवा खेंड़हा
संग खेलय पालक लाल के
निच्चट डरपोकना हे घुरघुसरा कुंदरू
झूमका कस झूलथे करेला
बड़ जल्दी मुँह ल फुलोथे फदामा हँ
कोंड़हा नई झेलय झमेला
तपसी होगे काँदा गोंदली मुरई हरदी
परहित म मया ल डार के
लुदलुदही डोंड़का हावय गज्जब गुब्जी
नई पटय तारी तोरई संग
सेमी बरबट्टी एके मुँह म खाथे जस
जाँवर-जोड़ी पँड़की संग
झूलय भाँटा उलानबाँटी खेलय
खीरा पेटे ले हुसियार हे
5- नवा अंजोर
आगे बहार फुले फुलवारी खोर गली महमहागे
खुशी के नवा पाँखी लगाए सपना हमर जागे
आगे आगे नवा अंजोर आगे आगे
नइ राहन अब छाप अंगूठा जुरमिल के पढ़बों
मेहनत करबो ए भूईया म रस्ता नवा गढ़बो
बइठन नहीं हाथ धरे अब रहिबो जागे जागे
ऊँच नीच के भेद भूलाके सुम्मत ल अपनाबो
एक दूसर ल देबो सहारा गिरत ल उठाबो
झूम नाचबो गाबो गाना सबो एके रागे
नाँगर बइला संग मितानी हे हमर जनम के
मान नइ होवय बाहिर रहेल ल परथे बंधुवा बनके
जावन नहीं परदेस अब गाँव म गंगा आगे
-धर्मेन्द्र निर्मल
9406096346