मूल्य आधारित शिक्षा का वर्तमान परिवेश में महत्व -डॉ. शोभा उपाध्याय

मूल्य आधारित शिक्षा का वर्तमान परिवेश में महत्व

-डॉ. शोभा उपाध्याय

मूल्य आधारित शिक्षा का वर्तमान परिवेश में महत्व -डॉ. शोभा उपाध्याय
मूल्य आधारित शिक्षा का वर्तमान परिवेश में महत्व -डॉ. शोभा उपाध्याय

बोध सारः-

मूल्य आधारित शिक्षा अपने आप में एक व्यापक शब्द है। हम सभी यह जानते है कि जीवन अनमोल है इसे बचाने तथा सफल बनाने के लिए हम हर संभव प्रयास करते है। मूल्य ही वह तत्व या सिद्धान्त है जो हमें तथा हमारे व्यवहार को नियंत्रित करते हुए परिवार, समाज, दोस्त शिक्षा व रोजगार में सफल बनाने में मददगार होते है। वह बालक का सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक तथा चारित्रिक विकास करता है तथा बालक में सही व गलत के प्रति जागरूकता लाता है। शिक्षा में जब हम मूल्यों को शामिल करते है तो वह मूल्य आधारित शिक्षा व्यवस्था कहलाती है। वर्तमान परिवेश में मूल्य आधारित शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता बहुत अधिक यह बालक के बौद्धिक विकास का भी एक महत्वपूर्ण भाग है। इस पेपर का उद्देश्य वर्तमान परिवेश में मूल्य आधारित शिक्षा व्यवस्था के महत्व को बताना है।
मूल शब्दः- सामाजिक, नैतिक, चारित्रिक, जागरूकता, बौद्धिक विकास।

प्रस्तावनाः-

गाँधी जी के अनुसार यदि चरित्र का नुकसान होता है तो जीवन से हर तत्व चला जाता है। फैशन व चकाचौंध के इस परिवेश में अपने चरित्र का निर्माण, विकास तथा सुरक्षित बनाये रखना बहुत महत्वपूर्ण है। भारत संस्कृति और परम्पराओं का देश है जिसका अस्तित्व बहुत प्राचीन है। ये संस्कृति व परम्पराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है तभी यह सुरक्षित रहती है तथा इसकी जड़े प्राचीन बनी रहती है। नई पीढ़ी की ये जिम्मेदारी है कि वह अपने देश के उन परम्पराओं का सम्मान करें तथा उसका विकास करें। किन्तु वर्तमान में फैशन व भौतिकवादी विचारों के प्रभाव में आकर भावी पीढ़ी भारतीय आदर्शो, मूल्यों मान्यताओं, आस्थाओं को भूलती जा रही है तथा आधुनिक जीवन शैली को अपनाती जा रही है। इससे अछूते भारतीय समाज, संस्कृति व शिक्षा भी नहीं है वह सहयोग, दया, सहअस्तित्व आदि सब भूलकर सिर्फ विज्ञान, तकनीकि व पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा दे रही है इससे समाज में प्रतिस्पर्धा, अंहवादिता द्वेष, ईर्ष्या का माहौल बढ़ा है जिससे राष्ट्र के बहुमुखी विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

मूल्य शिक्षा का महत्वः-

वर्तमान समय में मूल्य शिक्षा का महत्व कई गुना बढ़ गया है जो इस प्रकार है-

  • देश भक्ति की भावना के साथ-साथ एक अच्छे नागरिक के मूल्यों में वृद्धि करने के लिए।
  • सहनशीलता के भावना को जागृत करनें में सहायक।
  • कर्तव्यों की समझ कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, क्योंकि इसके द्वारा बालक एवं व्यक्ति को उसकी जिम्मेदारी का अहसास होता है तथा वह इसके साथ उसमें कर्त्तव्यों का बोध भी हो जाता है।
  • आध्यात्मिक विकास में मूल्यों का प्रमुख योगदान होता है इसके द्वारा ईश्वर के बनाये इस संसार को समझने का प्रयास करता है।
  • आर्थिक सन्तुलन के लिए मूल्यों की शिक्षा महत्वपूर्ण है, इसके द्वारा ही व्यक्ति को अच्छे एवं बुरे का ज्ञान होता है।
  • जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता करता है, जब व्यक्ति की सोच बड़ी होगी तभी वह सफलता प्राप्त कर सकता है।
  • मूल्य विश्व में शांति कायम करने एवं विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास में महत्वपूर्ण होता है।
  • अच्छे शिष्टाचार, जिम्मेदारी और सहकारिता का विकास करना।
  • सोच और जीने के लोकतांत्रिक तरीके को बढ़ावा देना।

वर्तमान परिवेश में महत्वः-

मूल्य शिक्षा को एक अनुशासन के रूप में देखा जाना चाहिए तथा इसे शिक्षा प्रणाली के अंदर शामिल करना चाहिए। केवल समस्याओं को हल करना उद्देश्य नहीं होना चाहिए, इसके पीछे के स्पष्ट कारण और मकसद के बारें में भी सोचा जाना चाहिए। वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से बढ़ गई हैः-

  • कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय लेने में मदद करता है तथा निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है।
  • जिज्ञासा जगाने मूल्यों और हितों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों को कम करता है तथा असंतोष को बढ़ने में मददगार होता है।
  • जागरूकता व उत्साह का संचार करता है जिससे विचारशील और पूर्ण निर्णय लेने में सक्षमता प्राप्त होती है।
  • यह मन में ‘अर्थ’ की भावना को पीछे छोड़ देता है तथा दया, परोपकार के भाव उत्पन्न करता है।
  • दूसरों के प्रति सम्मान, सहयोग और जिम्मेदारी के भाव उत्पन्न करता है ताकि समाज में द्वेष, दुराचार कम हो सकें।

निष्कर्षः-

आज के इस भौतिकवादी युग में मूल्य शिक्षा का महत्व बढ़ गया है। भौतिकवादी युग ने स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा द्वेष, मानसिक तनाव असंतोष को जन्म दिया तथा जो रिश्ते सहयोग और जिम्मेदारी पूर्ण होते थे वह स्वार्थपूर्ण बन गए। सहनशीलता का अभाव दिखाई देने लगा। परोपकार, आध्यात्मिक नैतिक सोच घटने लगी। शिष्टाचार के मूल्य कम होता जा रहा है। सही व गलत निर्णय क्षमता का अभाव आज साफ समझ आता है। आज व्यक्ति सिर्फ चकाचौध विकास देखता है उसे मूल्यों या नैतिकता से कोई लेना देना नहीं है इसलिए वर्तमान परिवेश में मूल्य शिक्षा का महत्व बढ़ गया है तथा क्या मूल्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में निश्चित रूप से शामिल करना चाहिए।

संदर्भ-

1. https://sarkariguider.com

2. https://sarkariguider.com

3. https://educationrelatenotesinhindi.blogspot.com

4. https://rijhssonline.com

5. https://leverageedu.com

-डॉ. शोभा उपाध्याय
सहायक प्राध्यापक
हितकारिणी प्रशिक्षण
महिला महाविद्यालय
जबलपुर (म.प्र.)

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