मुंशी प्रेमचंद के कहानी कफ़न के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद नवादसना

नवादसना

(मुंशी प्रेमचंद के कहानी कफ़न के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद)

मुंशी प्रेमचंद के कहानी कफ़न के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद नवादसना
मुंशी प्रेमचंद के कहानी कफ़न के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद नवादसना

जाड़ घरि के रतिहा रहिस । गांव मे सोवा परगे रहिस, घीसू अउ माधो अपन कुंदरा के मुहाटी म गोरसी तापत बइठे हे।भीतरी म माधो के गोसइन बुधिया जचकी पीरा म तालाबेली देवत हे। हाय! ए दाई, ए ददा, कहिके कहरत हे। जेला सुनके बाप बेटा के करेजा चानी चानी होवत हे।
घीसू किहिस ” नइ बांचही तइसे लागथे रे। दिनभर होगे छटपटावत हे तेहा। जातो देख के आ ।” माधो घुसिया के किहिस “मरना हे त तुरते नइ मर जतिस। देख के का करहूँ ?”

घीसू ” बड़ निरमोही हस बे! साल भर जेकर संग सुग्घर जिंनगी बिताय हस , ओकरे संग दगा करथस।”
माधो ” त ओकर तालाबेली देवइ मोर से नइ देखे जाय।”

बाप बेटा अतिक अलाल राहय कि एक दिन बनी करे त तीन दिन सुसतावय। माधो तो अपन ददा ले जादा अलाल राहय। आधा घड़ी बुता करे त एक घड़ी चोंगी पियत बइठे राहय। तेखर सेती ओमन ला कोनों बनिहार नइ लेगय। घर में कोनो एकात पइली चाउर रहितिस त बनी कभु नइ जाय। जब लांघन मरे के बेरा आय त घीसू लकड़ी काटे अउ माधो ओला बजार में बेच आवय। जब तक पइसा राहय, घर मे बइठे-बइठे खावय एती ओती किंजर के रही जाय फेर बनी नइ जाय। फेर जब लांघन मरे के बेरा आय त लकड़ी काटे नहीं ते बनी खोजे ।गांव में काम के कोनहो कमी नइ रहिस। इस गांव में बड़े-बड़े गउटिया रिहिन। कमइया बर पचासो काम ।फेर ए दुनो ल तभे बलाय जब कोनो दूसर बनिहार नइ मिलय।

इकर जिंनगी अलकरहा राहय। घर में माटी के दू चार ठन बरतन के छोड़ कुछु नइ राहय। तन ढके बर फरिया ।दुनियादारी के कोनो फिकर नहीं करजा म बूड़े राहय। गारी खाय, मार खाय, फेर कोनो दुख नहीं। अतना गरीब ते लोगन मन दया मरके एमन ला करजा देवय। केवट कांदा ,आलू ,दूसर के खेत ले उखान के लानय अउ भुंज के खावय। नही ते दू -चार ठन कुशियार ल उखान के लावय अउ रतिहाकुन उही ल चिचोर के सो जाय।

घीसू जुच्छा रही के साठ बछर के जिनगी ल पहा डरिस। ओकर ले जादा ओकर बेटा माधो रिहिस।

अभिन घलो गोरसी म आलू ल भुंजत बइठे हे।जेला दूसर के खेत ले लाने हे। घीसू के गोसइन ल मरे अड़बड़ दिन होवत हे।माधो के बिहाव पउर साल होय रिहिस। जबले बुधिया आय रिहिस तब ले कुटिया पिसिया करके दुनोंझन ल पोसत रिहिस। ओखरे कमई म गोल्लर असन किंजर किंजर के खावय मेंछरावय। कोनों बनी लेगे बर पुछतिस त अटियाय असन गोठियावत जादा बनी मांगे। उही बहू आज जचकी पीरा म मरे के लइक हो गेहे। अउ ए दुनोंझन ओखर मरे के अगोरा करत हे।

घीसू गोरसी ले आलू निकाल के निछत किहिस “जातो बे!देख के आ ।बहू कतिक काहरत हे। लागथे कोनो टोनही कसराहा कर देहे। इहाँ तो बइगा घलोक दारू और कुकरी मांगथे ।”

माधो ल डर रिहिस कि मैं हा जब भीतरी डाहर जाहूं त ददा ह सबो आलू ल खा दिही।
किहिस ” मोला उहां जाय बर डर लागत हे।”
घीसू ” त तोला का बात के डर हे रे ! मे हंव न।”
माधो ” त तिही जाना देख के आ।”
घीसू ” तोर दाई जब मरिस त मेहा तीन दिन ले ओखर मेरन ले टस से मस नइ होयेंव। अउ मोला तो देख के बहू लजाही। जेकर मुह ला बने ढंग ले देखे नइ हंव, त ओखर उघरा बदन ला कइसे देखहूँ बे! ओला तो कपड़ा के घलो सुध नइ होही। मोला देख लिही त बने ढंग ले हाथ पांव घलो नइ मार सकही।”
माधो किहिस मेहा तो फिकर म परगे हंव। कोनो लोग लईका हो जाही त का होही । सोठ, गुड़ , तेल कुछु तो नइ हे घर में ।”

घीसू “सब हो जही बेटा ।भगवान लइका देय तो सही। जे मनखेमन अभी एक आना नइ देवत हे, उही मन बला बला के दिही । मोर नौ लइका होइस, घर में कभु कुछु नइ रिहिस, फेर सबो ल भगवान बेड़ा पार लगाइस।”

घीसू बिकट बुधमान रहिस । गांव के किसान मन जियो मरो मिहनत करके घलो सुख नइ पाय, त घीसू अउ माधो के बिना मिहनत करे जिनगी चलत हे ।बुधमानी मिहनत में हे कि अलाली म? दुनियादारी के झंझट ले दूरिहा घीसू अउ माधो के जिनगी हे। जेन ह बड़ निक लागथे ।

दूनोझन गोरसी ले आलू निकाल निकाल के ताते तात खाय लगिन। काली ले कुछु नइ खाय रिहिन। आलू अतेक तात रिहिस कि उखर मुहु उसनाय कस होगे। आलू ल जाबे म अउ जादा तात लागथे, तेखर सेती गटागट अजगर कस लीले के उदिम करीन ।भूख तो लागत राहय।आलू खवइ म उखर आँखी डबडबागे।

उही बेरा घीसू ला ठाकुर के बरात सुरता आगे।जिहाँ बीस बछर पहिली गेय रिहिस।उहाँ अतिककलेवा मिले रिहिस कि जिनगी भर सुरता राखे के लइक रिहिस, अभीन ले सुरता हे। वो पंगत नइ भुलाय। वइसन खाना तो अभीन तक अउ नहीं मिलिस। टुरी वाले मन सबला गाय के घीव में बरा ,सोहारी, पापर, मोतीचूर के लाड़ू रांध के अघवत ले खायबर पोरसे रिहिन। साग में रसा वाले तीन चार किसिम के रहिस संग म रसगुल्ला घलो मिले रिहिस। जतिक खा ओतकी मिले। कोनो रोकइया नहीं । पतरी म ताते तात बरा, सोहारी ,कचोरी ,पोरसे। बरतिया मन बिना पानी पिये गोंहगो ले पेटमांहदूर कस खाइन।मेहा ह तो अतिक खायेव कि पेट में पान सुपारी खाय के घलो जगा नइ रिहिस ।ले दे के ठाड़ होयेंव अउ तुरते चद्दर ओढ़ के सो गेंव।

माधो कलेवा मन के नाव सुन के मने मन मा मजा लेवत किहिस “अब हमन ला अइसन पंगत कोनो नइ खवाय।”
घीसू “अब कोन खवाही? वो जमाना दूसर रिहिस ।अब तो सब ला कंजूसी छाय हे। बर बिहाव में खर्चा झन करो ।मरनी हरनी में खर्चा झन करो ।पूछो ओमन ला कि गरीब के माल ल सकेल सकेल के कहां रखही? सकेले में कमी नइ हे।हां खर्चा में कंजूसी करथे।”

माधो ” तें एकाध कोरी सोहारी खाय होबे ददा?”
घीसू ” हाँ एक कोरी ले जादा खाय हंव।”
माधो ” मेंहा अढ़ाई कोरी ले कम नई खातेंव। “
घीसू ” महूं अढ़ाई कोरी ले कम नइ खा हंव। बने जवान रहेंव । ते तो मोर आधा नइ हस।”

आलू खा के पानी पीन अउ धोती ओढ़ के चुरु मुरु करके गोरसी तिर सोगे।जइसे अजगर सोथे। अउ बूधिया अभी घलो हाय हाय करत हे।

बिहनिया माधो भीतरी में जाके देखिस त, तन के पिंजरा ले पंछी उड़ागे रिहिस। ओकर मुंह में माछी भिन्-भिनावत रिहिस। आंखी पथरा गे रिहिस। मरे के बेरा खुरचे रिहिस तेखर सेती हाथ गोड़ धुर्रा धुर्रा होगे रिहिस। ओकर पेट भीतरी लइका मरगे रिहिस।

माधो दउड़त अपन ददा तिर आइस, अउ दुनोंझन जोर-जोर से छाती पीट पीट के रोय लगिन।रोवइ ल सुनके परोसी मन घलो आइन अउ ओमन समझाइन। फेर जादा रोय के समे नइ रहिस। कफन अउ लकड़ी के बेवस्था करें के फिकर रिहिस ।काबर कि घर में तो फूटी कौड़ी नइ रहिस।

बाप बेटा रोवत रोवत गांव के गउटियां मेर गिन । वो इकर चेहरा देखना पसंद नइ करे। कई बेर एमन ला पीटे घलो रिहिस, चोरी चकारी अउ बनी आहूं केहे रिहिस अउ नइ आइन तेकर सेती।

पुछिस ” का होगे बे घीसू रोवत काबर हस? ते आजकल दिखस घलो नही। लागथे ए गांव मे तोला रहना नइहे।”
घीसू ओकर गोड़ में माथा नवा के रोवत किहिस “मालिक ! बड़ बिपत्ति में हंव। माधो के घरवाली रतिहाकुन मरगे। बिचारी रात भर तड़पिस मालिक! हमन दूनोंझन ओकर मुड़तरिया में बइठे रेहेन। हमर ले जतिक बनिस दवा दारू सबो करेन फेर कुछु हाथ नइ आइस। अब एक कुटका रोटी देवइया घलो नइ हे मालिक! सब बरबाद होगे। हमर घर उजड़गे। हमन तुहर नौकर आवन। अब तुंहर कृपा बिना ओखर मौत माटी कइसे होही। तुहर दुवारी ला छोड़ के काखर मेर जावन?”

गउटिया दयालु रिहिस । फेर घीसू ऊपर दया करइ करिया कमरा में रंग पोते के बरोबर रिहिस । जी होइस लात मार के भगा देवं, कावर कि बलाय में घलो नई आवय। आज जब गरज परिस त आ के पउंरी परत हे। नमखराम दोगला कहिँके! फेर ए घुस्सा करे के बेरा नोहे। मन मसोस के दु सौ रुपिया ल निकाल के दे दिस

जब गांव के गउंटिया दु सौ दे दिस त गांव के दूसर बनिया साहूकार और मंडल मन कइसे नइ देतीस? घीसू गउंटिया के सबो जगा गुन गावय। कोनो दस त कोनो बीस रुपिया देवय ।एक घड़ी में घीसू मेर पाँच सौ रुपिया सकलागे। कोन्हो चाउर त कोन्हो दार , छेना लकड़ी दीन । दिन के दूसर पहर घीसू अउ माधो कफन लेय बर बजार गिन । एति गांव के मन खटोलना बनाय के जोरा करिन।
गांव के माइ लॉगइन मन बिचारी बुधिया के लास ल देख-देख के गिन , अउ चार आंसू रोइन घलो।
” समाज में कईसन रिवाज घलो हे जियते जियत तन ढाके बर फरिया घलो नई मिलय अउ मरे म कफन ओढ़ाथे।”
” कफन लाश के संग आगी म जर तो जाथे।”

“अउ का? इही पाँच सौ रुपिया पहिली मिलतीस त दवा दारू के काम आतिस।”
घीसू और माधो एक दुसर ला देखिस। बजार म एति ओति बड़ घुमिन। कभु ए दुकान त कभु ओ दुकान । किसिम किसिम के कपड़ा देखिन फेर कोनो पसंद नई आइस। बाजार म घुमत संझउती होगे। तब दूनोंझन कोनजनी कोन शइतान उँकर मुड़ मा झपइस ते दारु भट्टी कोती चल दीस। दारु भट्टी अइसे आइन कि जइसे ओमन पहिली ले सोच के आय रिहिन। पहली तो दूनोंझन कलेचुप खड़े होके सबो डाहर टुकुर-टुकुर देखत रहिन।

फेर घीसू गद्दी वाले तिर जाके किहिस ” एक बोतल महू ल देगा ।” एकर संग चखना में भुंजी मछरी अंडा चीला मंगाके दारु भट्टी के कोंटा म बइठ के कलेचुप दारु पीन। दु तीन पैग मारे के बाद दुनोंझन झूमरे लगिन।

घीसू किहिस ” कफन ओढ़ाय से का मिलथे ?आगी में जर तो जाथे। बहू के संग कुछु नइ जातिस।”
माधो ऊपर कोती ल देखत किहिस ” का दुनिया के नियम हे, लोगन मन पुन पाय बर बाम्हन मन ला हजारों रुपिया दान दे देथे। कोन जानथे परलोक में मिलथे कि नई मिले।”

घीसू ” बड़े आदमी मन करा रुपिया पइसा अबरा होथे, चाहे बचाए चाहे फुके हमला का? फेर हमर कर फुके के का हे ?”

माधो ” फेर लोगन मन ला जवाब का देबे? ओमन पूछही नहीं कफन कहां हे?”

घीसू “अबे कहीं देबो पइसा गवाँगे। बिक्कट खोजेन नइ मिलिस। ओमन पतियाही तो नही फेर उही मन फेर पइसा दिही।”

माधो हाँसत किहिस ” बिचारी बड़ सिधवी रिहिस। मरिस तभो ले खवा पीया के मरिस।”

बोतल अभी आधा सिराय रिहिस। घीसू दू पलेट मंगोड़ी मंगाइस। संगे संग सलाद, पापर अउ मटन ।माधो दउड़ के चखना दुकान गीस अउ सबो ल पतरी म लपेट के लाइस। दू सौ अउ खतम होगे। एक सौ बांचिस।

दूनोंझन निफिकर होके चखना संग दारू पियत हे। जइसे जंगल में शेर अपन शिकार ल खाथे। ना कौनो जूवाबदारी ना हिनमान के फिकर। ओमन तो पहेली ले कूटलाहा परगे रिहिन ।

घीसू बड़ बुधमान पंडित असन बोलिस” हमर आत्मा जुड़ागे ,त का ओला पुन नइ मिलही?”
माधो दोनों हाथ जोड़ के किहिस ” मिलही मिलही पुन तो ओला मिलबे करही ।भगवान ते तो सबो केअंतस के बात जनइया आवस। में बिनती करत हंव कि मोर बुधिया ला बैकुंठ में जगह दे दे। हमन ओला आशीर्वाद देवथन। आज जइसे खाना मिलिस, वइसन उमर भर नइ मिले रिहिस ।”
थोरकिन बाद माधो बोलिस ” कइसे ददा हमन घलो एक न एक दिन ऊहाँ जाबो।”
घीसू कुछु नइ किहिस । परलोक के बात ल सोच के रंग में भंग नइ चाहत रिहिस ।
माधो पुछिस ” परलोक में जब हमन जाबो त बुधिया पुछही कि कफन कावर नइ ओढ़ायेव त का कबो?”
घीसू ” कहि देबो तोर मुड़ी ।”

माधो ” वो तो पूछहीच गा।”

घीसू “का ते जानत हस कि ओला कफ़न नइ मिले? ते मोला अतेक भोकवा समझथस का? साथ बछर तक का दुनिया म झख मारे हंव। ओला कफन मिलही अउ बने वाला मिलही।”

माधो नइ पतियाइस। बोलिस ” कोन दिही? पइसा ल तो तेहा उरका देस। वो तो मोला पूछही। ओकर मांग में सिंदूर तो मैंहां भरे रहेंव।”
घीसू भड़कगे ” मेहा का काहथंव! ओला कफन मिलही, त ते काबर नइ मानस?”

माधो “कोन दिही? बतावस काबर नहीं ?”

घीसू ” उहीमन दिही ,जेमन हमन ला पइसा देय रिहिन । फेर ए पइत पइसा हमर हाथ नइ आय।”

जइसे जइसे अंधियार होवत गिस, चंदैनी मन चमकत रिहिस। दारु भट्टी म अब गद्द बोलत रहिस । कोनो गाना गावय, कोनो नाचे ,कोनो शेखी बघारे, कोनो दात नीपोरे ,कोनो गारी देवय ,कोनो अपन संगवारी ल पोटारे, त कोनो जबरदस्ती जे सिधवा राहय तेकर मुंह में दारू ला रुतो देय। ऊहाँ के हवा में निसा भिजगे राहय। कतनों ह तो इहां आके एक पेग पी के मात जावय। दारू ले जादा निशा तो इहां के हवा मे रिहिस । जिंनगी के दुख बिसराय बर इहं आवय अउ दारु पी के सब बिसरा जाय कि वो कहां हे, जियथे कि मरगे कुछु पता नइ राहय। बस मजा म बुड़ जाय।

अउ ए दुनों बाप बेटा अभी घलो ढार ढार के पीयत राहय। दूसर मन एमन ल देखें कि एमन कतेक भागमानी हे कि दुझन मिलके एक बोतल ल पियथे।

जब सूसी भुतागे तब माधो बाचे चखना ल पतरि में लपेट के भिखमंगा ल दे दिस। जे खड़े बड़ बेर के एमन ला टुकुर-टुकुर देखत रहिस। अउ कोन्हो दूसर ल दान देय म जे सुख हे तेला जिंनगी म पहिली बेर पाइन।
घीसू किहिस “ले जा अउ पेटभर खा, बदला म आशीर्वाद घलो दे। जेकर कमई हरे वो तो मरगे। फेर तोर आशीर्वाद ओखर मेंर पहुंचही। रुआं रुआं ले आशीष दे, बड़ मीहनत के पइसा आय।”

माधो ऊपर कोती ला देखत किहिस ” वो बैकुंठ में जही ददा, वो बैकुंठ के रानी बनही।”

घीसू खड़े होके झूमरत किहिस ” हां बेटा बुधिया बैकुंठ में जही। कोनो ला दुख नइ दिस,कोनो ला गारी गल्ला तको नइ दिस। मरे के बाद घलो हमनला खवा पिया के गीस। वो बैकुंठ नइ जाही त का ए मोटल्ला मन जाही ? जे गरीब मनला किन्नी कस चुहकत हे। अउ पाप धोय बर गंगा में नहाथे। पथरा के मूरती मेरन घोलंड के पांव परथे ।”

निसा चढ़े म आदमी एक जइसे नइ राहय , वोखर मन घेरी बेरी बदलत रहिथे।

माधो किहिस “फेर ददा! बिचारी जिनगी भर बड़ दुख भोगिस। पीरा मे ड खुरच खुरच के मरीस।”
माधो अपन चेहरा ला हाथ में तोप के जोर से चिचिया के रो डरिस।
घीसू समझाइस ” काबर रोथस बेटा ?खुश हो कि बुधिया माया जाल ले छूटगे। बड़ भागमानी रहिस कि अतेक जल्दी मोह माया के बंधना ला छूटगे।”

दुनोंझन खड़े होके गाना गाइन

“कइसे उड़ाये रे मैना ?
ए पिंजरा ल बइरी बनाके,
तें कइसे उड़ाये।”

मंदहा मन इही मन ला देखे लगीन। दूनोंझन झुमरत झुमरत नाचे अउ गाना गाय
दूनोंझन नाचीस , कूदीस ,मटकाइस , गम्मतिहा कस नकल करिन अउ आखरी म पट ले ढलंग गे।

#

अनुवादक-कन्हैया लाल बारले
अध्यक्ष मधुर साहित्य परिषद इकाई डौंडीलोहारा
जिला बालोद (छत्तीसगढ़)

ऐहूं ल देखव- मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ का छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद

Loading

One thought on “मुंशी प्रेमचंद के कहानी कफ़न के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद नवादसना

  1. बहुत बढि़या बारलेजी, पढ़कर मजा आ गया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *