बाल साहित्य(नाटक): नदी बह रही धीरे-धीरे -प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य(नाटक):

नदी बह रही धीरे-धीरे

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

टप्पी : मगरममच्छ
बेसर पिल्लू : सांप
बेनी : बन्दर
बफी : बुलबुल

दृश्य -एक
समय : दोपहर बाद

(धीरे धीरे नदी बह रही है। नदी का नाम है मनोरमा , एक पतली नदी , साफ़ पानी। किनारे पर पेड़ों की छाया। फलदार , छायादार पेड़ , जामुन का एक पेड़ दिख रहा है। बेनी बन्दर उस पेड़ पर बैठा है और जामुन खा रहा है। ख़ुशी में वह गाना भी गा रहा है।)

बेनी : (गीत )
हरा भरा है पेड़ हमारा
लाल बैंगनी जामुन ,
काले हरे रंग में भी ,
लटके कैसे जामुन।
खा कर जामुन पक्षी कितने ,
हो गये हैं बलवान ,
मैं हूँ राजा इस तट का
कितना है सम्मान।

(अचानक नदी के जल में सरसराहट। बेनी चौंक कर देखता है। अचानक वहां किनारे पर टप्पी मगरच्छ दिखाई देता है। टप्पी बेनी को देखकर मुस्कराता है। उसकी आँखों में दोस्ती के संकेत हैं। वह दोस्त बनना चाहता है। बेनी समझ जाता है। )
बेनी : स्वागत मेरे प्यारे दोस्त
तुम जल के प्राणी लगते हो
बल बुद्धि में तेज़
स्वागत मेरे प्यारे दोस्त !

टप्पी : बहुत बहुत धन्यवाद। बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर। पहले कभी नहीं देखा था !
बेनी : (मुस्कराते हुये): कोई बात नहीं , कोई बात नहीं। जब देखा तब सही , अच्छा लगा आपसे मिलकर !
टप्पी : इस वृक्ष पर बहुत सारे रंग बिरंगे फल लगे हुये हैं !
बेनी : हाँ -हाँ , जामुन कहते हैं इन्हें ! देखिये कुछ हरे , कुछ गुलाबी , नीले , लाल , बैंगनी।
टप्पी : दोस्त , मेरे मुंह में तो पानी आ रहा है !
बेनी : क्यों नहीं , क्यों नहीं ! ये फल ही कुछ ऐसा है । लीजये , मैं आपके लिये अच्छे- अच्छे पके – पके जामुन गिरता हूँ। देखिये , जो पूरी तरह नीले बैंगनी हैं वही सबसे ज्यादा पके हैं। मैं गिराता हूँ नीचे , आप खाइये मजे से।
टप्पी : (जामुन खाते हुये ) मेरे दोस्त , मैंने सोचा ही नहीं था दोस्त …. आप कितने अच्छे हो ! (टप्पी जामुन खाता है और मुस्कराता है। बहुत खुश दिख रहा है। )
बेनी : अच्छा दोस्त , आप भी तो कुछ बताओ अपनी नदी और अपने बारे में !
टप्पी : नदी और जल ही तो जीवन है दोस्त ! जीवन का स्रोत ! लेकिन आप भी जानते ही होंगे , नदियों का बहुत बुरा हाल है। देख नहीं रहे हो , कितना कूड़ा , पॉलिथीन , गन्दा पानी बहा रहे हैं लोग नदियों में। शहरों के किनारे तो रहना मुश्किल है।
बेनी : हाँ , वो तो है !
टप्पी : हम मगरमच्छ लोग तो मजबूरी में इन छोटी नदियों में आ जाते हैं। (अचानक बेसर पिल्लू का प्रवेश। दोनों उधर देखते हैं )
बेसर पिल्लू : (मुस्कराते हुये ) भाई , आपके इधर आने के खतरे भी बड़े हैं !
टप्पी : अरे बेसर पिल्लू ,आप !
बेनी : कैसे खतरे दोस्त ?
टप्पी : हम लोग स्वभाव से आक्रामक होते हैं। हमारे बड़े बड़े दांत , जबड़े… यही न दोस्तों !
बेसर पिल्लू : अगर जाने अनजाने किसी ने इन्हें गुस्सा दिला दिया तो !
बेनी : (मुस्कराता हुआ ) अरे !
टप्पी : नहीं ऐसी कोई बात नहीं भाइयो ! वैसे एक बात बताऊँ , हमारा पेट आदमी के सिर से बड़ा नहीं होता है , लेकिन हमारा पाचन तंत्र बड़ा मजबूत होता है। पत्थर भी पचा देते हैं हम !
बेसर पिल्लू : हाँ इनके पेट में गैस्ट्रोलिथ पाया जाता है , और वो तो पत्थर भी पचा सकता है !
टप्पी : बेसर , आपको बहुत ज्यादा ज्ञान है !
बेसर : मैंने आर्या के एल एस आई में पढ़ा है यह।
टप्पी : एल एस आई – ये क्या ?
बेसर : अरे लाइफ साइंसेज इंस्टिट्यूट , आप भी तो गये थे एक दिन किसी वर्कशॉप में !
बेनी : हाँ -हाँ , वो तो मेरी दोस्त है। बड़ी वैज्ञानिक है। वैसे टप्पी दोस्त आपके लिए फिर जामुन क्या , आप तो पूरा पेड़ ही पचा सकते हो।
(टप्पी जोर जोर से हँसता है। उसके दाँत दिखाई देते हैं। बेनी डर के मारे सिहर जाता है। )
टप्पी : (हा – हा – हा ) अरे दोस्त डर गये क्या ?
बेसर पिल्लू : नहीं-नहीं डरना क्या , हम सब धरती वासी।
बेनी : हाँ –हाँ ,अरे डरना क्या दोस्त , और वो भी दोस्तों से ! दोस्तों से क्या डरना !
बेसर पिल्लू : डरना तो ,दोस्त , सच कहूँ तो प्रदूषण से है।
टप्पी : हाँ दोस्तों आपको एक बात और बता दूँ हम लोग डायनासोर के समय से ही धरती पर पाए जाते हैं। आज तक हमारी नस्ल जीवित है।
बेनी : डायनासोर के समय से !
बेसर पिल्लू : 80 मिलियन वर्ष !
टप्पी : हाँ दोस्तों !(रोने लगता है …. लेकिन प्रदूषण इतना कभी नहीं देखा। हमारे पूर्वजों ने विनाश देखे , भूचाल देखे , प्रलय देखे , लेकिन मनुष्य द्वारा किया जा रहे प्रदूषण इतने कभी नहीं देखे होंगे उन सबों ने ।
(सभी शांत हैं , विचारमग्न। पीछे से बफी बुलबुल गीत जाती है। सब का ध्यान उस आवाज़ की तरफ जाता है और चेहरों पर खुशी झलकने लगती है। )

बफी का गीत :
हम सब प्रदूषण में जकड़े
आओ एक किरण तो लाओ
प्यारी -प्यारी धरती अपनी
इसको स्वच्छ बनाओ।
हरयाली ही अपनी माँ है ,
धरती- वायु -गगन सब कुल हैं
इनको चलो बचाओ
इनको बढ़ो बचाओ !
धरती को स्वच्छ बनाओ !

(धीरे धीरे गीत समाप्त होता है। सब मुस्कराते हैं। )
समाप्त

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हीं , बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी हिंदी अंग्रेजी कवितायेँ लगभग बीस साझा संकलनों में भी संग्रहीत हैं । लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं । )

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *