नदिया क्यों बहती है ? -डॉ. अशोक आकाश

नदिया क्यों बहती है ?

-डॉ. अशोक आकाश

नदिया क्यों बहती है ? -डॉ. अशोक आकाश
नदिया क्यों बहती है ? -डॉ. अशोक आकाश

/1/

नदिया क्यों बहती है कल कल,
सागर क्या कहता है ?
नदिया सागर में रहती है,
या सागर नदियों में रहता है ?

नदिया अविरल प्रेम की धारा,
सागर तक बहती है |
सागर तो है अपनी जगह,
नदिया सागर में रहती है |

सागर तो है शांत निरामय,
सहता सब कुछ सारा |
शीतल धारा पी पीकर भी,
रहता है जो खारा |

नदिया तो सागर की खोज में,
फिरती मारी मारी |
किंतु सिंधु तट से लगकर,
खोती अस्तित्व बेचारी |

जलधि का खारापन धोने,
जो अस्तित्व खो देती है |
जलधर रो देता है कभी,
प्यासी पयस्विनी रो देती है |

कैसा प्रेमी है सागर,
नदियों के दिल में रहता है ?
नदिया क्यों बहती है कल कल, सागर क्या कहता है ?

/2/

जब भी मिलती है सागर से,
पूर्ण एक हो जाती है |
समा करके बाहों में,
आनंदातिरेक हो जाती है |

चट्टानों से टकराकर,
मर्यादा मर्दन करती है |
ज्यों अति आतुर विलग शेर की,
मादा गर्जन करती है |

जब भी घाटी से गिरती है,
वृहद गर्त हो जाता है |
और दहर में शयनगार भी,
स्वच्छ दर्प हो जाता है |

जब-जब चंचल अनिल-वेग,
तुमको छूकर भी गुजरता है |
तब तब तेरा दिल सागर को,
किये वादों से मुकरता है |

पग पग चंचल वरुण-प्रवाह के,
संग अठखेली करती है |
कभी आसमां को उठती है,
कभी ढलान उतरती है |

तरूपुंज नदियों के तट की,
शोभा निखारती हैं |
व्याकुल सागर की सजल नयन ,
नदियों को निहारती हैं |

नदियों का शीतल जल प्यासों के,
प्यास बुझाया करती है |
सागर का खारा जल मन में,
उच्छवास जगाया करती है |

नदिया पाप हरण करती हैं,
सागर क्या करता है ?
नदिया क्यों बहती है कल कल,
सागर क्या कहता है ?

/3/

नदियों की तरह नारी मन भी,
अपने सागर को मचलता है |
कितना निर्मम निष्ठुर सागर,
नारी मन को कुछ चलता है |

नदिया और नारी में अंतर,
देखा है बस कहने को |
है दोनों ने लिया जनम,
जीवन भर अविरल बहने को |

धरती की तरह अंग-अंग में,
धरती दुख के गहने को |
इनको ही दिया अखिल सृष्टि ने,
दुख के सागर सहने को |

नदिया सहती जुल्म नवल नित,
सागर क्या सहता है ?
नदिया क्यों बहती है कल कल,
सागर क्या कहता है ?

/4/

सागर को सुखमय जीवन की,
रीत सिखाती नदिया तुम |
मीठा रहकर भी सागर से,
प्रीत दिखाती नदिया तुम |

पुरुषों की दुनिया में नारी बिन,
धरती में स्वर्ग कहां ?
सागर को मधुरिम जीवन,
संगीत सिखाती नदिया तुम |

नारी बिन पुरुषों का जीवन,
तुहीन कणों सा ढहता है |
नदिया क्यों बहती है कल कल,
सागर क्या कहता है ?

/5/

धरती के सिंहस्थ भार को,
धारण करता है सागर |
सिंहों सा उद्घोषित स्वर,
उच्चारण करता है सागर |

अगर नहीं होता सागर,
नदियों का आश्रय क्या होता |
धरती और नदियों के कष्ट,
निवारण करता है सागर |

गड़-गड़ चम-चम झर-झर बारिश,
धुल जाती छल-छल धरती |
नीरधि पीता नि:शब्द मलिन जल,
निर्भय कलरवनी बहती |

नदिया और सागर बिन है,
धरती में जीवन आस कहां ?
नारी और पुरुष के बिन,
धरती में मुद मधुमास कहां ?

नदिया और धरती के सदगुण,
नारी मन में रहता है |
नदिया क्यों बहती है कल कल,
सागर क्या कहता है ?

/6/

स्त्री और पुरुष को,
नदियां सागर जैसा रहना है |
दोनों के जीवन में साथी,
धैर्य ही अनुपम गहना है |

लिखे अशोक आकाश निष्फल,
हो जाएगा वज्र प्रहार |
संकट के सारे झंझा दृढ़,
दोनों मिलकर सहना है |

धरती माता भी सह जाती,
सागर जो सहता है |
नदिया क्यों बहती है कल कल,
सागर क्या कहता है ?
***

-डॉ. अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला तह जिला बालोद छ ग 491226
मो. नं. 9755889199

(रचनाकाल -5 फरवरी 1994)

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *