नंदागे बरवट संस्कृति
-सुधा वर्मा
आज बरवट नंदागे त बहुत अकन संस्कृति नंदागे। हर घर में एक बरवट राहय याने खुल्ला परछी, जिंहा घर के सियान, लड़का सब बर जगह राहय। ये संस्कृति सिरिफ छत्तीसगढ़ के ही नहीं हर गांव के पहिचान रहिस हे।
आखिर खुल्ला बरवट म काय होवय? ये बरवट म लइका मन बरसात म खेलयं । गरमी के मंझानिया लइकामन के हांसी, किलकारी ले गूंजय ये बरवट। बिहनिया ले बने गोबर में लिपा जावय ओखर बाद घर के सियान मन बइठ जायं। जेन ल भी गोठियाना हे ओमन इही बरवट म आवयं। नीति के बात, गांव के समस्या के बात, बेटी के बिहाव के बात इहां होवय। बांस गीत के मजा लेवयं त भटरी करा भविष्य जानयं। ये बरवट के महिमा बहुत रहिस हे। ढेरा आंटत भोभला बबा ठठ्ठा करय त डोरी लपेटत गौटिया ह मुस्कावय। जेवन के बेरा तक ये बरवट आबाद राहय। खेत डाहर सियान ह रेंग देवय। आरो नइ मिलय तब गाँटनिन ह समझ जाय। बरसात म घलो बरवट आबाद राहय। सब जुरिया के बइठे राहयं सुख-दुख बांटय। लइका मन बर घलो बांटी खेले के जगह राहय ।
बरवट ले हर परिवार एक-दूसरे ले जुरे राहय। कोन कहां जात हावय गांव म काकर घर सगा आय हावय ये समाचार मिलत राहय। कोन बीमार हे, कोन ल मदद के जरूरत हावय, ऐखरो जुगाड़ हो जाय। जेन ल बात करे बर राहय तेन ह बरवट म आके बइठ जाय। बात हो जाय। सुनार के सुनारी चलय, अंगूर वाले बाबा के दुकान चलय। बरसात म बाबा बैरागी मन अपन रहे के जगह बना लेंवय। ये बरवट म ककरो बर रोक-टोक नई राहय। एक तीर म बना खा लेवंय, उहें सुत जावयं। दिसा पानी बर तो भाठा रहिबे करय।
छत्तरपुर में मैं ह बरवट ल एक परछी के रूप देखे रहेंव जिंहा ढेंकी अउ जांता रहिस हे। छत्तीसगढ़ म घलो कोनो कोनो जगह ढेंकी हावय। बरसत पानी म घलो धान ल कूट लें। चार झन संग गोठिया ले अउ काम कर ले। कोनो धान, कोदो-कुटकी, कूटना हे त आके कूट लेवय ।
कांक्रीटीकरन अउ शहरीकरन ये सुघ्घर संस्कृति ल पाछू ढकेल दीस। आज येला चाह के भी लाने नई जा सकय। एकर बाद परछी बनिस जेमा दरवाजा राहय। जेन समय-समय म खुलय। अब ओ परछी घलो नंदागे। अब तो पोर्च अउ हॉल बने ले लगगे। इहू ह जुन्नागे । अब एक ड्राइंग रूम याने बइठक जिंहा सिरिफ बाहरी मनखे बइठथें । ओखर संग लिविंग रूम ये ह पारिवारिक बइठक आय। जिंहा महिला मन काम करयं। टी.वी. देखयं, लइका मन पढ्यं अउ सियान मन टी.वी. देखयं । ये ह पारिवारिक जगह बनगे। ये सब के बीच म वो बरवट ह दिखथे जिंहा पूरा गांव एक पारिवार बने राहय। सुख-दुख,हंसी-मजाक अउ समाचार के एक जीवंत जगह रहिस हे। बरवट एक दिन जरूर लहुटही रूप बदल के।
-सुधा वर्मा