नरक चतुर्दशी-दीपश्राद्ध का पर्व
-पं. छत्रधर शर्मा
नरक चतुर्दशी-दीपश्राद्ध का पर्व
पंच दिवसीय दीप पर्व दीपावली के दूसरे दिन को नर्क चतुर्दश, नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, काली चौदस और दीपश्राद्ध चौदस के नाम से जाना जाता है । देश के अधिकांश हिस्से में इसे यम चौदस और छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है ।
नरक चतुर्दशी कब मनाया जाता है ?
नरक चतुर्दशी दीपावली पर्व के दूसरे दिन तदानुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि को प्रतिवर्ष मनाया जाता है । वस्तुत: दीपावली पांच दिनों का पर्व है । प्रत्येक दिनों का अपना एक अलग नाम और अपना अलग महत्व होता है ।
नरक चतुर्दशी क्यों मनाया जाता है ?
नरक चतुर्दशी के कई नाम हैं जैसे रूप चौदस, काली चौदस, यम चौदस,दीप श्राद्ध चौदस आदि । प्रत्येक नाम का महत्व इसके मनाये जाने के कारण से ही है । ये कारण इस प्रकार हैं-
नरक चतुर्दशी मनाये जाने का कारण-
श्रीमद्भागवत कथा के अनुसार भौमासुर नामक दैत्य हुआ करता था, इसी दैत्य को नरकासुर भी कहा जाता था । भौमासुर अनेक राजाओं के राजकन्याओं को बंदीगृह में कैद कर रख था । एक बार यह दैत्य देवराज इन्द्र की माता के बहुमूल्य छुमके को छिनकर ले गया । यह झुमका केवल एक बहुमूल्य गहना न होकर देवताओं के मान-सम्मान का प्रतिक था । इस मान मर्दन से आहत देवराज इन्द्र ने भगवान कृष्ण से नरकासुर का वध करने का आग्रह किया । इस आग्रह को स्वीकार कर भगवान कृष्ण भौमासुर के राज्य प्रागज्योतिषपुर पर आक्रमण किया । कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण उस भौमासुर नरकासुर का वध किया । इस आताताई वध के स्मरण में नरक चतुर्दशी मनाये जाने की परम्परा चल पडी ।
नरक चतुर्दशी को रूप चौदस के रूप में मनाये जाने का कारण-
जिस समय भौमासुर का वध हुआ उस समय तक वह दैतय अपने बंदीगृह में निर्दोष 16000 कन्याओं को कैद कर चुका था । भगवान कृष्ण नरकासुर के वध करने के पश्चात इन निर्दोष कन्याओं को भी मुक्त करायें । ये कन्यायें मुक्त होने के पश्चात भगवान से करूण पुकार करते हुये प्रार्थना की कि हमें कौन स्वीकार करेगा ? उनकी दारूण पुकार से द्रवित होकर भगवान कृष्ण उन सभी 16000 कन्याओं को पत्नि के रूप में स्वीकार किया । तब सभी कन्यायें जो अब बंदीगृह में कैद थी रूप सज्जा के लिये औषधियुक्त जल से स्नान की जिससे सभी का रूप और यौवन में निखार आ गया । तब से मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय के पूर्व औषधियुक्त जल से स्नान करने पर चिरयौना प्राप्त होती है । इसलिये इस दिन को रूप चौदस के रूप में मनाये जाने लगा ।
नरक चतुर्दशी को यम चौदस के रूप में मनाये जाने का कारण-
पौराणिक कथा के अनुसार रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन यम चौदस के रूप में प्रचलित है।
मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से मनुष्य नरक में मिलने वाली यातनाओं से बच जाता है ।
नरक चतुर्दशी को काली चौदस के रूप में मनाये जाने का कारण-
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब तीनों लोकों पर अधिकार कर महिषासुर ने त्राहि- त्राहि मचा दिया,तब देवताओं ने अपनी -अपनी शक्यिाँ समन्वित कर दुर्गादेवी को स्वरूप दिया, महिषासुर के अंत के बाद माता ने प्रार्थना करते देवों को वचन दिया कि -’’जब भी तुम मुझे पुकारोगे मैं तुम्हारी मदद के लिए अवश्य आऊँगी ।’’ और अन्तर्धान हो गईं । शुंभ-निशुंभ मर्दन के लिये जब देवातओं ने मॉं को पुकारा तो वह काली के रूप प्रकट हुई इस प्रकटोत्सव को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है । यही कारण है कि मॉं काली का धाम कलकत्ता बंगाल में नरक चतुर्दशी के दिन मां काली का प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है । इसलिये इस दिन को काली चौदस के रूप में जाना एवं माना जाता है ।
नरक चतुर्दशी को दीप श्राद्ध के रूप में मनाये जाने का कारण-
देव पूजन हम प्रतिदिन करते हैं किन्तु पितृ पूजन प्रतिदिन नहीं कर पाते । पितृदेवों की भी हम पर विशेष कृपा है कि वे हमें प्रतिदिन पितृकर्म न कर पाने की स्थिति में अन्य विकल्प हमें दे रखें हैं । यदि प्रतिदिन पितृकर्म न हो तो माह के अमावस्या को पितृकर्म श्राद्ध किया जा सकता है, यदि मासिक श्राद्ध नहीं कर सकते तो आश्विन मास के पितृपक्ष में पन्द्रह दिनों का श्राद्ध कर सकते हैं । इतनी सुविधा में भी श्राद्ध नहीं कर पाये तो कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रात: तिलांजली देकर स्नान करें और सायंकाल संधिबेला में चौदह दीपों का दान पूर्वजों को करें, इसे ही दीप श्राद्ध कहा गया है ।
नरकचतुर्दशी को दीप श्राद्ध मनाये जाने के पक्ष में प्रमाण-
- देश के अधिकांश भाग में नरक चतुर्दशी के दिन लोग घर के मुख्य द्वार पर कच्चे मिटटी के चौदह दीये बनाकर दीपक जलाते हैं । दीप श्राद्ध में ही चौदह दीप दान का विधान है ।
- राजस्थान के गुर्जर समाज द्वारा दीपावली के दिन अपने दिवगंत पूर्वजों को श्राद्ध देने की परम्परा आज भी है । इस दिन इस समाज के लोग गांव के नदी या तालाब पर सपरिवार एकत्रित होकर पूर्वजों जलांजली देकर घर लाये हुये भोजन को भोग के रूप अर्पण करते हैं और स्वयं इसे प्रसाद के रूप में उसी तट पर ग्रहण करते हैं । इस श्राद्धकर्म के बाद ही ये लोग दीपावली मनाते हैं ।
नकचतुर्दशी कैसे मनायें-
विभिन्न नामों से जाने जाने वाला इस पावन पर्व को सभी नामों के कारणों को मिलाजुलाकर । मिलेजुले परम्परा के रूप में मनाया जाता है –
- सूर्योदय से पूर्व स्नान- नरकचतुर्दशी के दिन सूर्योदय के पूर्व औषधि युक्त जल यदी हल्दी, चंदन, तुलसी आदि मिश्रीत जल से स्नान करने का विधान है विशेषकर नवयुवतियों के लिये । मान्यता है आज के दिन के इस इस स्नान चिरयौवना प्राप्त होती है । इस परम्परा के निर्वाह के लिये कुछ प्रात: स्नान करते हैं ।
- श्राद्धकर्म करने के अधिकारी आज के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर तर्पण कर्म के रूप कम से जलांजली देते हैं । श्राद्धकर्म के जानकार इसे अवश्य करते हैं ।
- यम को प्रसन्न करने संध्याबेला में यमपूजन कर उसे दीप दान करने का विधान है । अधिकांश लोग संध्याकाल यमराज को दीपदान अवश्य करते हैं ।
- दीप श्राद्ध के रूप में संध्याकालिन संधी बेला में कच्चे मिट्टी के चौदह दीपक बनाकर दीप प्रज्वल्लित कर उसका विधिविधान से पूजा करते हैं कम से कम पंचोपचार पूजन किया जाना चाहिये ।
- नरकासुर के वध और भगवान कृष्ण के 16000 कन्याओं के साथ विवाह होने के स्मरण में दीपमाला किया जाता है । घर के कोने-कोने प्रकाशित करने के लिये घर का मुखिया एक दीपक घर में चारों-ओर घूमता है ।
नरकचतुर्दशी का महत्व-
दीपावली पर्व नरकचतुर्दशी मनाये बिना पूर्ण नहीं हो सकता । नरकचतुर्दशी का अपना विशेष महत्व है । जहॉं यह पर्व नरकासुर (अधर्म) पर भगवान कृष्ण (धर्म) के विजय के उल्लास को व्यक्त करता है वहीं 16000 कन्याओं काे भगवान द्वारा बंदीगृह मुक्त कराना और आश्रय देना लड़कियों के सम्मान की रक्षा करने का संदेश देती है । यम द्वारा दिये जाने वाले नर्क की यात्ना से बचने का यत्न हमें पाप कर्मो से दूर रहने की प्रेरणा देता है वहीं दीप श्राद्ध पूर्वजों के प्रति कृतज्ञनता ज्ञापित करने का प्रेरणा देती है । कुल मिलाकर यह पर्व हमें अपने बुजुर्गो के सम्मान करते हुये सदकर्म के सुपथ पर चलने के लिये प्रेरित करता है ।
-पं. छत्रधर शर्मा
दीपश्राद्ध के संपूर्ण विधान को यहॉं देख सकते हैं- दीपश्राद्ध
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