आज़ादी के अमृत महोत्सव के परिप्रेक्ष्य में स्वतंत्रता संग्राम विषयक नाटक –
देश की माटी चन्दन
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
पात्र
रघुराजी
संभ्रांत ग्रामीण महिला , महिलाओं का नेतृत्व करती हुयी
मैना
ग्रामीण महिला
तोता
ग्रामीण महिला
नैका
ग्रामीण महिला
बड़का
ग्रामीण महिला
छोटका
ग्रामीण महिला
मनका
ग्रामीण महिला
पराना
ग्रामीण महिला
झूमर
बंजारा महिलाओं की नायिका
बंजारा महिलायें
अंग्रेज़ पुलिस अफसर
सिपाही
किसान
समय
संध्या
स्थान
एक छोटा सा गांव अवध क्षेत्र में
काल
वर्ष 1943 के आस पास , नवंबर का महीना
दृश्य -एक
सूत्रधार : एक बहुत छोटा सा गांव। पच्चीस -तीस घर होंगे। कच्चे मकानों की पंक्तियाँ , बड़े सलीके से सजाये गए हैं मकानों के बाहरी भाग। शाम आने की तैयारी में , जैसे मिलने जाना है नायिका से , बादल ढक लेते हैं सूरज को। किसानों की आवा-जाही जीवंत बनाये हुए है माहौल को। किसान शायद रात होने के पहले अपने दैनंदिन क्रिया -कलाप पूरा कर लेना चाहते हैं। गांव के बगल एक आम रास्ता है , लोग आ जा रहे हैं। हाँ, आज तो कार्तिक पूर्णिमा का मेला था बगल के गांव- रानीमऊ में। लोग मेले से लौट रहे हैं। आईये आपको ले चलते हैं रघुराजी के घर । ये हैं रघुराजी , घूप में फैले चावलों को एकत्रित कर रही हैं। सुखवन कहते हैं अवधी लोग इसे। हाँ ,देखिये उनके पास उनकी सहयोगी महिलायें – नैका , छोटका , बड़का भी सहयोग कर रही हैं। अरे , ये देखिये इनके गीत। उत्तर भारत में लोक गीतों की एक विशिष्ट एवं समुन्नत परंपरा रही है। विभिन्न अवसर , विभिन्न परिवेशों में विभिन्न गीत हैं।
ग्रामीण महिलाओं का समूह गान
राज रह गवा सिरफ दिखावा
न्याय बचा बस केवल दावा।
इनका पाप चढ़ा आता है
देश दबा कुचला जाता है ,
हड़प रहे ई आपन थाती,
खोद रहे भारत की माटी
निकलो देस की खातिर बहनो
हंसिया होय या पकड़ दराती।
(पास से पांच -छह महिलाओं की एक टोली , जो किसी मेले से लौट रही है , गीत के स्वर सुनकर आकृष्ट होती हैं। उनमे से एक महिला बोल उठती है। उसका नाम बड़का है। )
बड़का : क्या बहन , आप लोग क्या गाये बजाये जा रही हो !
रघुराजी : (घूरते हुए ) अरे गाना बजाना कहाँ ! क्या बहन , वो तो पुराने ज़माने की बात हो गयी ! अब तो हमें लोहा लेना है , लोहा !
(रघुराजी की साथी महिलायें रुक जाती हैं। )
बड़का : अरे कहे का बहिन , काहे का ! अरे आप काहे का लोहा लेंगी और वह भी किससे ?
रघुराजी : तुम लोगों को कुछ खबर है कि नहीं ? आये दिन अंग्रेजी पलटने गुजरती हैं। कल ही एक गोरे ने यहाँ आकर काफी उठा – पटक की थी !
बड़का : हाय राम , करम जले गोरे फिरंगी ! नाश काटे ! का किहिस राय ? का भा बहिनी ?
मैना : क्यों , आप लोगों की तरफ कुछ खबर नहीं पहुंची ? आज कल गोरे बिल्लाय फिरे हैं।
नैका : भारत छोडो आंदोलन चल रहा है !
रघुराजी : जो जहाँ है वहीँ आज़ादी लेने की कसम खा चुका है।
बड़का : अच्छा बहिन , हमका नहीं मालूम , क्यों छोटका ? (दूसरी महिला की तरफ देखती है। )
छोटका : हाँ दीदी , कुछ कहा सुनी तौ रही , मुला भवा का पता नहीं…
रघुराजी : (थोड़ा गुस्से में ) कहाँ रहती हो तुम लोग ?
बड़का : अरे उधर आलिया बाद की तरफ…
छोटका :(उत्साहित होकर बताते हुए ) गाँव पतुलकी !
रघुराजी : उधर तो बहुत दिन से बातें हो रही हैं। महंतजी ने बहुत लोगों को संगठित करके दल बनाये हैं।
बड़का : होई बहन , लेकिन हम औरतन का का , घर केरी चूल्हा चक्की ,खाना पिसान लड़का बच्चा से समय ही नहीं बचता बहिन !
छोटका : हाँ बहिन , तुम लोगन का कहाँ से ई बातें मालूम चलीं ! हम लोगन का तो घर से बाहर झांकना ही नहीं हो पाता। आज तीन बरस बाद मेला के खातिर निकलें हैं।
बड़का : और हमारे घर के आदमी लोग भी तो नहीं कुछ बतातें हैं , करें तो क्या करें !
मनका (छोटका से ) बहिन सच बतायें ,मालूम तो सब को है , गांव -जँवार, नगर -नगर (पराना उसको इशारे से चुप रहने को कहती है। )
बड़का : हम औरतन का कम समझत हैं आदमी लोग।
छोटका : अरे कहे का कम… अभी मेले मा सुना नहीं रानी लक्ष्मी बाई !
बड़का : हाँ , वह तो ठीक है , हमारे देश में एक से बढ़कर एक वीर नारियां पैदा हुयी हैं … और आप भी हैं !
मनका : (प्रसन्नता से ) हाँ , अब कही है तुम लोगों ने हकीकत !
पराना : हाँ यही , सोचो ! यही करो , यही समझो। ये बड़ा -छोटा , कम समझना -कम समझाना सब कुछ अपने ऊपर निर्भर करता है।
रघुराजी : आप अपने को कमजोर समझेंगी तो लोग कमजोर कर देंगे लोग। सोच को खोखला कर देंगे… बिलकुल वैसे जैसे इस महान देश को खोखला कर रहे हैं अँगरेज़ लोग !
मैना : हाँ दीदी , हाँ !
रघुराजी : हमें अपने देश की आज़ादी के बारे में सोचना है। देखना है ,क्या कर सकते हैं हम लोग !(प्रसन्नता से) देखो कौन आ रहा है !
(चार पांच महिलाओ का दल एक गीत गाते हुये निकलता है। सब शांत होकर सुनते हैं। )
अब है आपन बारी
ई माटी का करज चुकाना ,
आपन मति चन्दन जैसी
ई का मान दिलाना।
देस पर कब्जा किहिन फिरंगी
अब है आपन बारी,
माँगब हमहूँ अब हक़दारी
दुश्मन छीन लिहिस आज़ादी
अब हम माँगब आज़ादी।
नाम लेब दुर्गा काली कय ,
कूदब जंग , लेब आज़ादी
अपनी माटी मा हक़दारी।
गोरे छीन लिहिन आज़ादी ,
अब है आपन बारी।
ई माटी का करज चुकाना ,
गोरे छीन लिहिन आज़ादी।
(गीत समाप्ति पर महिलायें रघुराजी को प्रणाम करती हैं। सभी महिलायें गीत सुनने में तल्लीन हो गयीं थी , अब रघुराजी की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखती हैं। शायद उन्हें रघुराजी द्वारा गीत गायक महिलाओं का परिचय जानना है। )
मैना : (रघुराजी से )अरे दीदी , पहले नहीं बताया ? कहाँ की बहिने हैं ई सब ?
रघुराजी (हलकी से मुस्कान के साथ ) : भारत छोडो आंदोलन का नाम तो सुना होगा आपने भी !
मैना : हाँ हाँ , मुंशी जी तो बता रहे थे !
रघुराजी : उसके बाद हम गए थे अपने मायके , वहां पर चर्चा किया और इन दुर्गा काली बहनों का एक दल तैयार हो गया…
दल की नायिका : (प्रसन्नता से )आगे हम बताते हैं बहनो ! बंजारे हैं हम ! जानते हो आप लोग बंजारों के बारे में ? देश दुनिया घूमते रहते हैं हम। अपने ढोरों -पशुओं को पालना हमारा काम है।
मैना : अरे क्यों नहीं बहन , बंजारे तो हमारे बहुत अच्छे मित्र हैं।
नैका : लाखा बंजारा , छेदा बंजारा , लग्गा बंजारा और उनकी औरतें। अरे हमारे घर आना जाना है उनका सबका। हमारे यहाँ हर साल आते हैं सभी , अउ पूरा हैंवत साथ रहता है उनका…
मैना : (मुस्करा कर बीच में टोकते हुये ) हाँ -हाँ , तुम उनकी कहानियां सुनती हो ,और…
रघुराजी : हाँ क्यों नहीं ! बंजारे इस देश के जान मानस में कहीं न कहीं लोक नायक रहे हैं तभी तो जन मानस उन्हें प्यार से नायक भी कहता है।
नायिका : बहनों सब कुछ तो आपको मालूम ही है , हम क्या बतायें। हम तो घुमंतू हैं , घुमते रहते हैं , अपने लिए , समाज और देश के लिए।
दूसरी बंजारा महिला : हमें जड़ जायजाद से कोई मतलब नहीं , बस जरूरत की चार चीज़ें , अपना तम्बू कनात !
तीसरी बंजारा महिला : और अपने हृष्ट पुष्ट पशु !
रघुराजी : आदर्श हैं आप लोग , देश के लिए , जन मानस के लिए।
नायिका बंजारा : हमें देश की माटी से बहुत लगाव है !
दूसरी बंजारा : और हमारे नायक लाखा बंजारा ने तो हमें सौगंध दी है , देश पर मर मिटने की। हमारा गीत है , हम सबको रटा हुआ !
नैका : कौन सा गीत बहन ?
(बंजारा महिला नायिका की तरफ आज्ञा मांगने की दृष्टि से देखती है। )
नायिका : हाँ हाँ क्यों नहीं ! हम सुनाते हैं अपना गीत।
रघुराजी :(ग्रामीण महिलाओं को सम्बोधित करते हुए ) हमने तो सुना है। आप लोग भी देखो और सुनो , कितना प्रेम है अपनी धरती के प्रति , कितना सम्मान है भारत देश के प्रति !
नायिका : तो….
रघुराजी : हाँ -हाँ , आप प्रारम्भ करें , शुरू करें अपना गीत बहनों –
(बंजारा महिलाओं का समूह गान )
देश कै आपन माटी चन्दन
आपन प्रान है आपन देश
आपन प्रान है आपन देश !
एहकी हरियाली मा जीवन
ईके पवन – अपन सन्देश।
देश कै आपन माटी चन्दन
आपन प्रान है आपन देश।
हमका नाही मतलब है ,
जड़ होय आउर जयजाद,
हमका तौ बस यही चाहिये
हरियाली लहलाय,
हो हरियाली लहलाय।
रहैं हरेर सबै जंगल जब
रहय नदिन मा पानी ,
रहय हरेर दूब धरती पर
अउर होय मीठी बानी।
देश कै आपन माटी चन्दन
आपन प्रान है, आपन देश।
आपन प्रान है आपन देश।
(अचानक तेज़ी से छिपते -छिपाते जाती हुयी दो महिलायें दिखाई देती हैं। रघुराजी की दृष्टि पड़ती है उनपर )
रघुराजी :(अपेक्षाकृत तेज़ आवाज़ में ) अरे तोता और मैना , तोता मैना , तोता मैना कहाँ जा रही हो ?
(गीत रुक जाता है। )
तोता : (धीमे से रघुराजी के पास आती है। घूंघट थोड़ा सा हटा कर कुछ बोलती है। मैना अभी भी घूंघट में खड़ी है। )
नैका : अरे मैना ! घूंघट उठा , यहाँ कौन जेठ और ससुर बैठा है ?
(मैना शर्माती हुयी घूंघट उठाती है। )
तोता : (धीमे स्वर में ) एक अँगरेज़ हाकिम और अपने हिंदुस्तानी सिपाही लोग गुजर रहे थे उस तरफ से !
मैना : (सहमती हुयी ) हम लोग इज़्ज़त आबरू बचा के भागे !
रघुराजी : (गुस्से में ) समय भागने का नहीं , भागने का है। हमारे डरने का समय नहीं , उन्हें डराने का समय है । बहनों यह शक्ति का देश है। दुर्गा काली का , लक्ष्मी बाई का ! ऊदा देवी को नहीं सुना , अकेले कितनों को काट डाला था ! (सभी सावधानी पूर्वक सुनते हैं। )तुम सब ग्रामीण नारियां हो , बड़े बड़े पशुओं को काबू में करने वाली !
मोना : अरे बहनों , हमारे पास भी हथियार हैं – हँसिये , कुल्हाड़ी , गंडासे , बांके , चाकू , छुरी , डर काहे का बहिन ?
रघुराजी : यहाँ तक की मृत्यु का भी डर नहीं होना चाहिये ! धर्मराज ने जब लिखा होगा , मौत तभी आएगी। तभी आएगी मृत्यु (मुट्ठियां भींचती हैं ) इन फिरंगियों से क्या डर। काट देंगे हम अगर ये हमारी तरफ बढे। पद्मिनी का देश हैं यह।
झूमर : भाग्यशाली हैं आप बहनों ! आपके पास रघुराजी बहिन हैं। इन्होने उस दिन मायके में दो फिरंगियों को ऐसा भगाया… ऐसा भगाया की पूछो नहीं…(हँसने लगती हैं। )
(रघुराजी का चेहरा स्वाभिमान से लाल हो उठता हैं। )
रघुराजी : बस हमें संगठित रहना है। अपनी इज़्ज़त , अपने समाज , अपने देश की तरफ बढ़ती हुयी हर आंख को उसी की भाषा में जवाब देना है।
(सभी स्वीकृति में सिर हिलाते हैं। )
रघुराजी : बहिनो , अपनी शक्ति पहचानो। स्वयं को शक्तिशाली समझोगी तभी दुनिया आपको सम्मान देगी , नहीं तो हमारे खुद के ही भितरघाती हमें जीने नहीं देंगे।
झूमर : सही कहा बहन , कोई भी हो , एक देश तभी खोखला होता है जब उसके अपने ही लोग दुश्मन से जा मिलते हैं।
मैना : बिलकुल ! वो तो कहीं भी हो बहन , देश, गाँव , समाज , घर !
रघुराजी : घर से ही देश की परिभाषा शुरू होती है बहन , मुंशी जी अक्सर कहते रहते हैं।
झूमर : भारतवर्ष में , सुना है आपसी रंजिश और फूट बहुत बड़ा कारण रहा है गुलामी का।
रघुराजी : वो तो है , पृथ्वीराज चौहान का समय हो , जानती हो हमारे भितरघाती मोहम्मद गौरी से जा मिले , और पद्मिनी के समय में भी , उन्ही के पति का गुरु जाकर अलाउद्दीन से मिल गया…. नरक मिले देशद्रोही को। आज का समय ले लो , कितने , अपने ही लोग अंग्रेज़ों से मिले हैं , उनसे इनाम- जायजाद लेते हैं , सलाम – नमस्ते ठोक कर।
झूमर : बहुत सही कहा बहन , लेकिन अब छोडो , पुरानी बातें छोडो , अपनी शक्ति पहचानो , आगे बढ़ो !
रघुराजी : बिलकुल (बड़का , छोटका को सम्बोधित करते हुए ) बहनों स्त्री – पुरुष का भेद प्राकृतिक है , लेकिन कौन शक्तिशाली और कौन दुर्बल यह तुम्हारा – हमारा , अपना बनाया हुआ है। औरतें अपने को शक्तिशाली समझेंगीं तो पुरुष शक्तिशाली मानेगें उन्हें। अगर औरतें स्वयं ही स्वयं को दुर्बल सिद्ध करने लगें तो बात अलग है।
मैना : (हँसते हुए ) राम ही मालिक है !
बड़का , छोटका : (चेहरे पर स्वाभिमान की झलक के साथ ) बिलकुल समझ गये हम लोग बहन , समझ गये। अब समझ गये सब कुछ।
मैना : (मुस्कराती हुयी ) अपने आदमी को जा के खदेड़ देंगी ये दोनों लग रहा है !
ऐसी कोई मंशा है क्या रघुराजी दीदी ?
(सभी जोर -जोर से हँसते हैं। )
बड़का , छोटका :(सकुचाते हुए ) नाही – नाही , ऐसा नाही बहिनी ! भगवन माफ करें , ऐसा तो सोच भी नहीं सकती हैं हम लोग !
नैका ( आंख दबाते हुए , मुस्कराते हुए ) बड़ी मुहब्बत है भैया इन लोगों को अपने ‘ उनसे’ !
बड़का (शर्माते हुये ) काहे नाही ? सात फेरा लिया है उनके साथ !
(सब हँसते हैं। )
रघुराजी : बहनों , यह ख़ुशी , यह प्रसन्नता बानी रहे ! बढ़ता रहे रहे हमारा देश। ईश्वर ऐसा दें आशीष।
झूमर : तो बहनों आओ , हमारे साथ हमारा बंजारा गीत गाओ।
रघुराजी : हम सब मिलकर गायेंगे।
सभी का सामूहिक स्वर : हाँ हाँ , सभी गायेंगे , अपने देश के लिए !
(सभी का सामूहिक गीत। सभी पहले वाला बंजारा गीत दोहराते हैं , साथ साथ गाते हैं। )
(धीरे धीरे पर्दा गिरता है। पीछे से आवाज़ आती है – भारत माता की जय ! जय भारत -जय भारत माता। )
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।
संपर्क : अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ 226007
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