नाटक: पत्र आया
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
पत्र आया
पात्र
अनाम : एक युवक
पाश : एक युवती
दृश्य – एक : प्रातः 8 बजे
(अपने कक्ष में अनाम काफी अनमना सा टहल रहा है। चेहरे पर व्यग्रता के भाव। बार बार उसकी नज़र फ़ोन पर जाती है। पार्श्व में एक गीत बज रहा है। )
मन का विक्षोभ कहें किस से
बरबस आतुर ह्रदय भाव ,
कुछ जगे हुए हैं , कुछ अनसुलझे।
अनसुलझे से स्वप्न कौंधते
रात ढली, बीती, खिसकी
वही स्वप्न दिन में भी आयें,
दिन में आयें…
अनाम : कब से इंतज़ार में बैठे हैं…फ़ोन भी… आह भी नहीं भरा इसने , कराहता भी नहीं… (ख़ुशी से उछलते हुए। फ़ोन पर घंटी बजती है। ) घंटी बजी… (लपक कर फ़ोन उठाता है। चेहरे पर चमक फ़ैल जाती है। तब तक फ़ोन काट जाता है , उसी नंबर पर दुबारा कॉल करता है। )
(पाश का फ़ोन आया है। अब मंच दो भागों में दिखेगा । “अ” और “ब”। “अ” अनाम का कक्ष और “ब” पाश का कक्ष। )
अनाम : (ख़ुशी से उछलते हुये ) अरे पाश ,आपका पत्र आया !
पाश : हेलो – हेल्लो! कुछ नेटवर्क की दिक्कत है …
अनाम : नहीं , मुझे तो साफ सुनाई दे रहा… मैं कह रहा हूँ , आपका पत्र आया…
पाश : पत्र आया !
अनाम : अरे यार , वही मैसेज , अब कहाँ रही बात कबूतरों की , डाकिये की , मैसेज ही पत्र है।
पाश : तो इसमें आश्चर्य की क्या बात ?
अनाम : आश्चर्य ही आश्चर्य !
पाश : आप मेरे बारे में हमेशा नेगेटिव ही सोचते हैं !
अनाम : अरे नहीं , कभी कभी सोचता हूँ की क्या सोचूँ !
पाश : क्या सोचूँ ? मतलब ?
अनाम : मतलब यह की आप मेरे पैगाम को हर बार ठुकरा देते हैं , और मैं मायूस कुछ कह नहीं पाता…
पाश : अरे ! बहुत अफ़सोस हुआ सुनकर !
अनाम : अफ़सोस ! हाँ , की आपने पैग़ाम भेजा , ख़त लिखा और किसी ने आपके पैगाम को ठुकरा दिया।
(अनाम और पाश साथ साथ हॅंसने लगते हैं। )
पाश : धैर्य रखिये , धीरज यह बहुत ही जरूरी है। खास तौर से आप जैसे योद्धाओं के लिए अवश्य…
अनाम : हॅंसने की बात नहीं है पाश ! विचारणीय तथ्य है। हम लगातार भेज रहे हैं प्रस्ताव और आप निष्ठुर बन कुचल देते हैं ह्रदय के उद्गार… क्रूर बन कुचल देते हैं भावनाओं को… नोच देते हैं गुलाब… और मसल देते हैं ख्वाब !
पाश : अरे ! आप तो कवि हो गए !
अनाम : कवि और कविता क्या पाश !
पाश : ठीक है… ठीक है… अब ऐसा ही क्या लो साउंड कर रहे हो !
अनाम : ऐसा क्यों बोलते हो , मेरे लिए आपका चिंतन ही कविता है। आपका वर्णन कविता है , आपका दर्शन कविता है।
पाश : कविता से जन्दगी नहीं चलती , रोटी नहीं मिलती हाँ उसके आकर की एक उन्नत कल्पना अवश्य मिल जाती है।
अनाम : जिंदगी खूबसूरत हो जाती है। यही कल्पना ही तो वह बीज है जो अनंत कल तक अक्षुण्य रहने वाली फसल उगाने की क्षमता देता है। एक ऐसी कृषि जिसका उत्पाद चिरकाल तक जनजीवन को हरा भरा कर दे , हरा भरा रखे।
पाश : अब देखिये ,आप किसान हो गए , क्या बात है अनाम कभी कवि कभी किसान !
अनाम : काश आप समझ पाते !
पाश : अब हम हँसेगें तो आप बलबन की तरह उस पर प्रतिबन्ध लगा दोगे !
अनाम : न – न , मैं कौन होता प्रतिबन्ध लगाने वाला। तुमने बलबन का नाम लिया -ग़ुलाम बादशाह… मैं तो तुम्हारा ग़ुलाम ठहरा… एक रोचक ग़ुलाम !
पाश : रोचक ग़ुलाम ! पहले कभी सुना नहीं यह शब्द !
अनाम : काश पैग़ाम क़ुबूल कर लेती तो सुन भी लेती , समझ भी लेतीं !
पाश : क्या कहा ?
अनाम : जो सुना !
पाश : सुना ही नहीं !
अनाम : रहने दीजिये तब ! आप समझोगे नहीं… कोशिश कीजिये कभी…
पाश :(स्थिर होकर ) अच्छा आपको लगता है की मैं कुछ समझती नहीं ?
अनाम : और क्या ! ठीक है हम लोग फिर कभी बात करेंगे।
(फ़ोन कट जाता है। ) यह क्या…
(दोनों अपने अपने कक्ष में आश्चर्य से , फ़ोन मिलाते हैं एक दूसरे को…लाइन व्यस्त जाती है। )
(अनाम का स्वागत गायन )
इंतज़ार कोई तो करता
कोई कहीं मेरा भी यूँ ही
(पाश का स्वगत गायन )
मिल लूंगी मैं तुम्हे एक दिन
भ्रम टूटे , नहीं कहीं मैं कोई अप्सरा !
पाश : अनाम : अरे नहीं , मुझे फ़ोन काटना नहीं चाहिए था। धृष्टता है यह और वह भी उनके साथ ! ….. उनके साथ , जो जीवन की धारा , जीवन द्रव्य के प्रवाह की तरल हिलोर, अरे फिर कविता तो नहीं बन रही बंधु …. अभी फिर वह कह उठेंगी। चलो फिर फ़ोन करते हैं उन्हें ! लेकिन फ़ोन मैंने कहाँ काटा…. फिर भी !
(फोन करता हैं। )
पाश : (फोन रिसीव करते हुये ) क्यों काटा था फ़ोन , और क्यों किया ?
अनाम : अरे नहीं , क्षमा प्रार्थी हूँ , कट गया होगा।
पाश : अच्छा ! यह भी जब चाहे कट जाये , जब चाहे जुड़ जाये , जब चाहे रुक जाये , जब चाहे…..।
अनाम : क्यों नहीं काट देते वो सब बंधन … वो सभी जो माया बन अटके हैं।
(पार्श्व में गीत बजता है। )
स्वप्न जकड़ टूटा कुछ ऐसा
सुनी न आह पुकार
वैसे कौन इसे भी सुनता
किसको किस से प्यार।
दूर हवेली पर छा चंदा
उनका रूप निहारे
वो भी तो उस पर ही मोहित
अपना सब व्यवहारे।
भले चांदनी करे शिकायत ,
सारी रात बिलखकर ,
कौन सुने किसकी दुनिया में,
सबके अपने तारे ,
सबके अपने तारे।
पाश : (मुस्कराते हुये ) ये क्या लगा रखा है गीत -संगीत, बड़े खुश दिख रहे हो .. .किसका ख्वाब जकड़ कर टूट गया ? (हंसी रोकने के प्रयास में )
अनाम :(स्वगत ) अरे वाह ! पाश को हँसी तो आ गयी । क्या बात है , ये तो वैसे ही बस “बेलिंडा ईस्माइलड एंड आल थे वर्ल्ड वाज गे “। अरे बेलिंडा की क्या बिसात इनके आगे ! इनके आने से हवाएं बहतीं हैं ,अलौकिक , और खुशबुओं में बह जाता है सारा संसार … वैसे बहते हैं हम ही दोनों , लेकिन बातें नहीं कर सकते .. अजीब बात है। ( “अजीब बात है” को तेज़ी से बोलता है। )
पाश : क्या अजीब बात है , आप मेरी हँसी को अजीब कह रहे हैं।
अनाम : नहीं नहीं , आपने कुछ अजीब सुन लिया …अरे क्या सुना आपने ? अरे मेरे पड़ोस में कोई गीत बज रहा है ,वह भी बहुत तेज़ आवाज़ में !
पाश : अरे वाह ! पड़ोस तो आपका बहुत समझदार है !
अनाम : (स्वागत) दुनिया समझदार है , बस आप ही नहीं समझते मेरी बात। समझदारों को क्या कहूँ , क्या करूँ भी इन समझदारों को।
अच्छा पाश , चलो मिलते हैं कल।
पाश : (गंभीर मुद्रा में ) मिलना क्या .. मिलना तो है , लेकिन आप जानते हैं दुनिया !
अनाम : यह न कहना , खानदान , देशकाल और मर्यादा !
पाश : क्या कहूँ , क्या कहूँ तब बताईये ?
अनाम : (मायूसी से ) ठीक है , मैं आपकी मर्यादा पर कोई कचोट , कोई छाया , प्रतिच्छाया नहीं डालना चाहता , जो ठीक लगे वही सही।
पाश : एक बात बताईये अनाम , एक बार मिले है हम , वह भी कुछ पल के लिए , वह भी महफ़िल में , वह भी शाइस्ता महफ़िल में …।
अनाम : वह भी परदे में , पलकों के पीछे , भावों के अन्य प्रसंगों में !
पाश : जी , बिलकुल !
अनाम : अरे यह …..यह क्या ?
पाश : वही सोचती हूँ कभी ….अब इस पड़ाव पर क्या कहूँ अनाम ..मिलते है …।
अनाम : (लम्बी साँस लेते हुये ) समझता हूँ मैं प्रतिबन्ध , समाज और सेंसर
पाश : मैं क्या बोलूं
अनाम : कुछ नहीं , शांति की भी ध्वनि होती है , भाव ही बनते है शब्दार्थ !
पाश : मैं कोई दार्शनिक नहीं , कोई …।
अनाम : मत कहो कुछ पाश , बीएस महसूस करना चाहता हूँ तुम्हारी उपस्थिति इस वीराने में , यह जगत बाजार का वीराना जहाँ नोचते है शब्द और जकड़ती है आहें , जहाँ बेड़ियाँ है सजीले घुंघरुओं जैसी और भेड़िये है कुर्सी नशीन।
पाश : (एक लम्बी आह ) : रखते है फोन ,अनाम ! देर ज्यादा हो गयी है , अभी बहुत सा काम बाकी पड़ा है , ऑफिस का , घर का।
अनाम : आपके ऑफिस से तो मैं तंग आ गया , देखा नहीं पर सुनते सुनते ! वैसे आपकी बॉस आपकी बहिन , सहेली क्या कहा था उस दिन
खाला या खालाजाद….कुछ मौसी बुआ जैसी !
पाश : छोड़िये उन्हें !
अनाम : पकडे कहाँ है की छोड़ें ! हम उन्हें पकड़ते है तो वाह भावों के प्रवाह को अंजुरियों में भर कांटे उड़ा देतीं है पवन प्रवाह में।
(ठीक है , मिलते है कल )कुछ कहना है , कह दूँ।
पाश : नहीं , रहने दीजिए
अनाम : जैसी आपकी इच्छा !
पाश : मिलते है ! (फोन कट जाता है। )
दृश्य -दो
दूसरे दिन सुबह सात बजे
(अनाम आँख मलते हुये बिस्तर से उठता है। प्रातः प्रार्थना फिर फोन उठाता है। अंगड़ाई लेता हुआ। )
अनाम : कहाँ है पाश देखते हैं ,(स्वगत ) वह सुबह ही कैसी जो डी पी न दिखे ,वह शाम ही कैसी कि स्टेटस न दिखे ! (हँसता है) अरे यह क्या तुकबंदी हो गयी ,इसी को कुर्सीनशीन कविता कह देंगे , और वाहवाही लूट लेंगे…। (हँसता है) चलो देखें , कहाँ है पाश ! (फोन करता है। )
पाश : जग गये अनाम ! बहुत जल्दी सुबह सुबह !
अनाम : यह जल्दी है पाश ? सात बज रहे हैँ , मैंने तुम्हे डिस्टर्ब तो नहीं किया ?
पाश : (झुंझलाहट प्रकट न होने देने का हर प्रयत्न करते हुये ) नहीं !
अनाम : गुड मॉर्निंग मैसेज करना मेरा शगल नहीं , और बिना आपको सुने , देखे मुझे सुकून नहीं।
पाश : अच्छा ! अब यह न कहना कि कविता बन गयी !
अनाम : कविता से भी क्या खलिस है आपको ! (हँसता है )
पाश : नहीं -नहीं , ऐसा नहीं है !
अनाम : वैसे क्या कर रहीं थीं आप ?
पाश : करना क्या , मोरिंग चोर्स !
अनाम : चोर्स ,चोरों को क्यों लाते हो !
पाश : आपको तो मज़ाक से ही फुरसत नहीं ..।
अनाम : अरे किस से कहें , तुम्ही से तो। तुम्हारा एक कलीग है , वह तो मज़ाक भी चुरा लेता …।
पाश : वैसे इन लोगों के काम को हिंदी में चोर्स कहना कितना ठीक रहेगा !
अनाम : बिलकुल ! छोड़िये इन्हे , हम लोग क्यों बात करें दूसरों की , वह भी नेगटिव विचार वालों की। हमारे ईद- गिर्द ऐसे लोगों की कमी है क्या यार !
(फोन पर बीप- बीप की आवाज़ आती है )
पाश : कहाँ कनेक्ट किये हो (बंद हँसी )
अनाम : कनेक्ट तो तुम्ही से है यार ! यह गुड मॉर्निंग मैसेज होंगे …।
पाश : ये लोग बहुत परेशान करते है !
अनाम : इनमे पांच तरह के मैसेज आते है – तैलीय , हुंकार , भेड़चाल , श्रद्धालु , आत्मीय।
पाश : (तेज़ हँसी ) क्या शब्द है ! दोहराना , हाँ , दोहराओ !
अनाम : तैलीय , हुंकार , भेड़चाल , श्रद्धालु , आत्मीय ! यह मेरी रिसर्च है इन पर !
पाश : क्या मैं इनका दार्शनिक विश्लेषण जान सकती हूँ गुरूजी !
अनाम : यह अंत में प्रयुक्त शब्द निकालिये , इसे चबाकर फेंक दीजिये ! फिर बात करते है.. खींचिये यह शब्दबाण , और फेंक दीजिये कहीं दूर !
पाश : (मुस्कराती हुयी ) आप तो नाराज़ हो गये , मैं तो आपको बड़ा सम्मान देती हूँ !
अनाम : मुझे सम्मान नहीं , प्रेम चाहिये …।
पाश : अरे आप फिर…।
अनाम : क्या ?
पाश : मैं तो सबसे कहती रहती हूँ ,आप इतने अच्छे व्यक्ति !
अनाम : तो आप ढिंढोरा पीटती है , वही होगी आपकी मनहूस दोस्त जो उसदिन फेसबुक फ्रेंड की चर्चा कर रही थी…।
पाश : मैं समझी नहीं …।
अनाम : चलों छोड़ों ये बातें…सुबह ख़राब न करो , आकर लग जाओ गले से !
पाश : जग गया आपका वह रूप !
अनाम : कौन सा रूप ? पुरुष नहीं हूँ मैं ? और आप …।
पाश : क्या ,क्या ले आते है , चलिए छोड़िये , बताईये ये पांच तरह के मैसेज वीर !
अनाम : ये रहे – तैलीय , हुंकार , भेड़चाल , श्रद्धालु , आत्मीय !
पाश : अब करिये विश्लेषण !
अनाम : अवश्य ! तैलीय श्रेणी के मैसेज वे होते है जो किसी ऐसे व्यक्ति को भेजे जाते हैँ , जिनसे आपका कोई निहितस्वार्थ होता है। इनके निहितार्थ अलग होते हैँ , भाव अलग। तेल लगाना प्रचलित मुहावरा है। ऐसे मैसेज भावों को द्रवीभूत करके तेल के रूप में ला देता हैँ और प्रवाहित कर देता है। कहाँ कहाँ कैसे कैसे बहेगा , आप जान नहीं सकते ! कार्य में किसी तरह का विघ्न न हो , घर्षण न हो , इस हेतु होते हैँ यह।
पाश : वाह ! वाह !
अनाम : हुंकार वह हो कुछ आत्मप्रेमी लोग अपनी “उपलब्धियों “, मैं बल देकर कहता हूँ , “उपलब्धियों “को चाहे वह सियार द्वारा सिंह के साथ डिनर करने की ही हों , कैमरे में कैद कर प्रेषित करने वाले ….।
पाश : ऐसे लोग बहुत दीखते हैँ , दोनों ही श्रेणियों के। हुंकार (हँसते हुये ) शब्द तो बहुत जोरदार दिया है ,आपने !
अनाम : हाँ , ऐसे मैसेज उन लोगों से आते हैं जो आत्मरक्ति में लिप्त होते हैं !
पाश : आत्मरक्ति?
अनाम : यार बताया था उस दिन , डिक्शनरी में जा कर अर्थ खोज लीजियेगा!
पाश : (मुस्कराते हुये ) हाँ -हाँ , मालूम है ! अच्छा अब बताओ .. क्या था , हाँ और भेड़चाल !
अनाम : वे वो वाले मैसेज होते हैं जो सिर्फ फॉरवर्ड किये जाते हैं , बिना उनका कंटेंट पढ़े , बिना उनको पूरी तरह देखे हुये।
पाश : बिलकुल ,
अनाम : मेरे पास बहुत से हैं ऐसे !
पाश : एक दिन तो हद हो गयी , किसी कल्लू आढ़ती ने गुडमॉर्निंग करते हुये बढ़िया सा गुलाब का फूल लगाया था , बहुत सुन्दर, ऊपर से बहुत अच्छे फॉण्ट में सुन्दर से गुडमॉर्निंग लिखा , उसको खोलिये तो नीचे लिखा है – “बनारसी घुईया बारहों मास सस्ते दामों में उपलब्ध है। पसेरी
के हिसाब से।” (हँसते हुये ) जानते हो भेजा किसने हमें ?
अनाम : (हँसी को सम्हालते हुये ) कौन है भाई ऐसा ?
पाश : गेस करो ?
अनाम : उसी कल्लू आढ़ती ने !
पाश : हमें क्या मालूम कौन है कल्लू – कालू!
अनाम : आप ही बता दो !
पाश : एक लकदक विभागाध्यक्षा ने !
अनाम : अरे !
(दोनों की हँसी घुलकर बहने लगती है। )
पाश : अच्छा और बताईये जल्दी , सुबह सुबह हँस रहे हैं हम लोग खली पेट !
अनाम : भेड़चाल मैसेज , ये रहा अगला ! इस पर मेरा एक पूरा लेख है , पढ़ने को दूंगा आपको। ऐसे मैसेज जो कुछ लोग मजबूरी में भेज देते हैं , क्योंकि किसी ने भेजा रहा होता है , ग्रुप में। लोग इंतज़ार करते हैं की इसने भेजा उसने भेजा , फिर आँख मूँद अपना भी ठोक दिया।
पाश : हाँ , अगला क्या था , श्रद्धालु ?
अनाम : प्रणाम उन्हें ! संस्कृति के प्रचार प्रसार में संस्कारी लोग , अच्छी बातें , अच्छे शब्द !
पाश : एक बड़े विश्लेषण की आवश्यकता है इस पर भी ! मैसेज तो संस्कृति का , लेकिन पार्श्व में कुछ और ….।
अनाम : बिलकुल ठीक कहा आपने ! मैसेज के शालीन प्रवाह के बाद आपको मिलें तो कुछ कह नहीं सकते , कैसे पेश आएंगे।
पाश : हाँ वो तो है , किन्तु कुछ लोग काफी अच्छे होते हैं इनमे।
अनाम : और कुछ तो ऐसे जो अपने कर्मों का प्रायश्चित करते बार बार भेजते रहते हैं ऐसे मैसेज।
पाश : (तेज़ आवाज़ में ) हाँ -हाँ चीज़ सैंडविच बना लो !
अनाम :(आश्चर्य से ) क्या , सैंडविच बना लें ? मैसेज का
पाश : अरे नहीं यार , हमारी कुक हैं , उनसे कह रही थी !
अनाम : यार ये कुक कहाँ से आ गयीं ?
पाश : (आश्चर्य से ) क्या कुक , कहाँ से – ” ये क्या ” भई , यही खाना देतीं हैं हमें !
अनाम :(बेशर्मी से ) हमें रख लीजिये न , कितनी बार कह चुके हैं आपसे !
पाश : आप चूकते नहीं हैं ! हम तो आपको एक प्रतिष्ठित नेक इंसान की तरह सोचते हैं , क्या-क्या बोलते रहते हैं आप !
अनाम :(बेशर्मी बढ़ाते हुये ) हमें एक बार गंदे आदमी बनने का मौका दीजिये बस .. अपने राज्य में !
पाश : (प्रसन्नता और गुस्से का मिश्रण करती हुयी , तेज़ आवाज़ में ) अगली श्रेणी ?
अनाम : अरे मैं तो भूल ही गया था , अगली श्रेणी में आते हैं आत्मीय , जैसा की मैं।
पाश : और विश्लेषण कीजिये इसका !
अनाम : शब्द नहीं हैं भाव लीजिये।
पाश : भाव !
अनाम : अच्छा आप अपनी ‘पिक’ भेजिए !
पाश : फिर बहक गए आप !
अनाम : वह मुलाक़ात ही क्या जब बहकें नहीं.. कह दीजिये नहीं भेजेगीं तस्वीर अपनी !
पाश : क्या करेंगे तस्वीर का , बंद कीजिये आँख और देखिये !
अनाम : वैसे सर्दियों में आपके होंठ रूखे हो रहे होंगे , ध्यान रखियेगा।
पाश : अच्छा ! आप तो बहुत ढोंगी ठहरे , कह रहे हैं ऐसा नहीं -वैसा नहीं , देखा भी नहीं , और यहाँ तो होंठ भी याद हैं।
अनाम : मैं क्या बोलूं ! अच्छा डी पी बदलिए प्लीज !
पाश : अच्छा रखिये मेरे दरवाजे पर कोई आ गया है।
अनाम : मैसेज कीजियेगा फ्री होकर !
(कुछ पल बाद )
अनाम : (स्वागत ) चलो मैसेज ही करते हैं…….। क्या लिखूं -क्या लिखू … ये कैसा रहेगा –
” चाँद रोज़ ही बदलता है चेहरा अपना,
मगर क्या कहूँ , अटकी हैं वो कहाँ के कहाँ “
भेजते हैं – (मैसेज भेजता है )
पाश : (मैसेज पढ़ती है , उत्तर भेजती है ) –
“चाँद क्यों बदला करे किसी के लिए,
ये तो अपने से ही अपने लिए जीता है।”
अनाम : (मैसेज पढ़ता है , उत्तर भेजता है )
“चाँद को बाँहों में भर लेने की है आरजू मेरी
चाँद को देखिये , फिसला फिरा पड़ता है।”
पाश : (मैसेज पढ़ती है , उत्तर भेजती है )
“चाँद का हुस्न है अपने में सजे रहने में
चमके किसी के लिए चले तो चमक ही कैसी “
अनाम :(मैसेज पढ़ता है , उत्तर भेजता है )
“ये निगाहों का भरम है जो यूँ समझे उसको ,
ये वो चीज़ है जो खाक़ को हीरा कर दे। “
(अनाम के फ़ोन की घंटी बजती है। ) अरे मैसेज से कॉल पर !
पाश : बहुत हो गयी शेरो शायरी , रखिये अब …कुक आंटी बुला रहीं हैं।
(अनाम फ़ोन रख देता है। )
अनाम : (स्वागत ) क्या कर सकते हैं , ….।
यूँ ही रोज़ चले जाते हैं
दुनिया उलट -पुलट कर जाते
और मुद्दतों बाद कहीं से ,
दो -चार शब्द ले आ जाते हैं।
दर्द का ही तो नाम मोहब्बत ,
किस से कहना , किस की सुनना ,
दिल मारा-मारा फिरता है ,
आंसू में डूबा मरता है
उधर जश्न होते रहते हैं ,
इधर रोज़ की यह मायूसी
कहें सुने तो किस से कह दें ,
यहाँ विचारों पर जासूसी।
इश्क़ घुटन का नाम दूसरा
जो डूबे , वह बच न पाये ,
जो न जाने हँसी उड़ाये।
यूँ ही सूरज उगता ढलता
यूँ ही बादल आते जाते ,
यहाँ मुंडेरों पर आ किरणें
अंधियारों को करें इशारे
अंधियारों को करें इशारे।
(मंच पर अँधेरा छा जाता है। )
समाप्त
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह के विषय में
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।
Tag, Plays of R P Singh , Lucknow in Literature , Drama on Relationship, Love and Romance in Literature , साहित्य में लखनऊ , साहित्य और प्रेम , चाँद , प्रेम गीत,