छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : नवा महाभारत-धर्मेन्‍द्र निर्मल

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : नवा महाभारत

-धर्मेन्‍द्र निर्मल

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : नवा महाभारत

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : नवा महाभारत
छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : नवा महाभारत

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : नवा महाभारत

एक दिन धृतराष्ट्र अपन चुकचुकहा आँखी ल लिबलिबावत कहिथे – देख तो रे संजय ! मोर आँखी के पुतरी दुर्योधन मन का करत हे ?

संजय टी.बी. के बटन ल दबावत कहिस – आज कइसे उदुपहा राजमहल के सुरता आ गे कका ?
का करबे रे ! चिखला म गदफदाए मनखे पानी ल नइ सोरियाही त अउ काला सोरियाही ?
 संजय मने मन कहिथे – एक गोड़ हँ कबर म ओरमे हे। तभो खुरसी के पाया म दम अरझेच हे। टी.बी. के समाचार चैनल म समाचार चले लगिस।

संजय बतावथे – महाराज ! जब ले दूर्योधन ल युवराज बनाए हस तब ले देस के जनता तराहि-तराहि हो गे हे। तोर टूरामन सत्ती उप्पर बजनिया खेलत हे। उन ल गुण्डागर्दी, दलाली, जुआ- चित्ती अऊ मंद -मऊहा के छोड़ कुछु दिखबे-सूझबे नइ करत हे।

 संजय के गोठ ल सुनके धृतराष्ट्र के रूवाँ ठढ़िया गे। भोभला दाँत ल हुँड़का कस किटकिटावत पूछथे – का कहिथस संजय ? तोला बाय-बयरासू तो नइ धर ले हे। मोरे आघू म मोरे बेटामन के माँस बेचत हस।

संजय हँ गाँधीछाप खादी के विनम्रता ल ओढ़के कहिथे – गलत काहत होहूँ त पाँच पनही मार लौ महराज ! फेर अइसन चुगलखोरी के लाँछन मत लगावव। एमा मोर का गलती हे ? जेन हे तेला बतावत हौं।

बोले बर मुँहू तो नइ उलै। फेर तुँहर लइकनमन के करनी हँ मुँह ल खोलवावथे। उन तो ठाड़ आगी म मूतत हे। अपन मुँह ल अतेक करिया कर डारे हे के नीत-अनीत नइ चिन्हत -देखत हे। एमा तुँहरो कोनो दोस नइहे महराज ! गँहू के रोटी टेड़गा राहय के कुबरा राहय मीठे लगथे। तइसे अपन लइका चोरहा रहय के दलाल रहय नीके लगथे।

तभो ले अपन लइका ल सरू झन काहय। पीतल के लोटा ल चरू झन काहय। अइसन म पेंदी खियाए के डर जादा होथे। इत -उत उलण्डके मान- मरजाद म बाधा- बियाधा परथे। तेन हँ अलग।
तैं तो जानत रहेस के दूर्योधन हँ मोर चिरई के एक गोड़ वाला लइका  कहिके। तभो आँखी म देख के माँछी ल खाए हस। नानपन के तोर सबके सब लइका मूत म दीया बरइया आय। तभो तैं जानबूझ के मुड़़ म पनही पहिरे हस। ओमन ल पंदोली देके रूख चढ़ाए हस।

संजय के अतेक मुँह म थूँकई ल देखके धृतराष्ट्र के मुँहू सिला गे। आँखी के कोन्टा-कोन्टा म छबड़ाए चिपरा ल अपन पिताम्बर म पोंछत कहिथे – अभी कोन मेर हे ? का करत हे ?
संजय टी.बी. के आवाज ल थोरिक अऊ बढ़ा दिस। आगू बतावत हे।

दूर्योधन हँ युवराज बनते साठ चउँक -चउँक म दारू भट्ठी खोल दे हे। अइसे कोनो चउँक नइ होही जिहाँ भट्ठी नइ होही। जिहाँ भट्ठी नइ हे त समझ ले के सरकारी रिकाड के अनसार ओ हँ चउँके नोहय। समसान घाट हरे।

पांडो मन ल दारू पीया – पीयाके जुआ खेलावत हे। युधिष्ठिर हँ एक के बाद एक जम्मों दाँव ल हारत जात हे। जम्मो दाँव ल दूर्योधन हँ बइमानी ले खेलत हे। मुँह म भाँचा मन म खाँचावाले कपटी ममा सकुनी हँ ओला पंदोली देवत हे।

ममा -भाँचा अतेक माछी के पीत निकालत हे के युधिष्ठिर के जम्मो राजपाट ल जीते के पाछू एकक करके पांडो मन ल घला दाँव म लगवा डरिस।

राजदरबार म माछी बइठे ल छोड़दिस महराज ! उहाँ कोनो मरे रोवइया नइ हे। ओ दे एक झन दुरपति रिहिसे। उहू दाँव म लग गे। पासा पर गे। दुरपति घलो अब दुर्योधन के दासी हो गे।

 धृतराष्ट्र पूछिस – संजय ! त का राजसभा म पितामह, द्रोनाचार्य, कृपाचार्य एमन कोनो नइ हे ?
हावय महराज ! फेर ओमन तो मरे म मेंछा भर उपकारत हे। इन्कर राज आए के बाद मर -मरके जीयत हे। एमन तो जेने अँगरी ल धराके रेंगे बर सिखोए हे उन्करे लंगोट ल धर- धरके तीरत हे। उल्टा उही मन ल आँखी देखावत हे।

सावन के अँधरा ल हरियरे -हरियर दिखथे कहिथे । कोन जनी जनम के अंधरा मन ल काए दिखत होही ते ?
दुर्याेधन हँ राजमहल म भुर्री बारके तापत हे। बाँचे -खूँचे कौरवमन चारो खूँट घूम -घूमके छीनत -झपटत बेंदरा बिनास करत हे। जिहाँ खुद राजा के मति छरिया जथे उहाँ मन कइँच्चा हो जथे। अइसन राजपाठ ले सबके मन उठ जथे। काँही उदीम कर लेवय। कोनो बेरा ककरो मन नइ गेदरावय।

समाचार सरलग चलते हे। दुरपति ल दुसासन हँ जबरन बोहिके सभा म ले लाने हे। सभा के हाॅल हँ मुंड़ धरउल हो गे हे। बिचारी दुखिया हँ कोनो ल मुँहू देखाए के लइक नइ रहि गे हे। ओकर दसा हँ मुड़भर के हो गे हे। ओदे अब परलोखियामन ओकर पहिरन- ओढ़न ल घलो तीरत हावै। ओ हँ मुड़ी ल गड़ियाए कल्हर -कल्हर के रोवत हे।

अतका गोठ ल सुनके धृतराष्ट्र के आँखी अजब- गजब किसम ले लिबलिबाए लगिस। कोन जनी ओकर मन म कोन रस के संचारी भाव संचरे लागिस ते ? अंतस के झरत -पझरत चुहत -चुचुवावत रसा तो भीतरे -भीतर सपेटा गे फेर ओकर मुँहु के कोर -कोर म पचपचावत गाजा हँ गजगजाए लागिस।

संजय समझे नइ सकिस।
संजय आगू बताथे के एती दुरपति के चीरहरन होवथे। मीडिया वालेमन कोन्टिया -कोन्टिया के फोटू खींचत हे।

 धृतराष्ट्र बड़ अचंभो म पर गे। मुँह ल बीता भर फारके पूछथे – ओमन फोटू काबर खींचत हे ?
संजय कहिथे – कोन जनी महराज। जेन देस राज के मीडिया हँ चड्डी भर पहिरे सनी लियोन , पूनम पांडे सहींन चिपरी -चिपरी टूरी ल रातोरात स्टारडम बना सकत हे। उन्कर ए फोटू उतारे के पीछू घलो कोनो न कोनो जबर कारन जरूर होही। ए मीडिया के सोनजुग ए महराज ! माने हमार परजातंत्र मजबूत हो गे। एमा दू मत के बात नइ हे।

धृतराष्ट्र मुड़ी ल पटकत कहिथे – ओ सभा म कोनो नर -नियाव हे के नहीं ?
संजय कहिथे – का नर -नियाव ल कहिबे। जिन्कर मुँह म नाक नइ होवय तिन्कर बर नारी अउ मरी दूनो बरोबर होथे महराज ! अउ कानहून तो तुँहरे बनाए ए। उहू महारानी कस आँखी म टोपा बाँध ले हे।

गँहू के रोटी ल जेती ले टोरबे तेती मुँहू बन जथे। तइसे कानून ल सबूत चाही। साबूत सबूत ले ताबूत के मुरदा घलो उठके दउँड़े लगथे। कागज के भरोसा कोनो कोती रेंगा ले। गलत करे हस तभो ओला कागज के परमान चाही। सही करे हस तभो परमान चाही।

अब तो अपराधी घलो अतका हुसियार हो गे हे के करिया हाथी ल मारके घला हतिया आय के नोहय ओतके बर कानून ल दस साल घुमा देथे। अइसन कानहून के का भरोसा करबे ? उहू खादी छाप कपड़ा अउ गाँधी छाप नोट के इसारा ल समझे लग गे हे।

संजय के बात ल सुनके जनम के इरखाहा ,अनदेखना धृतरास्ट के लहू अउँटे लगिस। मन तो हो गे रिहिसे के संजय ल नक्सल परचार अउ अतंकी सहयोगी बता देववँ। जेल म ठुँसुवा -ठोंकवा के खेले खतम कर देववँ। गज्जब टाँय -टाँय करत हे।

उदुपहा फेर सोचथे – अरे मैं मरवाहूँ त मोला जुवाब दे बर पर जही। तेकर ले मुखबीरी के बहाना नक्सलाइडे मन से धुँकुवा देथवँ। साँपो मर जही लाठियो नइ टूटही। हूँ उँ उँ……।

फेर बूढ़त खानी अउ सिंघासन ले रिटाएर होए के बाद कुछू तो मनोरंजन के साधन होना चाही। ए संजय रूपी टीबी ल फोरफार देहूँ त मोर दिनो हँ तो नइ कटही। ए सब बात ल सोचके धृतरास्ट कठखाए चुप आँखी ल लिबलिबाके रहि गे।

राजपाट जाए के बाद मनखे के काम आँखी लिबलिबाना अउ जीब लपलपाना भर तो बाँच जथे। अउ कोनो काम बर तो सक चल नइ सकय।

संजय ओकर अंतस के उमड़त धुँध-धुँगिया ल अपन सीसी टीबी के केमरा ले देख डारिस।
धमकावत कहिस – ए मुक्का भकुवाए मनमोहना टेटका कस मुड़ी ल हलाना -डोलाना छोड़ दे कका ! तोर मन म का चलत हे ? सबके लेखा- जोखा मोला मिल गे हे। अभी स्टिंग आपरेसन चलाके तोर धनिया बो देहूँ।

 धृतरास्ट सकपका गे। माने मीडिया के मार म महराजो मूतथे।
नंगा ले खुदा डरे।

संजय आगू कहिस – सरी दिन के भुईयाँ म पसीना ओगरइया पांडो मन ल दूर्योधन काहत हे।
का काहत हे ?  – धृतरास्ट बोहावत नाक ल सड़सड़ ले तीरत पूछिस।

अब ए भुईयाँ म तुँहर अधिकार नइ हे। हमर राज ए। हम जब चाहन जइसे चाहन ए भुईयाँ के उपयोग- उपभोग करन के एमा अखारा खोलन। तुँहर पूछे -गउँछे के काम नइ हे। हम चाहन त रास्टभक्त ल देसद्रोही कहिके फाँसी चढ़ा देवन। चाहन त देसद्रोही ल भारत रत्न देवन। चमत्कार ल बलत्कार काहन के बलत्कार ल चमत्कार कहि देवन। हमार मरजी ।

कहिथे – तुमन तो अब दास हो गेव रे ! एक ठो खुरसी के लाइक नइ रहि गेव। अब तो तुमन इहाँ बइठे -बोले घला नइ सकव। बिरोध करइ तो गजब दूरिहा के बात हो गे।
जेने मालिक ए उन्करे मुँहू म पैरा गोंजके मुँह ल सीलत हे।

दूर्योधन के मुँहू अउ चाल दूनो म कीरा पर गे हे। जम्मो दरबारी मुँहू ओथराए कलेचुप बइठे हे। पांडो मन जावत हे अब।
धृतराष्ट्र आधा खुसी आधा गम के रम ल ढरकावत -ढोंकत पूछथे – कहाँ जावत हे पांडो मन ?
 संजय जुवाब देथे – महाभारत के तइयारी करे बर जाथे महराज !

-धर्मेन्द्र निर्मल 9406096346

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