नवरात एवं दशहरा पर्व
जय जगदंबे दुर्गे काली (चौपाई छंद)-
जय-जय-जय हे शेरावाली। शान आपकी बड़ी निराली।।
प्रेरक है हर एक कहानी। जुड़ी आप से माता रानी।।
मातु आपको याद करेंगे। और आपका नाम जपेंगे।।
मन मंदिर में मूर्ति बनाकर। नौ दिन का नवरात्र मनाकर।।
भय विहीन परिवेश दिया था। महिषासुर का अंत किया था।।
मातु आप हैं जग कल्याणी। नमन आपको हे रुद्राणी।।
चंड मुंड असुरों को मारे। शुम्भ निशुँभ राक्षस संहारे।
रक्तबीज वध करने वाली। जय हो देवी माँ कंकाली।।
शरणागत की रक्षा करती। भक्तों के दुख पीड़ा हरती।।
मनवांछित सबको वर देती। बदले में कुछ भी ना लेती।।
धरे रूप नौ जनहित कारण। किये सभी के कष्ट निवारण।।
जय जगदंबे दुर्गे काली। हृदय बसो माँ खप्पर वाली।।
दशहरा पर्व पर दोहे-
विजयादशमी पर्व से, मिलता यह संदेश।
बनता कारण हार का, अहंकार आवेश।१।
निजहित सुख को त्याग के, रखा प्रजा का ध्यान।
कथा हमें प्रभु राम की, देती अनुपम ज्ञान।२।
पितु दशरथ की बात रख, गए राम वनवास।
धर्म कर्म की राह पर, चले प्रभो सायास।३।
रावण था ज्ञानी बहुत, ले डूबा अभिमान।
रखो चरित्र कृतित्व को, प्रभुवर राम समान।४।
विजय धर्म की ही यहाँ, होती है हर बार।
रामचरित मानस पढ़ें, यही मिलेगा सार।५।
राम बाण के सामने, रावण था लाचार।
जीत हुई थी सत्य की, गई बुराई हार।६।
-श्लेष चन्द्राकर,
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मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आपका आदरणीय संपादक महोदय जी।