नेताजी सुभाषचंद्र बोस संपूर्ण वाङ्मय

नेताजी सुभाषचंद्र बोस संपूर्ण वाङ्मय

(23 जनवरी सुभाषचंद्र बोस जयंती पर विशेष)

नेताजी सुभाषचंद्र बोस संपूर्ण वाङ्मय
नेताजी सुभाषचंद्र बोस संपूर्ण वाङ्मय

नेताजी के अंतिम समय तक उनके पूर्ण विश्वासपात्र तथा निकट सहयोगी रहे डॉ० शिशिर कुमार बोस ने ‘नेताजी रिसर्च ब्यूरो’ की स्थापना कर नेताजी के ‘समग्र साहित्य’ के प्रकाशन का कार्य विनोद सी० चौधरी के साथ मिलकर 1961 ईस्वी में आरंभ किया था । सन् 1980 में 12 खंडों में संकलित रचनाओं के प्रकाशन का काम शुरू हुआ। अप्रैल 1980 में सर्वप्रथम बांग्ला में इसके प्रथम खंड का प्रकाशन हुआ था और नवंबर 1980 में अंग्रेजी में। हिंदी में इसका प्रथम खंड 1982 में प्रकाशित हुआ । इन तीनों भाषाओं में समग्र साहित्य का प्रकाशन होते रहा। इसका अंतिम (12वाँ) खंड 2011 ई० में प्रकाशित हुआ ।

इस ‘समग्र वाङ्मय’ के प्रथम खंड में उनकी ‘आत्मकथा’ के साथ कुछ पत्रों को सम्मिलित किया गया है । द्वितीय खंड में उनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘भारत का संघर्ष’ (द इंडियन स्ट्रगल) का प्रकाशन हुआ है। अन्य खंडों में उनके द्वारा लिखित पत्रों, टिप्पणियों एवं भाषणों आदि समग्र उपलब्ध साहित्य का क्रमबद्ध प्रकाशन हुआ है। इस प्रकार यथासंभव उपलब्ध नेताजी का लिखित एवं वाचिक ‘समग्र वाङ्मय’ अध्ययन हेतु सुलभ हो पाया है । इस ‘समग्र वाङ्मय’ के आधार पर नेताजी के व्‍यक्तित्‍व का विशेषण और उनके विचारों का मनन किया जा सकता है ।

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस के प्रति देश की कृतज्ञता-

सुभाष चन्‍द्र बोस  एक ऐसा नाम है जो बिना राजनीतिक संरक्षण के बाद भी आजाद भारत में बड़े ही सम्‍मान से लिया जाता है । आजादी के लड़ाई में अंग्रेजो के छक्‍के छ़ड़ाने वाले इस महामना को आजादी के पश्‍चात तत्‍कालिन सरकार द्वारा वह महत्‍व नहीं दिया गया जिसके वे अधिकारी थे ।  यहॉं तक उनकी मौत भी एक रहस्‍य बनी रही । इस राजनीतिक उपेक्षा के बाद भी बोस जी भारतवासियों के हृदय में अपना स्‍थान बनाये हुयें हैं यह बोसजी के प्रति देश की कृतज्ञता ही है ।

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस का जन्‍म –

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म ओड़िशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में  23 जनवरी सन् 1897 को  हुआ था । उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था।  सुभाषजी 14 भाई-बहनों में 9वें क्रम के संतान थे । कोलकाता सुभाषजी जी का ननिहाल था । सुभाषजी के नाना गंगानारायण दत्‍त  के परिवार को एक कुलिन परिवार माना जाता था ।

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस पर स्‍वामी विवेकानंद का प्रभाव-

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस  पर बाल्‍यावस्‍था से ही स्‍वामी विवेकानंद का प्रभाव रहा । मात्र 15 वर्ष के आयु में जब सुभाषजी अभी इण्टरमीडियेट की परीक्षा भी नहीं दी थी, उन्‍होंने स्‍वामी विवेकानंद के संपूर्ण साहित्‍य का अध्‍ययन कर लिया था । विवेकानंद साहित्‍य का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव हुआ । यही कारण है कि सुभाषजी  जब 1920 में आईसीएए अधिकारी बन गये तो रह-रहकर उनके मन में ख्‍याल आता था कि वह नौकरी करके अंग्रेजों की गुलामी कैसे करें ?  इसी ऊहापोह से  अपनी माँ की प्रेरणा से निकलते हुये  उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी । और इसी के साथ शुरू हुआ सुभाषजी का नेताजी बनने का सफर ।

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस का भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में पर्दापण-

20 जुलाई 1921 को रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर सुभाष चन्‍द्र बोस मुम्बई जाकर गांधी जी  से मिले । गाँधी जी ने उन्हें कोलकाता जाकर कोलकाता के स्वतन्त्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी। इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दासबाबू से मिले। सुभाष दासबाबू के कार्य से बहुत प्रभावित थे । उन दिनों गाँधी जी ने अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस आन्दोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाष इस आन्दोलन में सहभागी हो गये। इस प्रकार सुभाषजी जो अभी तक केवल मानसिक रूप से स्‍वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थे, अब शारीरिक रूप से भी जुड़ गये ।

इण्डिपेण्डेंस लीग  की स्‍थापना-

स्‍वतंत्रता आंदोलन नवयुवकों की अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य से  जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू की। 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये।

भावी संविधान आयोग  का सदस्‍य-

साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का ि‍निर्णय लिया । इस  काम के लिये आठ सदस्यीय आयोग का गठन किया गया । मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष चुने गये और सुभाषजी अन्‍य के साथ सदस्य बनाया गया। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी।

पूर्ण स्‍वराज आंदोलन में भाग लेना-

19 दिसम्‍बर 1929 को भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्‍वराज की घोषण की ।  1930 के कांग्रेस अधिवेशन में तय किया गया 26 जनवरी को स्‍वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जायेगा । 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया।

कांग्रेस अध्‍यक्ष चुना जाना-

1938 में कांग्रेस केे 51 वें  वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में  गान्धी जी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना। इस अधिवेशन में सुभाष का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सुभाष ने जवाहरलाल नेहरू की अध्‍यक्षता में योजना आयोग की स्थापना की।   सुभाष ने बंगलौर में मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद की स्थापना भी की।

कांग्रेस से अलग होना-

1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का समय आया तब सुभाष चाहते थे कि कोई ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष बनाया जाये जो इस मामले में किसी दबाव के आगे बिल्कुल न झुके। ऐसा किसी दूसरे व्यक्ति के सामने न आने पर सुभाष ने स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। लेकिन गान्धी उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे। गान्धी ने अध्यक्ष पद के लिये पट्टाभि सीतारमैया को चुना। बरसों बाद कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के लिये चुनाव हुआ।  सब समझते थे कि जब महात्मा गान्धी ने पट्टाभि सीतारमैय्या का साथ दिया है तब वे चुनाव आसानी से जीत जायेंगे। लेकिन वास्तव में सुभाष को चुनाव में 1580 मत और सीतारमैय्या को 1377 मत मिले। गान्धीजी के विरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मतों से चुनाव जीत गये। मगर चुनाव के नतीजे के साथ बात खत्म नहीं हुई। गान्धीजी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताकर अपने साथियों से कह दिया कि अगर वें सुभाष के तरीकों से सहमत नहीं हैं तो वें कांग्रेस से हट सकतें हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। जवाहरलाल नेहरू तटस्थ बने रहे और अकेले शरदबाबू सुभाष के साथ रहे। 1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। गान्धीजी स्वयं भी इस अधिवेशन में उपस्थित नहीं रहे और उनके साथियों ने भी सुभाष को कोई सहयोग नहीं दिया। अधिवेशन के बाद सुभाष ने समझौते के लिए बहुत कोशिश की लेकिन गान्धीजी और उनके साथियों ने उनकी एक न मानी। परिस्थिति ऐसी बन गयी कि सुभाष कुछ काम ही न कर पाये। आखिर में तंग आकर 29 अप्रैल 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर स्‍वयं को कांग्रेस से अलग कर लिया ।

फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना-

कांग्रेस में रहते हुये ही 3 मई 1939 को सुभाषजी ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की।  किन्‍तु कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। इस कारण फॉरवर्ड ब्लॉक  एक स्वतन्त्र पार्टी बन गयी। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतन्त्रता संग्राम को और अधिक तीव्र करने के लिये जन जागृति शुरू की।

 1939 ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध छिड़ गई । इस अवसर को सुभाषजी ने एक  सुनहरा मौका के रूप में देखा इसे देश को अंग्रेजों से मुक्ति के लिये अच्‍छा अवसर माना । 8 सितम्बर 1939 को युद्ध के प्रति पार्टी का रुख तय करने के लिये सुभाष को विशेष आमन्त्रित के रूप में काँग्रेस कार्य समिति में बुलाया गया। उन्होंने अपनी राय के साथ यह संकल्प भी दोहराया कि अगर काँग्रेस यह काम नहीं कर सकती है तो फॉरवर्ड ब्लॉक अपने दम पर ब्रिटिश राज के खिलाफ़ युद्ध शुरू कर देगा।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और आजाद हिन्द फौज-

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1943 में जापान की सहायता से टोकियो में रासबिहारी बोस ने भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इण्डियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया।  यद्यपि आज़ाद हिन्द फौज का गठन पहली बार राजा महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में हुआ था। मूल रूप से उस वक्त यह आजाद हिन्द सरकार की सेना थी, जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था।   रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को 46 वर्षीय सुभाष को आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व सौंप दिया। 

आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना-

5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमाण्डर के रूप में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी ने सेना को सम्बोधित करते हुए दिल्ली चलो! का नारा दिया । जापानी सेना के साथ मिलकर बर्मा सहित आज़ाद हिन्द फौज रंगून (यांगून) से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई  अपनी सेना को जय हिन्द का अमर नारा दिया  । सुभाषजी का आजाद हिन्‍द फौज पर इतना अच्‍छा कमाण्‍ड़ था कि  उनके अनुययी प्रेम से उन्हें नेताजी कहते थे। 21 अक्टूबर 1943 में सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की

आजाद हिन्‍द सरकार को कई देशों की मान्‍यता –

आजाद हिन्‍द सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। नेताजी उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया । 30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर सुभाषजी के द्वारा स्वतन्त्र भारत का ध्वज फहराया गया। 4 फ़रवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया ।

आजाद हिन्द फौज का प्रयाण गीत-

 राम सिंह ठकुरि रचित गीत ‘कदम-कदम बढ़ाये जा’ को आजाद हिन्द फौज का प्रयाण गीत (क्विक मार्च) के रूप में स्‍वीकार किया गया । इस ट्यून का आज भी भारतीय सेना के प्रयाण गीत के रूप में इसका प्रयोग होता है। 

कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़
मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोश-ए-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

हिम्मत तेरी बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े
तू खाक में मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

चलो दिल्ली पुकार के
ग़म-ए-निशाँ संभाल के
लाल क़िले पे गाड़ के
लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस का शारीरिक अवसान-

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, उन्होने रूस से सहायता माँगने के लिये 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया  जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखायी नहीं दिये। 

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज़ के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयीं। इस प्रकार नेता जी का शारीरिक अवसान हो गया किन्‍तु वैचारिक रूप से आज भी असंख्‍य भारतीयों के मन मंदिर में नेताजी जीवंत हैं ।

स्रोत-

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4 thoughts on “नेताजी सुभाषचंद्र बोस संपूर्ण वाङ्मय

  1. विस्तृत जानकारी जय हिंद🙏

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